हरेक व्यक्ति के जीवन में कोई न कोई शौक होता है, लेकिन बहुत से लोग अपने शौक के बारे में अज्ञान हैं. पिछले दिन मेरे एक मित्र अपने छोटे बेटे को मेरे पास लाये जिसे किसी काम का शौक न था. वह खुद बारबार इस बात को दुहरा रहा था कि न तो उसे किसी तरह का शौक है, न ही उसके जीवन में कोई लक्ष्य है.
उस नौजवान से 10 मिनिट बातें करने के बाद लगा कि परामर्शकर्ता के रूप में मेरे लिये वह एक टेडी खीर है. उसे सही रास्ते पर लाने के लिये काफी मेहनत लगी. कारण यह था कि उसे “निराशा” का नशा हो गया था. निराश चिंतन उसका शौक था जो धीरे धीरे उसके सर पर चढ कर बोलने लगा था एवं उसके जीवन को बर्बाद कर रहा था.
हम नियमित रूप से तीन हफ्ते से अधिक जिस चीज का भी शौक करते हैं, वह सामान्यतया एक आदत बन जाती है. फिर उसे तोडना मुश्किल हो जाता है. इसका मतलब यह है कि यदि हम अपने जीवन में कोई आदत डालना चाहते हैं तो बडे ही शौक से तीन हफ्ते या उससे अधिक करें तो वह कमोबेश हमारी आदत बन जायगी — शर्त यह है कि वह कार्य बडे ही शौक या चाव से किया जाना चाहिये.
इसका मतलब यह है कि हम में से हरेक को कुछ शौक पाल लेना चाहिये — उन सब कार्यों का शौक जो हम करना चाहते हैं लेकिन कर नहीं पाते हैं. उदाहरण के लिये कई लोग किताब पढने की आदत डालना चाहते हैं, लेकिन पुस्तक हाथ आते ही घोर निद्रा से घिर जाते है. ऐसे लोगों को ऐसी किताबे पढनी चाहिये जो उनको दिलचस्प लगे. पचास साल की उमर में भी यदि आपको कामिक पठन से चालू करना पडे तो कोई बात नहीं है. कामिकों का ही शौक करें, एवं करें तीन चार हफ्ते तक नियमित. धीरे धीरे पुस्तकें आपको अच्छी लगने लगेंगी एवं पठन आपके जीवन का हिस्सा बन जायगा.
शौक जरूर पालें — ऐसे बातों का जिनको आप अपने जीवन में उतार लेना चाहते हैं.
अभी तो यह ब्लोगिंग का ही शौक है !
सच कह रहे हैं। मै स्वयम गहरे अवसाद से अपने शौक के कारण ही उबर सका हूं। इस ब्लॉगिन्ग के शौक ने ही एक-आध बार सहायता की है नैराश्य से बचने में।
बहुत अच्छी बात कही आपने.
पर मेरे साथ क्या है कि हर ३-४ महीने मे शौक बदल जाते है.
कुल ५-६ शौक है.
और साल भर घूम फ़िर कर वही आते जाते रहते है.
शौकिया लोगों ने ही दुनियाँ को बदल दिया है और लगातार बदल रहे हैं। बस जरुरत है तो इस बात की कि शौक को अपनाने के बाद उस काम में आदमी प्रोफेशनल सिद्धहस्तता की और बढ़ चले।
सहमत हूँ आपसे. तदानुसार ब्लॉगिंग और टिप्पणी करना तो अब आदत बन गया है, नये शौक की तलाशा में हूँ. 🙂
shashtri jee,
bada hee achha vishay utthaayaa hai aapne waise mere to anubhav ye kehtaa hai ki shauk aksar hee aapke aaspaas kee vaataavarn aur maahual apke doston par bhee nirbhar kartaa hai.
well said.but my depresion is so high ,no hobby wil be continue,only reading something
well said .hobby is only the way to comeout from depression
शौक और रोज़मर्रा की आम जिन्दगी में
मुझे तो वही फ़र्क़ दिखता है, जो आप पत्नी और प्रेमिका में करते हैं ।
एक ढोते रहने की मज़बूरी है, दूसरी जिये जाने की प्रेरणा, क्या कहते हैं आप ?
aajkal blog-reading ka shauk hai jisne likhne ke shauk ko daba diya hain.
जिनको कोई अच्छा शौक नहीँ है उनका जीवन पशु के समान है मुझे तो शौक है रेडियोँ पर विदेशी हिन्दी प्रसारण सुनने का, भारत को सिँगापुर की तरह स्वच्छ और भ्रष्टाचार मुक्त बनाने का,देश-विदेश मेँ हिन्दी भाषियोँ से मित्रता करना,हर तरह की पत्रिकायेँ,समाचारपत्र,पुस्तकेँ,उपन्यास, अच्छे हिन्दी थ्रिलर जासूसी उपन्यास(नावेल्स) पढ़ना और एक कामना कि भारत के हर परिवार प्रत्येक व्यक्ति को कभी भी कहीँ भी जरुरत पड़ने पर स्वच्छ शौचालय मिल सके आज बस इतना ही( ps50236@gmail.comमोबाइल08896968727ब्लागwww.prabhakarvani.blogspot.com