नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे| त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोहम|
महामंगले पुण्यभूमे त्वदर्थे| पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते||
इसमें कोई शक नहीं कि हम भारतियों की सोच में घुन लग गया है. वसुधैव कुटुम्बकम की सोचने के बदले हमारी सोच में हर ओर स्वार्थ आ बैठा है. हम हर तरह के आदर्श की प्रशंसा करते हैं, लेकिन दैनिक जीवन में इन चीजों की धज्जियां उडाते हैं. असल कारण यह है कि हम सब की दूरदृष्टि खतम हो चुकी है.
एक बार एक मुसाफिर ने एक अस्सी साल के किसान को उसके बागान में बदाम के पौध लाते देखा. उसने पूछा कि बाबा, बदाम तो 20 साल या उससे अधिक सालों में फल देता है अत: इस बुढापे में इन पौधों को लगाकर आप क्या पा लेंगे. बूढे ने जवाब दिया, "बेटा, मेरे बापदादों के लगाये पौधों के बदाम मैं ने खाये एवं उसी तरह से अपने आगे की पीढी के लिये मैं भी कुछ दे जाना चाहता हूँ".
जब हम प्लेटफार्म टिकट खरीदने से हिचकते हैं, बाजार में टेक्स देने से हिचकिचाते हैं, तब यह भूल जाते हैं कि हम अपने बच्चों को चोरी की महिमा सिखा रहे हैं. आप कहेंगे कि सरकारी बाबू एवं राजनेता हमारा पैसा खा रहे हैं अत: क्यों टेक्स दें. यह वैसा ही तर्क है कि चोरियां रुक नहीं रहीं अत: अब घर क्यों बनायें, या घर बना लिया तो ताला क्यों लगाये.
उच्च स्तर की चोरी हो रही है तो इसका मतलब यह नहीं है कि हम लोग निम्न स्तर की चोरीचपाटी करें एवं यह नजरिया अपने बालबच्चों को सिखायें. दोनों अलग अलग चीजें हैं. यदि उच्च स्तर पर चोरी रोकनी है तो या तो हम अपने स्तर पर कुछ प्रयास करें, या जो व्यक्ति एवं संस्थायें इस दिशा में काम कर रहे हैं उनको समय एवं धन देकर देशसुधार का कार्य करें. यदि अपने स्तर पर आज हम यह कार्य करें तो कल हमारे बच्चों को इसका फल मिलेगा.
यदि हम अपने चुनावों के दूरगामी परिणामों को नजरअंदाज कर दें तो कह सकते हैं कि "मुझे क्या लेनादेना". लेकिन यदि हम जीवन को समग्र दृष्टि से देखें तो कहना पडेगा कि हम सब को पडी है समाज सुधारने की.
आईये, आज एक निर्णय लें कि हम अपने शहीदों को आदर देते हुवे मुझआप से जो कुछ हो सकता है वह करेंगे.
बिलकुल सत्य कह रहे हैं आप। किसी भी सुधार का अरंभ अपने ही आसपास से किया जाना आवश्यक है। आज की पीढी में नव बीज रोपित करना ही होगा…हमने अपना वर्तमान तो होम कर ही लिया है किंतु आज जाग कर अपने भविष्य को संभवत: नयी सुबह दे सकें..
स्वाधीनतादिवस की शुभकामनायें।
***राजीव रंजन प्रसाद
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स्वतंत्रता दिवस की बधाई और शुभकामनाएं.
वंदेमातरम्!
ये लेख आप ने ज़रूर कहीं से टीपा है, ये आप कि मौलिक रचना नहीं हो सकती है. आप के चिट्ठे का स्तर गिर क्यों रहा है ?
आप साप्ताहिक लेख लिखें, वह सही है पर आपसे ऐसे कमज़ोर लेख की उम्मीद कम से कम मैं नहीं करता.
ऐसे प्रेरक-प्रसंग बहुत पढ़े हैं, ऐसा ठंडा लेख हमें नहीं चाहिये.
यह एक सामान्य सोच है कि जब सरकार चोर है तो हम क्यों टैक्स दें. आप इसे किसी भी कमज़ोर तर्क से या मज़बूत तर्क हों तो भी इसे नहीं बदल सकते.
” सुखं वर्धितोहम ” का भाव उसी पहली पंक्ति में ही सिमट कर रह गया है, क्यों ? क्या आप निराश हैं ?
अंत भी एकदम थका हुआ है. “जो कुछ हो सकता है वह करेंगे.”
मेरी इच्छा —
हे सारथी ! तुम कृष्ण हो, मुझे राह दो, मुझे राह दो.
मैं ना रुकूं, मैं ना झुकूं, ऐसी ह्रदय में चाह दो.
सारथी की स्थिति —
अब थक गया, बस हो चुका.
जब तक था दम मैं ना रुका,
पर अब मुझे विश्राम दो.
जीवन को अब आराम दो.
शास्त्री बाबा ! आदमी रुका तो समझो मर गया.
और आप तो सारथी हो. सारथी कभी मरा नहीं करते, आखिरी साँस तक रास्ता दिखाते हैं.
है पार्थ फ़िर से डिग गया, उसको न छोडो राह में.
मेरा साथ दो, मुझको दिखाओ जो मैं भूला राह में .
हे सारथी ! तुम कृष्ण हो, मुझे राह दो, मुझे राह दो.
मैं ना रुकूं, मैं ना झुकूं, ऐसी ह्रदय में चाह दो.
एक सवाल — एक कमज़ोर सारथी कैसे राह दिखायेगा !!
आपके इन विचारों से असहमत होने का प्रश्न ही कहां है।
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
आप से सहमत हैं। लेकिन एक एक चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। समान उद्देश्य वाले लोगों को एक मंच पर आना पड़ेगा, अपने मतभेदों को दरकिनार कर के। हाँ साथ काम कर के मतभेद भी हल किए जा सकते हैं।
शास्त्री जी स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं. इस लेख में कही बातों से सहमत हूं.
स्वतंत्रता दिवस की बहुत बधाई एवं शुभकामनाऐं.
बिलकुल सही और सच्ची बात कही है आपने। वसुधैव कुटुम्बकम की भावना जिस दिन हम सब में पैदा हो जायेगी यकीनन देश आज़ाद हो जायेगा…
शास्त्री जी आपको व आपके पूरे परिवार को स्वतंत्रता दिवस की शुभ-कामनाएं…
जय-हिन्द!
सही है – एक एक कदम बढ़ाने से मंजिल मिलेगी।
शास्त्री जी, अगर हम अपने बच्चों को ही आदर्श दे पाएँ तो बहुत बड़ी सफलता होगी…. कोशिश करते रहने से ही सफलता मिल सकती है..
आपको व आपके पूरे परिवार को स्वतंत्रता दिवस की शुभ-कामनाएँ ….