कुछ महीने पहले मैं ने लुप्त होते भारतीय ज्ञान एवं कलाओं की ओर इशारा किया था. उस लेख में मैं ने केरल के एक दुर्लभ आईने का नाम लिया था जो श्रेष्ठतम कांच के आईने के तुल्य होता है लेकिन जस्तेसमान किसी धातु का बना होता है. यह गिरने पर टूटता नहीं है, एवं सालों के बाद भी इसकी गुणवत्ता में कमी नहीं आती है.
कल एक व्यापारी मित्र ने एकदम नया आरन्मुला-आईना दिखाया. इसकी कीमत लगभग 3000 रुपये है, एवं रोज दर्जनों आईने विदेशी लोग खरीद ले जाते हैं. यह हर भारतीय के लिये खुशी की बात है, एवं इस तरह का अद्भुत ज्ञान हर भारतीय के लिये गर्व की बात है. लेकिन अफसोस की भी एक बात है — सैकडों साल पुराना यह अद्भुत एवं विरल तकनीकी ज्ञान आज भी एक परिवार के पास सीमित है. इसका रहस्य उस परिवार के बाहर आज तक किसी को नहीं मालूम है.
जिस तेजी से केरल की नई पीढी परंपरागत ज्ञान एवं पेशों की उपेक्षा करके नये पेशों की और दौड रही है उस हिसाब से जल्दी ही इस अद्भुत तकनीकी ज्ञान का वही हाल होगा जो कुतुब मीनार के पास लगे लोहे की लाट का होगा. आज तक किसी को नहीं मालूम है कि वैसा अद्भुत जंगविरोधी लोहा कैसे बनाया गया. कल किसी को नहीं मालूम होगा कि आरन्मुला-आईना कैसे बनाया जाता था. बस देश विदेश में (विदेश में अधिक) काफी सारे नमूने रह जायेंगे कि हिन्दुस्तान में ऐसा भी कुछ होता था. [मेरा अनुरोध है कि देशप्रेमी लोग इस चित्र को अपने अपने चिट्ठे पर प्रदर्शित करके लुप्त होते ज्ञान के बारे में कम से कम एक लेख लिखें]
वे सज्जन जो इस ज्ञान को संजोए हुए हैं वे पेटेन्ट करवा कर अधिक कमा सकते हैं और आईने भी सस्ते हो सकते हैं।
achchha laga..
ek post bhi is par daalane ka soch raha hun..
प्रयास करता हूँ.
यहाँ यही तो सबसे बडी दिक्कत है -ऐसे ज्ञान को छुपा कर रखते है -ऐसी कई जड़ी बूटियाँ के वारे में प्रचलित है की दादाजी जानते थे मगर वे किसी को बता कर ही नहीं गए -कही प्रसिद्धि खत्म हो जाने का भय कहीं आर्थिक नुकसान का डर -मन्त्र भी फूंकते है तो कान में कोई सुन न ले -अब ठीक है जैसा चल रहा है
यह तो सचमुच अद्भुत है ,पहले कभी देखा सुना नही !
सुनकर अच्छा लगा की भारत में कहीं ऐसा भी होता हैं . पर दुख भी हुआ की यह कला सिर्फ़ एक ही परिवार के पास हैं . हमे उनसे आग्रह करना चाहिए की वो इस कला को दूसरो को भी सिखाए. ताकि आनेवाले वक़्त में यह कला जीवित रह सके. और भारत का गौरव बढ़ा सके.