मेरे कई मित्रों ने मेरे पिछले लेख बढती हुई यौनिक गंदगी! पर दिलचस्प एवं चितनीय टिप्पणियां दीं जिनके लिये मैं आभारी हूँ. उनकी टिप्पणियों के संदर्भ में मुझे कुछ बातें और कहनी हैं:
शास्त्री जी यह हरि अनंत हरि कथा अनंता जैसा ही अंतहीन विवाद है -यौन भावना मनुष्य की प्रबलतम जैवीय भावनाओं में से है -लाख जतन करो तब भी यह अपना आउटलेट खोज ही लेगी — इस पर शिक्षा आदि पैसे की बर्बादी है. Dr.Arvind Mishra
डा अरविंद ने सही कहा है कि काम भावना अपना आउटलेट खोज लेगी. लेकिन मेरा उद्देश्य इस आउटलेट को नकारना नहीं है. मैं तो भारतीय यौन अवधारणा का प्रचारक हूँ जहां ( पानी को बांध में संगृहीत कर नियंत्रित तरीके से पनबिजली को उत्पन्न करने के समान) कामवासना को नियंत्रण में रख कर सही दिशा में उसके बहाव को मोडने को हर तरह का धार्मिक, नैतिक, एवं सामाजिक प्रोत्साहन दिया जाता है. अपने लेख बढती हुई यौनिक गंदगी! में मैं ने इस विषय में पाठको को चेतावनी देने की कोशिश की है कि आपराधिक तत्व इस बहाव को गलत दिशा में ले जाने की एक "नवीन" कोशिश कर रहे हैं को इसके पहले नहीं हुआ करता था, एवं इसका परिणाम हम सब की सोच से अधिक विध्वंसक होगा. इस पर और अधिक प्रकाश अगले लेखों में डालूँगा.
मानसिक विकृति बहुत व्याप्त है। शायद सभी पीढ़ियों में है।Gyan Dutt Pandey
ज्ञान जी सही कहते हैं कि मानसिक विकृति बहुत व्याप्त है, एवं सभी पीढियों में है. लेकिन मेरा इशारा उस ओर नहीं है. सवाल विकृति का नहीं है. यौनिक विकृतियां हर समाज में पाई जाती हैं, लेकिन भारतीय यौनोत्तेजक (पोर्नोग्राफिक) साहित्य में एक नया मोड आया है जो परिवारों के भीतर ही भीतर यौनिक अपराधों को जन्म दे रहा है. यह एक खतरनाक विकास है एवं हम सब को इसके विरुद्ध (कम से कम अपने अपने परिवारो में) जुटना होगा. इसका विश्लेषण अगले चिट्ठे में दूंगा.
बहुत सही कहा आपने शास्त्री जी. हकीकत यही है, फिर भी हम विरोध करना है के लिये विरोध तो करते हैं लेकिन असलियत स्वीकारने से डरते हैं. एक ओर हम मस्तराम को पढ़ते हैं दूसरी ओर सामने आकर उसका विरोध करते हैं. आखिर हम एक मुहिम चला कर क्यों नहीं इन जैसी अश्लील ब्लागों को फ्लैग करने का अभियान चलाते. Ramashankar Sharma
रमाशंकर जी सही कहते हैं, एवं इस तरह के एक मानसिक-सामाजिक नैतिक आंदोलन को मन मे रख कर ही मैं ने इन दिनों यह कठिन विषय चुना है. उम्मीद है कि इन लेखों के द्वारा कई लोग विषय की गंभीरता को समझेंगे एवं आप जैसे आंदोलन की बात कर रहे हैं उससे जुडेंगे.
इस बीच दिनेश जी ने मेरे मन की बात कह दी है जो इस प्रकार है:
यौन शिक्षा का उद्देश्य ही यौन जिज्ञासा को भटकाव से रोकना होना चाहिए। इस के लिए एक सही दिशा में ले जाने वाली यौन शिक्षा जरूरी है। यह पारंपरिक अर्थात परिवार में ही प्राप्त हो सके तो सर्वोत्तम होगी। दिनेशराय द्विवेदी
अगले चिट्ठे में असली समस्या का खुलासा करने की कोशिश करूंगा.
मुझे पारंपरिक रूप से गणित-ज्योतिष, वैद्यकी, अध्यापन आदि सिखाने के भरपूर प्रयास किए गए। इन का लाभ जीवन में इस रूप में मिल रहा है कि कोई ज्योतिषी मुझे धोखा नहीं दे सकता। स्वास्थ्य रक्षा प्राथमिक स्तर पर ही हो लेती है, चिकित्सक तक जाने की नौबत कम ही आती है इत्यादि। माँएँ अपनी बेटियों को एक हद तक यौन शिक्षा देती ही आई है। यौन शिक्षा के लिए उन्हीं माताओं को और शिक्षित किया जाए जिस से वे अपनी बेटियों को उचित उम्र में यह ज्ञान हस्तांतरित कर सकें। लड़कियों के लिए यह जानकारी आत्मरक्षा के हथियार जूड़ो और कराटे से कम महत्वपूर्ण नहीं। पिता और घर के बुजुर्ग अपने तरीके से यह ज्ञान क्यों नहीं अपनी नयी पीढ़ी को हस्तांतरित नहीं कर सकते? यह मेरी समझ से परे है। इस दिशा में काम करने की बहुत जरूरत है।
Dear Shastri ji,
U r doing a commendable job by writing on these problems . i urge u to continue with it and it must be brought to govt.’s notice as well . it is a matter of pride to have a scholar like u in the blogosphere. i extend my hearty support .
Regards,
Munish
सहमत !दिनेश जी ने बड़े मार्के की बात कही है कि सिखाने वाले को भी अपने ज्ञान को अद्यतन करते रहना होगा .दरअसल जिनसे हम सिखाने की अपेक्षा कर रहे हैं वे ख़ुद कई टैब्बू पाले हुए हैं .प्राथमिक क्लास उनकी होनी चाहिए .
आज समाज में हर तरह की फिल्म, चित्र, और साहित्य उपलब्ध हैं। यौन-पतन इस कारण हो रहा है न कि यौन शिक्षा के कारण। मेरे विचार से यौन शिक्षा के द्वारा यह पतन रोका जा सकता है। मैं इसलिये यौन शिक्षा का पक्षधर हूं। मैंने कई लेख इस बात को स्पष्ट करने के लिये लिखें हैं किस तरह मुझे यौन शिक्षा मिली, कैसे मैंने यौन शिक्षा दूसरी पीढ़ी को दी, और उसका क्या फल निकला। मेरे विचार से इस विषय से मुख मोड़ना ठीक नहीं है।