पी एन सुब्रमन्यन
इस वर्ष अप्रेल के महीने में सपरिवार उडीसा घूमने का कार्यक्रम बना. रायपुर से भाईयों का, बम्बई से आया हुआ, दो परिवार भी साथ था. भुबनेश्वर, कोणार्क, एवं पुरी हमारे निशाने पर थे. भ्रमण स्थलों की सूची मुझे बनानी थी. रायपुर से सीधी रेल सेवा उपलब्ध थी. एक शाम हम सब ने यात्रा प्रारम्भ की. भुबनेश्वर एवं पुरी में ठैरने की अग्रिम व्यवस्था कर ली गई थी. दूसरी सुबह हम सब भुबनेश्वर में थे. स्नान पान आदि से निवृत्त होकर स्थानीय भ्रमण हेतु निकल पड़े. भुबनेश्वर प्राचीन मंदिरों का शहर है. वहां के प्रमुख ऐतिहासिक धरोहरों को देखने के बाद पास के धौलगिरि, खंडगिरी और उदयगिरी की ओर निकल पड़े.
उदयगिरी की गुफाएं मेरे लिए महत्वपूर्ण थी. यहाँ इतिहास प्रसिद्ध (दूसरी सदी ईसापूर्व} कलिंगराज खरवेळ का शिलालेख विद्यमान था. मेरे मन में उसे देखने की लालसा थी. सीढियों से होकर पहाडी पर चढ़ना था. परिवार की महिलाओं में ऊपर आकर गुफाओं को देखने की रूचि नहीं थी. लिफ्ट होता तो कोई बात होती. वे सब दूसरी दिशा में चल पड़े. मैं अपने पुत्र, भतीजे और भतीजी को साथ लेकर अपने पूर्व निर्धारित लक्ष्य की ओर निकल पड़ा.
ऊपर जाकर जितने भी दर्शनीय गुफाएं आदि थी, देखा. कलिंगराज खरवेळ का शिलालेख भी दिख गया. फिर बायीं ओर चल पड़े. सामने एक शेर के मुंह के आकर में तराशी गई गुफा दिखी. उसके सामने एक आयताकार मंच भी दिख रहा था. मुझे ऐसा लगा जैसे यह चिरपरिचित जगह है. मस्तिष्क में एक दूसरी गुफा का चित्र साकार हो रहा था. रामगढ पहाडियों की सीताबेंगरा और जोगीमढा गुफाएं जो सरगुजा जिले (छत्तीसगढ़) में हैं. दोनों में समानताएं थीं. अब हम उडीसा से छत्तीसगढ़ की ओर रुख कर रहे हैं.
1. उदयगिरी
2 सीताबेंगरा (नाट्यशाला)
सीताबेंगरा की गुफा एवं आस पास की चट्टानों को तराश कर जो निर्माण हुआ है उसे विश्व की प्राचीनतम नाट्य शाला होने का गौरव प्राप्त है. कलाकारों के लिए मंच निचाई पर और दर्शक दीर्घा ऊँचाई पर है. प्रांगन 45 फुट लंबा और 15 फुट चौडा है. इस नाट्यशाला का निर्माण ईसापूर्व तीसरी शताब्दी का माना गया है चूँकि पास ही जोगीमढा गुफा के दीवार पर सम्राट अशोक के काल का एक लेख उत्कीर्ण है. ऐसे गुफा केन्द्रों, का मनोरंजन के लिए प्रयोग प्राचीन काल में होता रहा है.
पास ही की जोगीमढा गुफा 15 फ़ुट लम्बी और 12 फ़ुट चौडी है परन्तु ऊंचाई इसकी सीताबेंगरा से कुछ अधिक है. ऊपर की चिकनी छत पर भित्ति चित्र बने हुए हैं जिनमे कुछ साधू संतों की आकृति वाले भी हैं. “जोगीमढा” नाम से ही प्रतीत होता है की इसका प्रयोग जोगियों अथवा भिक्षुओं के द्वारा किया जाता रहा होगा. इसी गुफा की दीवार पर विश्व का सर्व प्रथम प्रेम लेख उत्कीर्ण है. अशोक के काल (तीसरी सदी ईसा पूर्व) के ब्राह्मी अक्षरों में यह लेख है. शुद्ध मागधी भाषा में लिखा हुआ इसे एक मात्र लेख माना गया है. इसका एक कारण तो दासी शब्द को दाशी लिखा जाना है.
पहाडी पर खुदा प्रेम लेख
लेख का हिन्दी रूपांतर
1. सुतनुका नाम
२. देवदाशिय
३. सुतनुका नाम देवदाशिकी
४. ताम कामयिथ बालुनसुये
५. देवदीने नाम लूपदखे
भावार्थ : “सुतनुका देवदासी के लिए – सुतनुका नामक देवदासी पर देवदीन, वाराणसी का रूपदक्ष (शिल्पी) मोहित हो गया”
(भिन्न भिन्न स्रोतों में लेख के मूलपाठ एवं अनुवाद में अन्तर पाया गया है. अतः मैंने स्वयं ही स्वविवेक से रूपांतरित किया है जो मुझे अधिक उपयुक्त प्रतीत हो रहा है – धृष्टता के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ)
एक बात जो मुझे खटक रही है वह है लेख के अक्षरों में एकरूपता का आभाव. ऐसा नहीं लगता की किसी अच्छे कलाकार (शिल्पी) ने इन्हे रचा हो. नीचे उदाहरण स्वरुप अशोक के गिरनार शिलालेख का अंश देखें. अक्षर कितनेसुडौल और योजनाबद्ध हैं. देवदीन ने अपने प्रेमलेख के साथ न्याय नहीं किया है.सम्भव है नशे में रहा हो.
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‘इस लेख का अँग्रेज़ी संस्करण यहाँ उपलब्ध है’
अद्भुत जानकारियों से भरे लेख के लिए आभार।
उत्कीर्ण प्रेम लेख वाकई बहुत ही रोचक है। एक शिल्पी के लिए अपने प्रेम का संदेश को पहुँचाने का इस से अच्छा कोई साधन नहीं हो सकता था।
शास्त्री जी
शुभ-प्रात:
पी एन सुब्रमन्यन का आलेख खोजपरक एवं हिन्दी में शोध कराने वाले
विद्यार्थियों के लिए उपयोगी साबित होगा . छत्तीसगढ़ के पूरा वैभव
का विवरण प्रस्तुत कराने का आभार
छत्तीसगढ़ के पूरा वैभव में पूरा को “पुरा” प्रतिस्थापित कर पढ़ा जावे
शुक्रिया।
अद्भुत जानकारियों से भरे लेख के लिए आभार।
कमाल है.
बहुत रोचक…दुर्लभ जानकारी
सुंदर…प्रभावशाली प्रस्तुति.
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आभार
डा.चन्द्रकुमार जैन
बनारसियों में सौदर्यबोध के उदगम की यह खोज यात्रा मन भा गयी ….