मैं कई बार अधुनिक यौन शिक्षा के विरुद्ध बोल चुका हूँ क्योंकि जिन जिन पाश्चात्य देशों में आधुनिक यौन शिक्षा का प्रसार हुआ है वहां बलात्कार, यौन रोग, अविवाहित गर्भधारण, एवं टूटे परिवारों की संख्या बेहताशा बढी है. यदि मेरे इस कथन को आधुनिक पाश्चात्य यौन शिक्षा के पक्षधर झूठा सिद्ध कर सकें तो मुझे खुशी होगी.
आज जरूरत है भारतीय यौन अवधारणा पर आधारित यौन शिक्षा की जो ब्रह्मचर्य, अर्थ, काम, मोक्ष आदि को पूरकों के रूप में देखता है. लेकिन हम लोग भारतीय संस्कृति की अवधारणाओं को तिलांजली देने के लिये मेराथन दौड में लगे हुए हैं. इसका परिणाम एक विकृत यौन-लोलुपता के रूप में हर जगह दिखता है. वासना से भरे हमारे टीवी को ही ले लीजिये. एक सामान्य परिवार एक साथ बैठकर इन कार्यक्रमों को नहीं देख सकता. (जिस परिवार में मांबाप, बेटेबेटिया, बहू आदि बिना किसी लज्जा के एकसाथ बैठकर इस तरह की चूमाचाटी को देख सकते हैं वह किसी भी कोण से एक स्वस्थ “भारतीय” परिवार नहीं कहा जा सकता है).
लेकिन पश्चिम की नकल पर विकृत एवं कामोद्दीपन पैदा करने वाले दृश्य-श्रव्य कार्यक्रम एवं छपा साहित्य समाज में इस तरह फैल चुके हैं कि आज हर ओर विकृत यौन अवधारणाओं की बाढ आ गई है. हिन्दी अंतर्जाल भी इससे अछूता नहीं है. कामोद्दीपक कहानियों से भरे चिट्ठे एवं जालस्थल धीरे धीरे बढ रहे हैं. इसका दूरगामी असर समाज के लिये अच्छा नहीं होगा.
जिस तरह से “सेक्सक्या” जैसे स्वस्थ वैज्ञानिक चिट्ठे वस्तुनिष्ठ जानकारी परोस रहे हैं, उसी तरह से और अधिक लेखकों को आगे आकर छापाई माध्यम से भी इस विषय पर स्वस्थ जानकारी का प्रसार करना बहुत जरूरी हो गया है.
कल के लेख में कुछ आंकडे पेश करूंगा. यदि आप छुप कर यौन साहित्य पढते हैं लेकिन सबके समक्ष सफेदपोश बने रहते हैं तो आपको इन आंकडों से खुशी नहीं होगी.
इन्तजार करते हैं कल के आलेख के धमाके का. 🙂
शास्त्री जी! मैं यौन शिक्षा का हिमायती हूँ। वास्तविकता है कि भारतीय समाज में यौन शिक्षा की कोई पद्यति विकसित ही नहीं हुई। कभी रही हो तो वह सदियों पुरानी बात है। आज समाज में जितनी विकृतियाँ हैं वे सही यौन शिक्षा सही समय पर नहीं होने के अभाव में है। वास्तव में 9-10 वर्ष की आयु से ही इस का आरंभ होना चाहिए, और माता पिता को ही इस भूमिका को निभाना चाहिए। आखिर शिक्षा के मामले में पर्दा क्यों। इस शिक्षा के लिए माता-पिता को शिक्षित किया जाना चाहिए। यौन शिक्षा कोई बहुत लम्बी नहीं होती। एक बात यह कि बच्चों को बचपन से ही यह आदत डाली जाए कि वे किसी भी बात को अपने माता-पिता से नहीं छुपाने की आदत डालें। हमारे बच्चे कुछ भी नहीं छुपाते अपने गर्ल और ब्वाय फ्रेण्डस तक भी नहीं।
बहुत ही नाजुक और संवेदनशील मुद्दा !’कुछ भी कहना तो काफी सोच समझ के ‘जैसा .कभी कभी समझ मे ही नही आता क्या ग़लत है ,क्या सही .सेक्स एक नैसर्गिक प्रवृत्ति है -समूचे प्राणी जगत मे तो माँ बाप इसे नही सिखाते -यह सहज प्रवृत्ति के चलते ख़ुद ब ख़ुद अपना रास्ता तय करता है .हाँ ,बच्चों को सेक्स जनित रोगों से आगाह अवश्य कर देना चाहिए -मगर यहाँ भी मीडिया काफी कुछ कर दे रहा है – आठवीं ,दशवीं का भी शायद ही कोई बच्चा हो जो कंडोम [और उसका उपयोग ]न जानता हो ,बहुत कुछ सहज बोध ख़ुद सिखा देता है .अब माँ बाप को इस पचड़े में डालना न तो नैतिकता है और न ही शालीनता -क्या हमारे माँ बाप ने यह सब हमे सिखाया था ?
आज यह सब अरबों का व्यवसाय बन गया है -इसकी हिमायत नही की जानी चाहिए .
दुनिया में और भी गम हैं इक सेक्स के सिवा ……
शास्त्रीजी
यौन शिक्षा में समस्या नहीं है। समस्या उसे योन क्रिया के लिए उद्वेलित करने वाली शिक्षा से है। और, फिलहाल भारतीय परिवेश के लिए तो पाश्चात्य यौन शिक्षा बिल्कुल ही गलत है। और, पिछले दो दिनों में जिस तरह की खबरें आईं हैं उससे साफ है कि उस समाज में जहां यौन शिक्षा दी जा रही है उल्टे असर हो रहे हैं। आपके दूसरे लेख के इंतजार में
डा. अरविन्द मिश्र की तरह हम भी नॉन कमिटल हैं। कोई पुख्ता विचार बन ही न पाया।
sir
i want to know how do we define “generation” . every one is critisizing “todays generation” now ehn we say that what age group do we mean . which “age group ” comes in todays generation
@Rachna
Rachna ji, my discussion is independent of any discussion on “generation”. Thus my article is a critique of philosophy or ethos and not of any generation.
“philosophy or ethos” for whome , किसी भी कोण से एक स्वस्थ “भारतीय” परिवार नहीं कहा जा सकता है obviously for indian family but without knowing which age group is responsibe for all this
if we have to talk of detoriation in society and of society
its important to know “which society” indian family of which age is being discussed
40s , 50s , 60s , 70, 80s , 90s , 20s ,
शास्त्रीजी,
धारा की विपरीत दिशा में बहने का साहस आप जैसा ‘ऋषि’ ही दिखा सकता है। लेख के लिये साधुवाद!
मैंने भी फ्रांस और स्विटजरलैण्ड का टी वी कार्यक्रम देखा है। वहाँ कोई गन्दगी नहीं; कोई भोंडापन नहीं; कोई शोरगुल नहीं; कोई ‘ओवर-ऐक्टिंग’ नहीं है।
वहाँ मौलिकता दिखती है; संस्कार दिखते हैं।
मुझे यहाँ किसी सुलझे हुए अति-अनुभवी व्यक्ति का हिन्दी लेख देखने को मिला है। इसे यहाँ पढ़ा जा सकता है:
dostistory1.rediffiland.com/
अपनी प्राकृतिक मर्दानगी वापिस हासिल कीजिये
http://dostistory1.rediffiland.com/blogs/2007/12/09/5.html
शास्त्रीजी,
धारा की विपरीत दिशा में बहने का साहस आप जैसा ‘ऋषि’ ही दिखा सकता है। लेख के लिये साधुवाद!
मैंने भी फ्रांस और स्विटजरलैण्ड का टी वी कार्यक्रम देखा है। वहाँ कोई गन्दगी नहीं; कोई भोंडापन नहीं; कोई शोरगुल नहीं; कोई ‘ओवर-ऐक्टिंग’ नहीं है।
वहाँ मौलिकता दिखती है; संस्कार दिखते हैं।
मुझे यहाँ किसी सुलझे हुए अति-अनुभवी व्यक्ति का हिन्दी लेख देखने को मिला है। इसे यहाँ पढ़ा जा सकता है:
dostistory1.rediffiland.com/
मैं दिनेश जी से सहमत हूँ.. मुझे याद है जब मेरा मेरी गर्ल फ्रेंड से ब्रेक अप हुआ था तब मुझे सबसे ज्यादा सपोर्ट पापा-माँ से ही मिला था.. क्योंकि उनसे मेरा हमेशा से दोस्तों सा संबंध रहा है.. अगर वो सपोर्ट नहीं मिलता तो शायद मैं आपके बीच में नहीं होता.. वैसे बात पुरानी हो चुकी है और मैं वो भूल भी चूका हूँ..
सर मैं अनाम बन कर इसीलिए लिख रहा हूँ की कोई मेरी निजी जिन्दगी के बारे में ना जान सके और मैंने इ-पता सही दे रखा है क्योंकि आप पर भरोसा करता हूँ..
शास्त्री जी मैं कहना तो नहीं चाह रहा था लेकिन बड़े दुःख के साथ कह रहा हूं कि चाहते तो सभी है लेकिन सामने नहीं आना चाहते. रही बात मेरे दुःखी होने की तो मेरा चिट्ठा सेक्स क्या इस समय कठिन दौर से गुजर रहा है. किसी पाठक ने गूगल में शिकायत की है कि इस चिट्ठे में आपत्ति जनक सामग्री है. इस लिये अब जैसे ही इस चिट्ठे को खोला जाता है तो एक बैरियर लगा दिया गया है उसकी बानगी देखे “Some readers of this blog have contacted Google because they believe this blog’s content is objectionable.”
किसी डाक्टर ने कहा था इस चिट्ठे पर जाओ. खैर… शास्त्री जी कोई मदद यदि कर सकते हैं तो बताएं कि यह बैरियर कैसे खत्म हो सकता है.
रमाशंकर