लगभग 15 साल पहले एक मां अपने 10 साल के बच्चे को लेकर मेरे पास परामर्श के लिये आईं. बच्चे की समस्या यह थी कि किसी भी परिक्व स्त्री को देख कर उसे तीव्र यौन उत्तेजना होने लगती थी एवं अब यह उत्तेजना उसके जीवन को तहस नहस करने लगी थी. उसे सबसे अधिक परेशानी विद्यालय में होती थी जहां अध्यापन अधिकतर स्त्रियां करती थीं.
उस बच्चे की परेशानी यह थी कि एक के बाद एक जब उसकी अध्यापिकायें कक्षा में आती थीं तो सुबह से शाम यौनिक उत्तेजना के कारण वह पढाई पर ध्यान नहीं दे पाता था. सौभाग्य की बात थी कि उसकी मां अपने बच्चे से मित्रवत व्यवहार करती थी, अत: जब बच्चे से परीक्षा में कम अंक मिलने का कारण पूछा तो उसने अपनी समस्या अपने शब्दों में मां को बता दिया. मां मनोवैज्ञानिक तो नहीं थी, अत: बच्चे के साथ बडी संवेदनशीलता के साथ बहुत पूछताछ करने के बावजूद उनको समस्या का कारण नहीं समझ में आया एवं वे उसका निदान नहीं कर सकी.
देवयोग से उनके बडे भाई मेरे बारे में जानते थे एवं उनके कहने पर एक दिन मां उस बच्चे को मेरे पास छोड गईं. मुझे समस्या की जड तह पहुंचने में दस मिनिट से अधिक समय नहीं लगा. लगभग पांच छह मिनिट में बालक ने अपनी समस्या बताई. उसे सुन कर मैं ने सिर्फ एक प्रश्न पूछा: बेटे आपके मन में इस तरह का आकर्षण कैसे आरंभ हुआ. उत्तर में जो उस बच्चे ने बताया वह चौंका देने वाली बात थी. यह हम सब के परिवार में घट सकता है अत: ध्यान से पढें.
उस बच्चे के मांपाब दोनों नौकरी करते थे एवं शाम को सिर्फ 6 बजे के आसपास लौटते थे. लेकिन यह बच्चा दोपहर को 1 बजे के आसपास घर आ जाता था. घर के ऊपरी मंजिल में कुछ बहुत ही शरीफ नौजवान रहते थे एवं शिफ्टड्यूटी के कारण उन में सो कोई न कोई दिन के समय घर पर मिलता था. अत: मांबाप ने यह व्यवस्था कर रखी थी कि बच्चा आते ही ऊपर चला जाता था, वहां मां द्वारा रखे गये टिफिन से खाना खा लेता था, एवं किसी एक खाली बिस्तर पर सो जाता था.
एक बार जब बच्चे की नींद खुली तो उसे अपने गद्दे के नीचे कुछ सरसराहट की आवाज सुनाई दी. देखा तो कुछ अंग्रेजी पत्रिकायें थीं जिनमे काफी सारे नग्न चित्र थे. हडबडा कर उसने उनको वापस रख दिया एवं उसे ऐसा करते किसी ने न देखा. लेकिन उसकी जिज्ञासा जाग चुकी थी. आने वाले महीनों में उसने अवसर देख कर, जब घर पर उपस्थित नौजवान नहाने के लिये या बाजार जाता था तो टटोल कल उन पत्रिकाओं को देखने लगा. हर बार एक नई पत्रिका, नये चित्र एवं नया अनुभव हुआ. इसके कुछ समय बाद उसने पहली बार नोट किया कि परिपक्व स्त्रियों को देखने पर उसके मन में कुछ विशेष प्रकार के भाव आने लगे हैं, लेकिन वे भाव क्या हैं उसे वह न समझ पाया. वह अगली कक्षा में पहुंचा तब तक यह समस्या जड पकड चुकी थी एवं वह समझने लगा था कि यह एक प्रकार का यौनाकर्षण है. लेकिन मुझ से बातचीत करने तक उसका अपरिपक्व मन कभी भी यह नहीं समझ पाया था कि इन सब का कारण क्या है.
मेरे परामर्श को उसने एवं उसकी मां ने बहुत गंभीरता से लिया एवं लगभग एक साल में वह एकदम सामान्य हो गया. उसकी मित्रवत एवं करुणामई मां ने इस मे एक बहुत बडा रोल अदा किया. कुछ महीने पहले उसकी शादी हो गई एवं वह एकदम सामान्य जीवन बिता रहा है.
हर कथन, हर नारा, हर कहानी का असर सुनने वाले पर होता है. हर चित्र का असर देखने वाले पर होता है. इसे जब दस से बीस बार दुहराया जाता है तो वह सोच मानव मन में बहुत गहरा पैठ जाती है. असामान्य उस व्यक्ति के लिये सामान्य, एवं जुगुप्साजनक बातें भीं उसको आनंददायक लगने लगती हैं. इस बात को प्रदर्शित करने के लिये ही मैं ने उपर लिखा उदाहरण आप सबके समक्ष रखा है. जो "सोच" हमारे मन को बार बार प्रभावित करती है, वह आज या कल हम को अपनी गुलामी में जकड भी लेती है.
मैं ने अपने निम्न लेखों
में यह कहने की कोशिश की थी कि यौनोत्तेजक सामग्री हर समय एवं काल में उपलब्ध रही है, लेकिन पिछले तीन से पांच सालों में यह एक नये तरह की सोच एवं फिलोसफी लोगों के मन में बैठाने की कोशिश कर रही है कि व्यभिचार का असली मर्म इसे परिवार के भीतर ही भीतर करने में है क्योंकि यह आसान है, एवं सुरक्षित है. बहुत से नौजवान अनजाने, जिज्ञासा के कारण, इस तरह की सामग्री पढते हैं. आज या कल इसका असर होने लगता है एवं मुझ जैसे पारिवारिक जीवन में परामर्श देने वाले लोगों के सामने इस तरह की समस्यायें आने लगी हैं
उन्मुक्त जी सहित कई मित्रों ने अपनी टिप्पणियों में परिवार द्वारा अपने बच्चों का आवश्य यौन शिक्षा वैज्ञानिक आधार पर देने की जरूरत पर जोर दिया है. मैं उनका अनुमोदन करता हूँ एवं यह जोड देना चाहता हूँ कि भारतीय अवधारणा के आधार पर यह वैज्ञानिक ज्ञान बच्चों को दिया जाए. लेकिन इसके साथ हमारी जिम्मेदारी खतम नहीं हो जाती.
हर मांबाप की जिम्मेदारी है कि वह अपने बच्चों को कूडा कर्कट एवं जहर से बचा कर रखें. आपके परिवार का माहौल ऐसा होना चाहिये कि संयोग से यदि आपका बच्चा किसी समस्या में फंस जाता है तो वह आकर हिम्मत के साथ आपको अपनी समस्या बता सके.
मेरे पिछले लेख पर आई निम्न टिप्पणियां हम सबको एक बार और ध्यान से पढ लेना चाहिये:
अभी हाल ही में रक्षाबंधन मनाया….अक्सर मजाक में या एसएमएस पर कुछ लड़कों से सुनने को मिलता है कि रक्षाबंधन के समय लड़कियों से बचकर रहना कहीं भाई ना बना लें…..जबकि सारे के सारे अनगिनत गर्लफ्रेंड रखने में बड़े गर्व का अनुभव करते हैं. वाकई बहुत कुछ बदल रहा है….अब बात यहां तक आ पहुंची है कि लोग अपनी कजिन तक के बारे में ऐसे विचार रखते हैं….हालांकि मेरा मानना है कि ऐसी विकृतियां पहले से समाज में मौजूद रही होंगी…हालांकि अब वे ज्यादा लोगों में फैल रही हैं… bhuvnesh
वाकई ये बहुत चिन्ताजनक है, ये साहित्य एक तरीका बताते है.. अगर ये एसे ही चलता रहा तो हो सकता है भविष्य में लोग इसे ही सत्य मानने लगे.. रंजन
चिंता की बात है. अभी-अभी बातचीत के दौरान मेरे मुंह से निकाल गया कि समाज का एक बड़ा तबका समाज से बौद्धिकता को खत्म कर देना चाहता है ताकि वह ज्यादा से ज्यादा भाव में बिक सके. बौद्धिकता के रहते उनका बिक पाना कदापि संभव नहीं है, इसलिए वे इसे खत्म कर देना चाहते हैं. सिनेमा, खबरिया चैनलों, मुद्रण माध्यमों, को लीजिए, अपने आपको ज्यादा से ज्यादा भाव में बेचने के लिए ये लोग क्या-क्या नहीं कर रहे हैं, सबका लक्ष्य इंसान के अंदर से उसकी बौद्धिकता को समाप्त करना है. SATYAJEETPRAKASH
सारथी जी, बेहद संवेदनशील और ज़रूरी मसला उठाया है आपने। शुक्रिया। इसी तरह हम जैसे आम लोगों के दिमाग में छाए अंधेरे को दूर करते रहेंगे, यही अपेक्षा है। अनिल रघुराज
शास्त्री जी, इस विषय पर आप अपने अनुभव बांटेंगे तो लोगों को प्रेरणा मिलेगी। यौन जिज्ञासा को शांत करने की उम्र वही है जब शरीर में पहले पहल उत्तेजना महसूस होने लगे। उसी उम्र के पहले ही उसे इस के बारे में जानकारी देना आरंभ करना उचित है। अन्यथा गलत तरीके विकृतियाँ ही पैदा करते हैं। एक लड़की को जानकारी न होने पर पहला रजस्राव दहला देता है।
10 साल का बच्चा !!! आश्चर्य हो रहा है…
यह विषय अत्यन्त गम्भीर और पेंचीदा है। लेकिन इसके महत्व को देखते हुए हमारी जिम्मेदारी है कि हम इसे समझें और आगे आने वाली पीढ़ी को पतित होने से बचाएं। शास्त्री जी की यह लेखमाला विषय को बहुत सहज व बोधगम्य बनाकर प्रस्तुत कर रही है। यह उनकी ओर से हिन्दी ब्लॉगजगत को एक अनमोल उपहार है।
मैं आश्चर्य चकित हूं – इस स्तर पर हो रहा है समाज का विकृतिकरण।
नमस्कार शास्त्री जी,
आज यूँ ही टटोलते टटोलते यहाँ पहुँच गया.
पहलीबार आपको पढ़ रहा हूँ,पर सच कहूँ तो जो खुशी मुझे मिली है उसकी तलाश मैं लगभग ८-१० महीनो से कर रहा था.ऐसे विषय पर अमूमन कम ही पढने को मिलता है,बहुत बहुत धन्यवाद.
आलोक सिंह “साहिल”
Bahut acha masla utaha aapne shastri ji…….
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मेरी पहली कविता…… अधूरा प्रयास
i m new here and 1st time i m reading this. a 10yers boy is sexually attract to womens. but in this blog u said now is its happening in families. i don’t think this if its true then pls. send me true information then i will believe because i never see or heard this type of thing that a boy can sex in family.
bhut ascha like hai sir aap ne samj ko aap ki or aap jise log gi jarurat hai jo shai gyan de saki
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Dear Sir,
I am very surprice to read this statment a 10 year boy attaract a sexual relationship.
It is very dangerous matter our socity its spoil our socity and ifect mental
dear sir thanks, yah batane ke liye liye ki ek ball man kaise waqt ke pahle kisi or khicha chala jata hai…………
MAI YAHA APKO EK VAKYA BATANA CHAHUNGA KI “HAMARE GAW ME EK LADY CHOTE CHOTE BACHCHO KE BHAVNA SE KAISE KHELTI HAI. O JANBUCH KAR 8-12 YEAR KE BOYS SE AISI BAAT KARTI HAI KI WAH BACHCHA WAQT KE PAHLE YAHI SEXUAL BHAVNA ME JALTA RAHTA HAI. O AURAT KAUN CHOTA BADA HAI USE KOI PARWAH NAHI BAS USE BHAVNAO SE KHELNA ACHACHA LAGTA HAI.
PLESE KOI RASTA BATAIYE JISSE OH AURAT IS PRAKAR BACHCHO KE BHAWNAYE SE KHELANA CHHOD DE.
PLESE ….
yeh aksar bachono mai baro kea karan hi hota hai is lea 10 se 13year bachno ka dyan rakhana chiya
yeh bahut hi accha vichar hai….
mai toh kahta hoo…….
ki govt. ko is anivarya roop se universityo mai lagu karva dena chahiye…………
ho sake toh is se school mai bhi lagu karva dena chiye/
dear sir
aapne samsya batyi eska kya elaj hai vah bhi btaeye agar koi es se presan hai to uska kya elaj hai batayan . tatha esse kaise bacha ja sakta hai.
write on two word:-
first word is best knolege.
second is my life is sem is boy.
very importent part of student life.
and very nise .
thanku.
ranjit kumar
dhanbad
jharkhand