पिछले दिनों एक मित्र ने प्रश्न भेजा कि वे क्या करें क्योंकि वे लोगों के नाम याद नहीं रख पाते एवं इसके कारण उनको अपने पेशे में (विक्रय) एवं सामाजिक जीवन में बहुत परेशानी होती है.
दरअसल यह परेशानी बहुत लोगों को होती है एवं इसका कारण हम खुद हैं. मानव मस्तिष्क जानकारी को याद रखने में जितना सक्षम है, उसे भुला देने के लिये भी उतना सक्षम है. उदाहरण के लिये, आपको अपना जन्मदिन हमेशा याद रहेगा, लेकिन शायद ही कभी आप को याद रहे कि तीन दिन पहले अखबार में क्या क्या पढा था. मोटी मोटी बातों के अलावा सब कुछ हम भुला देते हैं. इसी तरह आप जब दो बडी संख्याओं को जोडते हैं तो जो संख्या “हासिल” आती है उसे आप एक क्षण के लिये याद रखते हैं, लेकिन काम हो जाने के बाद उसे एकदम भुला देते हैं. यही इस परेशानी की जड है.
जिन लोगों को नाम याद रखने में परेशानी होती है उन में से अधिकतर लोग नामों को सिर्फ उतना महत्व देते हैं जितना कि अखबार के दूसरे पन्ने के खबर को. आज पढा, कल भुला दिया. कुछ सालों में उनका दिमांग पूरी तरह से नामों को भुलाने के लिये ट्रेनिंग पा लेता है. यह कारण है कि अधिकतर लोग नाम याद नहीं रख पाते.
समस्या के हल के लिये जरूरी है कि आप अपने मस्तिष्क को पुन: ट्रेनिंग दें कि लोगों के नाम भूलने की नहीं बल्कि याद रखने की चीज है. इसके लिये सबसे पहले निम्न कार्य करें: आप किसी का नाम पूछें तो अपने मस्तिष्क को नई ट्रेनिंग देने के लिये वह नाम कम से कम 3 से 5 बार मन ही मन दुहराये. पांच मिनिट के अंतराल से यह कार्य तीन बार करें. उसके बाद दिन में जब जब याद आये यह कार्य करें.
दूसरी बात, एक बहुत छोटी सी डायरी हमेशा अपनी जेब में रखें एवं नये लोगों के नाम उसमें नोट करते जायें. (ऐसी छोटी डायरी 5 रुपये में मिल जाती है.) दिन में दो चार बार उस डायरी पर नजर डाल लें.
आपको लगेगा कि यह सब तो बडे झंझट का काम है. हां नाम याद रखने में आपकी दिलचस्पी नहीं है तो यह झंझट का काम है. लेकिन यदि आप लोगों के नाम याद रखने का फायदा जानते हैं तो यह आपको एक झंझट नहीं लगेगा. महज तीन महीने के लिये यह कीजिए, इस दौरान आप का मस्तिष्क नामों को याद रखने की आदत डाल लेगा. उसके बाद जिंदगी भर आप इस “निवेश” का ब्याज खा सकेंगे.
सारथी पर दहिनी ओर दिये गये फार्म की मदद से कोई भी व्यक्ति अपना नामपता या ईमेल प्रगट किये बिना अपने प्रश्न मुझे भेज सकते हैं.
लोगों का नाम याद रखने से बहुत सुविधा होती है; सम्बन्ध जीवन्त लगते हैं।
शास्त्री जी, आपके सुझाव कापी व्यावहारिक लगे।
यह तो आपने मेरी समस्या को एड्रेस कर दिया! बहुत धन्यवाद।
यह तो एक आम बिमारी है.
बहुत अच्छे अच्छे उपाय बतलाते हैं आप समस्याओं का। किसी के समक्ष उसका या उसके बच्चे का नाम ले लो , तो सामनेवाले के चेहरे में मुस्कराहट आ जाती है।
काम की जानकारी !
मुझे भी पहले यह समस्या थी. मैने तरीका यह निकाला कि नाम के साथ कोई ऐसी चीज जोड़ लेता हूं जिससे दोनों का अंतरसंबंध बन जाए और अब कोई समस्या नहीं है. आपने अच्छे सुझाव दिए; बशर्ते लोग अमल करें.
शास्त्री जी नाम और कई बार संख्याएँ स्मरण नहीं रहती। अनेक बार यह होता है कि जिस नाम को याद करने का प्रयत्न करो वही नहीं आता।
मगर अनेक बार ऐसा भी हुआ है कि तीस साल बाद भी कोई व्यक्ति सामने आ जाए, जिसे कभी स्मरण ही न किया हो उस का नाम बिना श्रम के याद आ जाता है और सही निकलता है। हां सैद्धान्तिक बातें कभी नहीं भूलता। एक साधारण सा गणित का फारमूला मुझे कभी याद नहीं रहा। जरूरत पड़ने पर उसे फिर से बनाना पड़ता है और वह बन जाता है।
सर्च ऐंजिन जरा तगड़ा होना चाहिए। इस की पावर शक्ति और क्षंमता में वृद्धि के लिए क्या करें?
सही है शास्त्री जी
शास्त्री जी मैं आप का नाम भूल जाता हूँ. क्या करुँ ? 🙂
शास्त्री जी कभी कभी मैं अपना नाम भी भूल जाता हूँ. 😉
पॉकेट -डायरी का सुझाव बहुत अच्छा है।
पिछले ८ साल से मैं इसका उपयोग करता आ रहा हूँ।
इसके बिना घर के बाहर निकलता ही नहीं हूँ।
बहुत लाभदायक साबित हुआ है मेरे लिए, पेशे में और व्यक्तिगत जीवन में भी। केवल नाम ही नहीं, कभी विचार, सूचना, आँकडे, पते, जाल-स्थल, टेलिफ़ोन नम्बर इत्यादि इस में नोट कर लेता हूँ। अपनी स्मरण शक्ति पर मुझे विश्वास नहीं। बाद में अपने कंप्यूटर पर उसे रेकॉर्ड करके संबन्धित पन्नों को फ़ाड़कर फ़ेंक देता हूँ। हर दो महीने में एक डायरी की आवश्यकता है मुझे। एक डायरी अपनी गाड़ी में भी रखता हूँ।