1970 आदि में हिन्दी कामिक्स में ऐसे नायकों ने प्रवेश किया जो उतने ही क्रूर हैं जितने कि उन चित्रकथाओं के खलनायक. अत: इन चित्रकथाओं को पढने वाले भोले भाले मनों में भलाबुरा, सहीगलत, कानूनीगैरकानूनी, एवं नायकखलनायक का अंतर मिटने लगा. सन 2000 में जो पीढी टीनएज में आई उनके मनों से नैतिक मूल्य लगभग पूरी तरह से मिट चुके हैं. चित्रकथाओं के (खल)नायकों ने इस कार्य में बहुत बडा (कु)योगदान दिया है.
इसके विपरीत वेताल, मेंड्रेक, पराग, नंदन, एवं चंदामामा के नायक हमेशा नैतिकता एवं आदर्शों से बंधे रहते थे. नंदन में परीकथायें बहुत आती थीं लेकिन इसके बावजूद कौन नायक है एवं कौन खलनायक यह स्पष्ट रहता था. इन में से कोई भी नायक बंदूक (या तलवार) हाथ में ले अगलबगल में हरेक की छुट्टी नहीं करता था जबकि 70आदि के बाद जो नायक “बाजार” में उतरे हैं वे न्याय एवं कानून के बचाव के लिये उतनी ही हत्यायें करते हैं जितने उन चित्रकथाओं के खलनायक.
वेताल या मेंड्रेक कभी भी दूसरों को मारते नहीं है. लोथार भी शत्रुओं को काबू में लाता है लेकिन उनका विनाश नहीं करता. यह काम वे सब कानून के हाथ सौपते हैं क्योंकि ये नायक एक ऐसे नैतिक समाज के प्रतिनिधि हैं जहां सच एवं न्याय को बहुत ऊचा स्थान दिया जाता है.
वेताल गोली या तलवार का प्रयोग सिर्फ विरोधी के बंदूक या तलवार को निष्क्रिय करने के लिये करता है — न कि उनको मार डालने के लिये. (कल्पनालोक में) मेंड्रेक अपने जादू से दूसरों की हत्या कर सकता है (एवं उसका सहोदर नाग ऐसा करने की कोशिश भी करता है), लेकिन वह अपनी असामान्य शक्ति का प्रयोग सिर्फ भलाई के लिये करता है.
सिर्फ इस तरह के कथापात्र ही नायक एवं खलनायक का अंतर बच्चों को समझा सकते हैं. यदि आपको ये चित्रकथायें कहीं भी मिलें, उनको जरूर खरीदें एवं अबने बच्चों एवं नातीपोतों को जरूर दें.
नहीं मिलते हैं सर!! अब नहीं मिलते हैं..
मैं बहुत बड़ा दिवाना हूं कामिक्स का, मगर अब तो ध्रुव, नागराज, डोगा.. ढूंढने पर बस यही मिलता है.. वेताल अब फैंटम के रूप में अंग्रेजी में मिलता है जिसे पढने की इच्छा नहीं होती है.. हिंदी वाली बहुत ढूंढने पर मिलती है, जितना समय अब नहीं मिलता है..
खैर ध्रुव को पढना अब भी अच्छा लगता है क्योंकि वो भी आज तक किसी की हत्या नहीं किया है(कामिक्स में) और किसी कि जान ना लेने की कसम भी खा रखी है.. वो बस सभी को पकड़ कर कानून के हवाले करता है.. नेट से शॉपिंग करके खरीदता हूं उन्हें मैं..
आप भी मंगा सकते हैं इस पते से.. http://www.rajcomics.com
पहले आपको एक लॉग-इन आई डी बनानी परेगी फिर आप खरीद सकते हैं..
कॉमिक्स के दिवानगी पर मित्र हंसते हैं, मगर जब खरीदता हूं तो पढने के लिये मिन्नते भी करते हैं.. 🙂
कॉमिक्स पढ़ने का शौक तो मुझे भी है, और अब भी पढ़ता रहता हूं. आज भी हर टिंकल और कभी-कभी भी चंपक खरीद लेता हूं. दुकानदार को बता देता हूं कि मेरे लिये नहीं हैं, घर के छोटे बच्चों के लिये हैं 🙂
कुछ और सुपरहीरो जो हत्यायें नहीं करते
स्पाइडरमैन (बेचारा इस रूल के चलते कई बार मरते हुये बचा है)
बैटमैन(ये भी)
सही कहा आपने.
और ठीक यही रवैया फिल्मों का भी रहा.
आपने शायद बहादुर और बेला का जिक्र नहीं किया अभी तक?
ये दोनों खालिस भारतीय नायक-नायिका थे.
वेताल को डायमण्ड कोमिक्स प्रकाशित कर रहा है, मगर हिन्दी अनुवाद इन्द्रजाल कॉमिक्स जैसा उन्नत नहीं है. बहुत बेकार है. फिर भी पढ़ा जा सकता है.
कल आप ने बताया था “कहानीकार न होते हुए भी क्यों नई नई कहानियां ईजाद करने के लिये इतनी मेहनत करता था.”
जरा वे कहानियाँ चिट्ठा पाठकों तक भी पहुँचा दीजिए।
मिल जाये तो पढ़े/पढ़ायें.
यह सब कुछ पढ़ना बहुत अच्छा लग रहा है।
अब तो मन्द्रेक के सहोदर नाग्राजों का बोलबाला है