चिट्ठे पर विज्ञापन से आय के लिये जरूरी है कि अंग्रेजी चिट्ठों पर हर दिन 200 से अधिक "नये" पाठक आयें तथा हिन्दी चिट्ठों पर लगभग 500 से अधिक "नये" पाठक आयें. इसके कुछ निश्चित कारण हैं:
- नये पाठक नई जानकारी की तलाश में आते हैं एवं अकसर उनको यह जानकारी विज्ञापन द्वारा मिल जाती है. नियमित पाठकों का लक्ष्य अलग होता है अत: वे कुछ दिन के बाद विज्ञापन देखना बंद कर देते हैं.
- अंग्रेजी पाठकों की क्रय शक्ति अधिक होती है, क्योंकि वे सामान्यतया विकसित राष्ट्रों से आपके चिट्ठे पर आते हैं. इसका मतलब है कि हिन्दी में विज्ञापनों पर चटका लगना है तो अंग्रेजी चिट्ठों से अधिक पाठक आने होंगे जिन में से कम से कम कुछ लोग अधिक क्रय शक्ति वाले हों.
हिन्दी जगत में फिलहाल दो परेशानियां और हैं:
- कुल पाठक संख्या सीमित है जिस कारण फिलहाल किसी भी चिट्ठे को प्रति दिन 500 "नये" पाठक नहीं मिल पा रहे हैं
- विज्ञापनों पर सामान्यतया वे ही लोग चटका लगाते हैं जो उन विज्ञापित वस्तुओं/सेवाओं को इलेक्ट्रानिक माध्यम से (क्रेडिट कार्ड द्वारा) खरीद सकते है. लेकिन ऐसे लोगों की संख्या पश्चिमी पाठकों की संख्या मे भारत में कम हैं.
कुल मिलाकर कहा जाये तो भारतीय जाल-विज्ञापन बाजार अभी परिपक्व नहीं हुआ है. लेकिन जिस तेजी से देश में परिवर्तन आ रहा है, पाठक बढ रहे हैं, एवं इलेक्ट्रानिक अर्थविनिमय बढ रहा है, उस हिसाब से सन 2010 के बाद (या सन 2011 से) हिन्दीजगत में विज्ञापन से गूगल को फायदा होने लगेगा.
आय में दिलचस्पी रखने वाले पाठक अब दो कार्य कर सकते हैं
- अपने चिट्ठे को अभी से जमाना शुरू कर दें जिससे कि 2011 तक बाजार में आपकी धाक जम जाये एवं जब कटाई शुरू हो तो उत्साह के साथ अपन खलिहान भर सकें. (मेरे अंग्रेजी चिट्ठों पर मैं यह कर रहा हूँ. आंकडे की तरफ इशारा भी कर चुका हूँ).
- फिलहाल हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहें एवं जब कटाई शुरू हो तब अपनी आखें खोलें. आप पायेंगे कि बाकी लोगों के पास परिपक्व खेत हैं, लेकिन आपके पास तो जमीन ही नहीं है.
अच्छे सुझाव दिए हैं।आभार।
कक्षा ठीक है। 2010 में ही पता लगेगा हम ने इस से कुछ सीखा या नहीं।
अच्छे सुझाव…
अच्छी जानकारी. 🙂
पोस्ट के लिये धन्यवाद।
पढ़ कर बहुत कुछ पता चल रहा है। धन्यवाद.
sahi kaha aapne
रोचक जानकारी और सुझाव अच्छे….
बिल्कुल सही कहा आपने। खेतों में फसलें होंगी तभी कटाई हो पाएगी।
हिन्दी चिट्ठाकारी की सबसे बड़ी कमी है कि वह कूपमंडूप बन कर बैठा है अगर हम बाहर की दुनिया की ओर रूख करेगे तो पायेगें कि हमसे बड़े नाम भी आते है। आज के दौर हिन्दी ब्लागर अपने एक समूह में वरिष्ठ बन कर खुश हो जाते है। ज्ञान जी अनूप जी को पढ़कर अनूप जी को खुश कर देगे ओर अनूप जी ज्ञान जी को, उन्हे यह फर्क नही पढ़ता कि क्या लिखा गया, बस यह जरूरी है कि लिखा गया है। आज के दौर में कोई नये ब्लागरों को प्रोत्साहित नही करना चाहता है, हम जहाँ है जितने में है अगर सम्मानित है तो खुश है। अगर मै लिंक पोस्ट की बात करूँ तो सिर्फ कुछ हद तक कुछ लोगों के मध्य ही लिकिंग पोस्टे लिखी जाती है जो प्राय: आपस में होती है ब्लाग का अर्थ होना चाहिए मन की अभिव्यक्ति को रखना। हमारे पास बहुत से विषय होते है जो हम लिख सकते है किन्तु विवादों से बचने के लिये लिखने से बचते है। इसलिये हिन्दी पाठक और लेखक वर्ग का दायरा सीमित है। अगर हम अपने दायरे का विस्तार करे तो पायेगें कि हम आपस मिल कर अपने पाठकों को बढ़ा रहे है। जिस दिन ज्ञान जी और अनूप जी एक दूसरे के ब्लाग के इतर जायेगें उस दिन उनके ब्लाग पर पर उनके नियमित पाठक से इतर आयेगे भी। और नये पाठकों के आने से कमाई तो बढ़ेगी ही, सीधी सी बात है कि ज्यादा तर ब्लागर एक दूसरे के विज्ञापन पर क्लिक नही करते है और करना भी नही चाहिये।
( मैने कुछ नाम लिये है कृपया ये बुरा न माने।)
लगता है कमाई कराने वालों की फौज के आगे अपनी दुकान बंद ही हो जायेगी !