कल मैं ने प्रदूषण सर्टीफिकेट के अनुभव के बारे में जो लिखा था उससे मुझे कई नई बातें सीखने मिलीं. उदाहरण के लिये कई मित्र बिना किसी भी कागज पत्तर के मजे में गाडी चला रहे हैं, एवं उनको कोई परेशानी नहीं होती है. केरल की स्थिति भिन्न है.
यहां 100 किलोमीटर के सफर में कम से कम तीन जगह गाडियों की जांच होती दिखती है. पुलीस अफसर लोगों के साथ बहुत इज्जत के साथ, लेकिन कडाई के साथ पेश आते हैं. मुझ जैसे मास्टर की तो बडी इज्जत होती है. लेकिन कानून तोडने पर जम कर जुर्माना होता है. 400 रुपये से लेकर 1200 रुपये का जुर्माना एवं कोर्ट की पेशी आम बात है. लेकिन इस कारण आम आदमी को काफी राहत मिलने लगी है. (केरल पुलीस के नीचे से नीचे तबके में में अधिकतर के स्नातक एवं स्नातकोत्तर लोग हैं).
1994 में (जिस साल हम कोचिन पहुंचे), एक दिन में चार पांच गंभीर दुर्घटना हमारे घर के पास (राष्टीय हाईवे 47) होती थी. आज 100 किलोमीटर की लम्बाई में औसत दिन में एक दुर्घटना भी नहीं होती. इतना ही नहीं इस 100 किलोमीटर में पुलीस के तीन या चार एंबुलेंन्स दिनरात चलते रहते है. सबका मोबाईल नम्बर एक है. दुर्घटना होते ही बुला लें, आपके सबसे पास की गाडी आप तक आ जायगी एवं आपको हर तरह की सहायता दी जायगी.
समाज में अमन चैन एवं सुरक्षा तभी होगी जब समाज का एक बडा तबका, नियम-कानून का पालन करवाने वाले आदि नैतिक प्रदूषण से दूर रहें. हम सब कोशिश करें तो न केवल कोचिन में बल्कि देश के हर हिस्से में यह परिवर्तन आ सकता है.
आप जिस तरह की पुलिस और सहायता व्यवस्था का वर्णन कर रहे हैं उस से ऐसा लग रहा है जैसे किसी दूसरे देश की बात कर रहे हैं।
अच्छा है केरळ। सम्भवत केरळ वासियों की नियम प्रियता है। अन्यथा साम्यवादी तो बंगाल में भी हैं पर वहां मामला वैसा नहीं है।
kyaa ye bhaarat me hi hai?
vaise main keral bas ek baar gaya tha.. apni munnar yatra ke samay.. vahan kuchh aisi hi baate dekhi thi to socha tha ki sayad ghumane vaali jagah hai isiliye aisaa hai..
कितना हसीन सपना लग रहा है ये…
बस एक सजग प्रयास की आवश्यक्ता है.
Kya aap ne un Police vaalon ki dress par dhyaan nahin diya. vah bhi saaf suthri aur chamakdaar hoti hai. usmen ek azab si chamak hoti hai.