मेरे लेख कृपया लट्टू बंद कर दें!! एवं कर भला तो हो भला क्यो? पर मित्रों ने जितनी भी सकारात्मक नकारात्मक टिप्पणियां दीं हैं उनके लिये मैं आभारी हूँ. नकारात्मक टिप्पणियों द्वारा ही मित्रों के मन के प्रश्न समझ में आ पाते हैं अत: हमेशा उनका स्वागत रहेगा.
सारे पाठकों के मन में सब से बडा प्रश्न यह है कि कुछ हो सकेगा या नहीं. मेरा जवाब है कि एक दिन में कुछ नहीं हो सकेगा, लेकिन भारतीय मनीषियों के कहे अनुसार बूंद बूंद से घट जरूर भरेगा मित्रों. इसके एकदो उदाहरण केरल के समाज से मैं इसके पहले दे चुका हूँ, और आज एक उदाहरण और देना चाहता हूँ.
केरल स्वर्ग नहीं है, लेकिन शिक्षा के प्रसार के कारण यहां काफी तेजी से सामाजिक परिवर्तन आ रहा है. उदाहरण के लिये यदि आप के द्वारा खरीदी गई कोई भी चीज घाटिया निकले और आप उसे वापस दुकानदार के पास ले जायें तो 80% लोग उसे बिना कोई प्रश्न पूछे बदल देते हैं. बाकी बचे लोगों को एक लिखित शिकायत दे दीजिये, वे तुरंत आपकी सुन लेंगे. इसका एक कारण है:
जैसे ही उपभोक्ता-संरक्षण नियम लागू हुआ, केरल के सजग लोगों ने अपनी शिकायतें संरक्षण समितियों को देना शुरू किया. अखबारों ने इन खबरों को छापना शुरू कर दिया. इसका असर यह हुआ कि दुकानदार अपने आप सावधान हो गये एवं ग्राहक को अच्छी सेवा मिलने लगी.
कुछ महीने पहले सुपरमार्केट में खडे उसके मेनेजर से मैं ने कहा कि पिछले हफ्ते चिवडे में फफूंदी लगी थी तो उसने तुरंत कहा कि उसे वापस कर दें. जब मैं ने कहा कि उसे तो हम ने फेक दिया तो उसने तुरंत रसीद पर टिप्पणी लगा दी कि उतना पैसा मेरे अगले बिल से कम कर दिया जाये. किसी प्रमाण की जरूरत नहीं पडी.
आज यदि केरल के उपभोक्ता कोर्ट पधारें तो उसमें अधिकतर केस सरकारी कंपनियों के मिलेंगे. निजी व्यापारी लोग खराब माल बदल कर ऐसी मुसीबत से बचने की कोशिश करते है. लेकिन यह सब चालू हुआ एक या दो सजग व्यक्तियों के कारण. उन्होंने मलयालम भाषा में उपभोक्ता संरक्षण पर पत्रिकायें निकालीं. लोगों में चेतना जगाई. जल्दी ही वे पत्रिकायें बंद हो गईं (3 से 5 साल में), लेकिन जो करना था वह इस समय में उन लोगों ने कर दिया. एक आदमी बहुत कुछ कर सकता है.
हिन्दुस्तान एक दिन में स्वर्ग नहीं बन जायगा. लेकिन यदि मैंआप जागरूक हो जायें तो सतयुग कभी न कभी तो आयगा.
शास्त्री जी,
आपके चिट्ठे को पढकर एक पाजिटिव ऊर्जा का संचार सा होता है ।
छोटे छोटे बहुत से काम मिलकर एक बडा प्रभाव लाते हैं । कैसी विडम्बना है कि बचपन से हमें सिखाया जाता है कि एक एक पैसा जोडकर धन बचता है, बूंद बूंद से सागर बनता है लेकिन जब सामाजिक जिम्मेदारी की बात आती है तो लोग व्यवहारिकता के लबादे में छिप जाते हैं ।
इन सभी लेखों के लिये बहुत धन्यवाद ।
होगा। आप अलख जलाये रहिये! कभी तो सवेरा होगा ही।
वो सुबह कभी तो आयेगी….
चलिए कहीं तो परिवर्तन आ रहा है वरना हम तो समझे थे कि हिंदुस्तान का कुछ नहीं हो सकता 🙂
सही लिखा है यदि हम सजग रहें तो देर नही होगी।
आपके पिछले दो लेखों में समयाभाव के कारण टिपण्णी तो नहीं दे सकी, परन्तु आप का प्रयास स्तुत्य है.
लगे रहिये. दूसरों को जगाना कठिन काम है, मैं ऐसा कम ही कर पाती हूँ, लेकिन मैं अपने लगभग हर कर्तव्य को निभाने की पूरी कोशिश करती हूँ.
कम से कम ख़ुद पर तो मेरा नियंत्रण बना हुआ है, इस बात की मुझे खुशी है.
आप जगाते रहिये, लीडर बनें, हमें, कमसे कम मुझे तो जरूरत है.
सतयुग कभी न कभी तो आयगा.
यह तो मात्रात्मक परिवर्तन है किसी दिन यही गुणात्मक परिवर्तन में भी बदलेगा।