समीर लाल जी आंख मींच कर टिप्पणी करते हैं!!

एक औसत व्यक्ति की काफी सीमायें होती हैं, अत: जब वह औसत से बहुत ऊचे किसी व्यक्ति को देखता है तो उसे लगता है कि ऊचाई पर स्थित वह व्यक्ति कुछ न कुछ बेईमानी कर रहा है, वर्ना इतने ऊचा कैसे पहुंच जाता.

विद्यार्थी जीवन में मैं ने ऐसे आरोप बहुत देखें हैं. क्लास के गधेखच्चर हमेशा कक्षा के टापर्स के बारे में कहा करते थे कि वे सब नकल करके नंबर लाते हैं. लेकिन जब पीएमटी की परीक्षा हुई तो पता चल गया कि कौन कितने पानी में है. मेरे साथ के सारे के सारे टापर्स ने आसमान छू लिया, जबकि जो उनको नकलची बता रहे थे वे आज भी ग्वालियर के सडकों की धूल फांक रहे हैं.

चिट्ठाजगत में भी कभी कभी यह हीन भावना दिख जाती है जब हल्के फुल्के चिट्ठाकार हिन्दी चिट्ठालोके के युगपुरुषों पर उथले किस्म के आरोप लगाते हैं. आज हिन्दी का हर नया (एवं वरिष्ठ) चिट्ठाकार समीर लाल जी का दिल से आभारी है क्योंकि उनके द्वारा टिपाये गये दो शब्दों ने बहुत लोगों को आगे जाने में मदद की है. एक औसत चिट्ठाकार समीर जी का कार्य देखता है तो उसे ताज्जुब होता है कि कोई आदमी अकेला  कैसे यह कर लेता है. लेकिन वह किसी तरह का आरोप नहीं लगाता. उसे मालूम है कि यह आदमी अकेले अपने बल पर  एक आंदोलन चला रहा है.

लेकिन कुछ और हैं जो समीर जी के बराबर पहुचना तो चाहते हैं, लेकिन न तो वे समीर जी के बराबर मेहनत करना चाहते हैं न ही उनको इस कार्य में दक्षता के गुर मालूम हैं. अत: उनका तो एक सीधा सादा फार्मूला है: कह दो कि अंगूर खट्टे हैं.  कह दो कि यह आदमी प्रशंसा को लोभी है एवं इस कारण बिना पढे,  आंख मीच कर, हर चिट्ठे पर अच्छाहै बढियाहै आदि टिपा जाता है.

ईश्वर का शुक्र है कि कम से कम आरोप यहां तक नहीं पहुंचे कि “टिप्पणी समीर लाल खुद नहीं करते, बल्कि उनकी सेक्रेटरी दफ्तर में फालतू बैठ कर समय जाया करती है अत: समीर जी ने उसको पचासेक वाक्य पकडा दिये कि अब तू करती रह टिप्पणी मेरे नाम पर. मेरा तो कल्याण होगा, तेरा भी हो जायगा.”  (अब समीर जी ने सेक्रेटरी न रखी  हो तो उसके लिये मैं जिम्मेदार नहीं हूँ).

अब विषय का दूसरा पहलू जरा देखें. पिछले पचास साठ सालों में हिन्दी जगत में एक दूसरे की जो टांगखिचाई हो रही है उससे हमारी राजभाषा कहां रह गई. यदि लोग यह सोच लेते कि उनसे सेवा नहीं हो पा रही है, कम से कम उन लोगों के काम में टांग न अडायें जो निस्वार्थ भाव से सेवा कर रहे हैं तो इतनी दुर्गति नहीं होती.

अब सबसे महत्वपूर्ण बात देखें.  समीर जी ने एक चिट्ठे में लिखा:

प्रोत्साहन के आभाव में, अपने पिछले दो वर्ष और छः माह के चिट्ठाकारी जीवन में न जाने कितने चिट्ठों को दम तोड़ते देखा है. कुछ बंद हो गये, कुछ बंद होने की कागार पर हैं.

मैं अपनी तरफ से जितना बन पड़ता है, उतना प्रोत्साहित करने का प्रयास करता हूँ. अनेकों लोग इसी तरह के प्रोत्साहन देने के प्रयास में सक्रिय हैं. यह एक मिशन है, अतः समय और श्रम दोनों देना होता है मगर साथ ही हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार प्रसार देख कर आत्म संतुष्टी भी होती है कि हमारा यह छोटा सा प्रोत्साहन देने का योगदान बेकार नहीं गया.

समीर जी का प्रोत्साहन हिन्दी जगत में बहुतों के लिये संजीवनी का काम करती है. अत: यदि हम उनका आदर न करना चाहें तो कम से कम अनादर न करें.

हां जहां तक मेरी बात है, “समीर जी, आख मीच के ही सही लेकिन मेरे चिट्ठे पर जरुर टिपियाना क्योंकि आपका नाम टिप्पणी में देखते ही अगले चार चिट्ठे लिखने की ऊर्जा स्वत: मिल जाती है.  सच कह रहा हूँ, आपकी टिप्पणियों ने मुझे चिट्ठाकारी में  बहुत प्रोत्साहित किया है. सस्नेह, शास्त्री”

पुनश्च:  समीर जी आप के बिना हर चिट्ठाकार विधवा है. (ई गुरू राजीव)

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Author: Super_Admin

23 thoughts on “समीर लाल जी आंख मींच कर टिप्पणी करते हैं!!

  1. नए चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने का जिम्मा समीरलालजी ने ले लिया तो हम निश्चिंत हो गए :).

    वे अपना काम बहुत ही लगन, मेहनत और ईमानदारी से कर रहे है. उनका यह योगदान सदा याद रखा जाएगा, शायद ही कोई उनकी बराबरी कर सके. समीरलालजी को साधूवाद.

  2. बहुत सही लिखा आपने…मैंने तो सार्वजनिक मंच पर खड़े हो कर ये ही बात कही जो आप ने लिखी है…समीर जी के प्रोहत्साहन से बहुत ब्लोगर को लिखते रहने की प्रेरणा मिली है…, मैं भी उन में से एक हूँ….कुछ लोगों का स्वाभाव ही टीका टिप्पणी का होता है उन्हें अधिक भाव नहीं देना चाहिए…खुशी की बात है की समीर भाई ये बात समझ गए और लौट आए हैं…
    नीरज

  3. हमें नए चिट्ठों पर अवश्य टिप्पणी देनी चाहिए। समीरलालजी अपना काम बहुत ही लगन, मेहनत और ईमानदारी से कर रहे है.

  4. हमें याद है हमने जब नया नया लिखना शुरू किया था दोस्त बाद में आते थे ओर समीर जी पहले….कई दोस्त तो अब तक नही आते ..समीर जी अलबत्ता अब भी आते है ….

  5. पूरी तरह सहमत है आपसे । समीर जी की टिप्पणियां पोस्ट पर टॉनिक का काम करती है।

  6. समीर जी का एक शब्द ही आगे लिखने की प्रेरणा देता है ..नए लिखने वालों को इसी तरह से उत्साह देना चाहिए यह उन्ही से सीखा है

  7. आज हिन्दी का हर नया (एवं वरिष्ठ) चिट्ठाकार समीर लाल जी का दिल से आभारी है क्योंकि उनके द्वारा टिपाये गये दो शब्दों ने बहुत लोगों को आगे जाने में मदद की है.
    बहुत सही कहना है आपका।

  8. पूर्णतः सहमत हूँ. समीरजी की टिप्पिणयों से प्रोत्साहन मिलता और उनकी टिप्पिणयों से यह आभास भी होता है की चिट्ठा पढा गया है.

  9. नेक काम के लिए यदि थोडी बैमानी भी हो ताओ उसे बैमानी नही कही जाती है . समीर जी जो ब्लॉग जगत की सम्रद्धि के लिए और नए ब्लॉगर के उत्त्साह वर्धन के लिए जितनी टिप्पणी करते हैं वह काफ़ी काबिले तारीफ़ हैं .

  10. “समीर जी, आख मीच के ही सही लेकिन मेरे चिट्ठे पर जरुर टिपियाना क्योंकि आपका नाम टिप्पणी में देखते ही अगले चार चिट्ठे लिखने की ऊर्जा स्वत: मिल जाती है. सच कह रहा हूँ, आपकी टिप्पणियों ने मुझे चिट्ठाकारी में बहुत प्रोत्साहित किया है. सस्नेह, शास्त्री”
    बिल्कुल दुरुस्त फरमाया आपने शास्त्री जी -मं भी यही सोचता हूं !

  11. समीर जी,
    नेक काम कर रहे हैं। अच्छी पोस्ट लिखते हैं लेकिन बिना लेख पढ़े टिप्पढ़ियां देना ब्लागर के साथ मजाक करने जैसा है। इससे किसी का भला नहीं होगा।
    टिप्पढीं निश्चित तौर पर टानिक है लेकिन डाक्टर साहब टानिक पीने-पिलाने के भी नियम होते हैं।
    आपको मेरी बात/लेख पर गुस्सा आ गया तो गाली दीजिए। आईना दिखाइए लेकिन फिजूल की टिप्पढ़ीं मत कीजिए।

  12. समीर जी से मुझे जलन होती है कि कैसे एक आदमी इतना सब कर लेता है.
    मैं तो हैरान रहता हूँ कि कैसे वे न सिर्फ़ टिप्पणियाँ करते हैं बल्कि चिट्ठा-चर्चा भी करते हैं. अपने चिट्ठे पर भी लिखते हैं और मेरे जैसे नालायक लड़के के लेख भी सुधारते हैं.
    आज जिस चिट्ठे की मेरे ‘ ब्लॉग्स पण्डित ‘ पर वाह-वाही आप देख रहे हैं वह तारीफ़ की जगह महा-बदनामी में बदल चुकी होती अगर समीर जी ने उसे न सुधारा होता.
    धन्यवाद समीर जी. 🙂
    यह आदमी अपने आप में ‘ वन-मैन आर्मी है जो हर मोर्चे पर डटा रहता है. उनका लगे रहना देख कर मैं अपने आप को अत्यन्त ऊर्जस्वित अनुभूत करता हूँ.
    ईश्वर उनका हाथ हमारे सर पर बनाए रखे, नहीं तो यह चिट्ठा-जगत ख़त्म हो सकता है.
    यदि हम उनका आदर करते हैं तो हमें उनकी बात मानते हुए टिप्पणियों के द्वारा सभी चिट्ठों का स्वागत करते रहना चाहिए, बल्कि विज्ञापनों पर क्लिक कर हम लोगों का उनके चिट्ठे से लगाव बढ़ा सकते हैं.

  13. समीर लाल जी की टिप्पणियाँ नया चिटठा लिखने में प्रोत्साहित करती है अपने ब्लॉग पर उनकी टिप्पणी पढ़कर एक नये उत्साह का संचार होता है |

  14. समीर लालजी की तसवीर देखिए।
    हमें तो एक वे भारी भरकम “रोली पोली” और “जॉली गुड फ़ेल्लो” लगते हैं।
    आशा करता हूँ कि भविष्य में कभी उनसे भेंट कर सकूँगा।
    नमस्ते ही करूँगा, हाथ नहीं मिलाऊँगा।
    ऐसे लोगों से सावधान रहना अच्छा है।
    छोटे कद का एक कमज़ोर आदमी हूँ।
    डरता हूँ कि मिलने की खुशी में, आवेश में आकर मेरे हाथ को इस जोश और जोर से “पम्प” न कर दें कि हाथ ही कन्धे से निकलकर अलग न हो जाए!

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