सारथी पर दहिनी ओर दिये गये फार्म की मदद से कोई भी व्यक्ति अपना नामपता या ईमेल प्रगट किये बिना अपने प्रश्न मुझे भेज सकते हैं. पिछले एक हफ्ते में काफी प्रश्न मिले हैं जिनका जवाब एक एक करके पोस्ट किया जायगा:
प्रश्न: मैं एवं मेरी पत्नी दोनों किताबों के बहुत शौकीन हैं एवं घर पर काफी बडा पुस्तक संग्रह है. लेकिन हमारा बेटा (उमर, 10 साल) पाठ्येतर किताबों में कोई रुचि नहीं लेता. मन लगाकर पढाई करता है, डाकटिकट जम कर एकत्रित करता है, एवं चाकलेट का बहुत शौकीन है. उसे किताबों की आदत डालने के लिये क्या करें.
उत्तर: अच्छा हुआ जो आप ने आज यह प्रश्न पूछा. यदि बेटा 15 की उमर पार करने के बाद आप यह प्रश्न अपने आप से करते तो काफी देर हो गई होती, लेकिन 10 तो उसे इस मामले में दिशा देने के लिये बहुत अच्छी उमर है.
बच्चों में कई तरह से आदत डाली जा सकती है. उदाहरण के लिये बडों को आदर देना एवं उनके पैर छूना आदि हम अपने अधिकार का प्रयोग करके उनको सिखा सकते हैं, एवं सिखाना भी चाहिये. लेकिन जहां तक किताबें पढने की बात है, यह उसके दिल में किताबों के प्रति झुकाव पैदा करके ही किया जा सकता है.
आपने लिखा है कि उसे डाकटिकट एवं चाकलेट का शौक है. क्या आप जानते हैं कि इन दोनों विषयों पर असंख्य पुस्तके उपलब्ध है. अत: सबसे पहले इन विषयों पर पुस्तके खरीद कर दे. जब एक पुस्तक पढ ले तो दूसरी पुस्तक खरीद कर दें. कुछ दिन में उसे पुस्तकों का चस्का लग जायगा. उस समय उसे कुछ अन्य विषयों की पुस्तकें खरीद दें. उसे मना लें कि अब अन्य विषय पर एक पुस्तक पढकर उसका सारांश सुनाने पर उसके शौक संबंधी एक पुस्तक मिलेगी. यह कार्य बडे ही सहजता से करें. हो सके तो आप भी उन विषयों में रुचि लेकार डाकटिकटों आदि पर उससे चर्चा करे.
लगभग 3 साल में अपका बेटा अभिन्न तरीके से पाठ्येतर पुस्तकों से जुड जायगा. इस बात का ख्याल जरूर रखें कि इस प्रक्रिया में उसकी पढाई पर कोई आंच न आये.
अरे वाह , बहुत ही अच्छा उपाय बतलाया। धन्यवाद समाज सेवा करने के लिए।
यह सही बताया शास्त्री जी। रुचि अनुसार पुस्तकों की ओर मोड़ना और फिर (सम्भवत:)रुचि में परिवर्तन करना आदर्श तरीका है।
कहीं पढ़ा था कि इमर्सन (?) और उनके पुत्र, बछड़े को बाहर ले जाने को धकेल रहे थे। वह जा नहीं रहा था। इतने में किसान की लड़की आई और अपना अंगूठा बछड़े को चुसाने लगी। फिर चुसाते चुसाते उसे सरलता से वांछित स्थान पर ले गयी!
आपने बिल्कुल सही कहा.. पर मेरा सवाल प्रश्न कर्ता से है.. कि हम क्यों बच्चों को उस तरफ मोड़ना चाहते है.. हम क्यों चाहते है कि वो किताबें पढे़.. पता नहीं..
सही मार्ग यही है।
मेरे विचार से किताबें पढ़ना एक शौक है। आप किसी से जबरदस्ती नहीं कर सकते। मेरा बेटे को यह शौक बचपन में नहीं था न ही हमने उसे किताबें पढ़ने के लिये कहा।
मेरे बेटे को जानवरों, जंगलों में रुचि थी। हम हमेशा छुट्टियों में किसी न किसी जंगल में जाते थे। उसने सब तरह के जानवर भी पाले। जिसमें हमारा सहयोग रहता था।
मैं उसे अक्सर जंगलों या जिम कॉर्बेट के बारे में बताया करता था और कम से कम महीने में दो बार किताबों की दुकान पर ले जाता था। उसे कोई पुस्तक खरीदने की छूट थी।
मेरे बेटे ने पहले अपने आप जानवरों के चित्रों वाली पुस्तकें खरीदने की इच्छा जाहिर की। फिर जेरॉल्ड डरल (Gerald Durrell) और जिम कॉर्बेट Jim Corbet) की पुस्तकें खरीदने की। हमने वे सब पुस्तकें खरीदी। उसने उन्हें पढ़ा भी धीरे धीरे अपने आप ही उसे पुस्तकें पढ़ने का शौक हो गया आज हम अक्सर अच्छी पुस्तकों के बारे ई-मेल से बात करते हैं। वह जब भारत आता है तो अपने साथ अमेरिका पुस्तकें ले जाता है कहता है कि यहां सस्ती मिलती हैं।
शास्त्री जी आप का लेख तो अधूरा है, जिसे ज्ञान दत्त और उन्मुक्त जी ने पूरा करने की कोशिश की.
आप ने यह तो बताया ही नहीं कि किताबों के प्रति झुकाव कैसे पैदा की जाती है !!!!!