आजकल सभी हिन्दी चिट्ठाकार चिंतित हैं कि उनके चिट्ठों पर गूगल एड वर्डस खाली चल रहे हैं. गलती हमारी ही है.
जैसे ही कई नये नवेले चिट्ठाकारों ने देखा कि महज “क्लिक” करने पर डालर की धारायें उनके पते पर बहने लगी हैं तो कई हिन्दी चिट्ठाकारों ने जम कर एक दूसरे के चिट्ठों पर क्लिक करना शुरू कर दिया, अत: एक न एक दिन गूगल की ओर से यह प्रतिबंध लगना ही था.
कुछ साल पहले नाईजीरिया के अपराधियों ने दर्जनों लडके लडकियों को तनख्वाह देकर सिर्फ एक काम के लिये रखा था – कि वे अपने मालिकों के जालस्थल पर सुबह से शाम अनवरत क्लिक करते रहें. इस तरह से कई जाल-अपराधियों नें लाखों बना लिये, लेकिन वे गूगल को अधिक दिन बेवकूफ नहीं बना सके.
आजकल एडसेंस के सारे आंकडे, स्पाईडर, इत्यादी गूगल के मुख्य खोजयंत्र से एकदम अलग मशीनों पर चलते है जहां हर क्षण एडसेंस पर होने वाली बातों का लेखाजोखा एवं विश्लेषण चलता रहता है. स्टेटिस्टिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स आदि की मदद से ये हर तरह के अपराध को पहचान लेते हैं. विज्ञापनलोक में, क्रयविक्रय में, हवा किस दिशा में चल रही है इसका हिसाब लगातार लगता रहता है एवं विज्ञापन उस हिसाब से बदलते रहते हैं.
आपको गूगल एड सेंस से जो पैसा मिलता है वह विज्ञापनदाताओं की जेब से आता है. वे अपनी सामग्री/सेवा बेचने के लिये विज्ञापन देते हैं. लेकिन लोग यदि सिर्फ पैसा बनाने के लिये क्लिक करते हैं तो विज्ञापनदाता को बिक्री न होने के कारण धन की हानि होती है, इस कारण वे विज्ञापन बंद कर सकते है. गूगल के लिये यह जाल-मृत्यु होगी क्योंकि उनके आरबों रुपये का नफा मुख्यतया विज्ञापनदाताओं से आता है. इस कारण गूगल एड सेंस फालतू, लूट के लिये किये गये, क्लिकों पर नजर रखता है. (यह कैसे होता है इसे अगले लेख में बतायेंगे).
हिन्दी चिट्ठाकारों में से गिने चुने कुछ लोगों के लोभ के कारण गूगल ने फिलहाल हिन्दी चिट्ठों पर विज्ञापन की छुट्टी कर रखी है. यदि किसी चिट्ठे पर विज्ञापन दिख रहे हों तो धन के लिये उस पर आप में क्लिक न करें. गूगल की नजरें बहुत तेज हैं.
उम्मीद है कि कुछ हफ्तों या महीनों के बाद ये विज्ञापन फिर से हिन्दी चिट्ठों पर दिखने लगेंगे.
यदि आपको टिप्पणी पट न दिखे तो आलेख के शीर्षक पर क्लिक करें, टिप्पणी-पट लेख के नीचे दिख जायगा!!
इसी को कहते हैं अण्डे वाली मुर्गी का पेट चीरना।
ज्ञान वर्धन के लिए आभार.
सर, अपने इस लेख की कड़ी में गूगल एडसेन्स के अलावा और भी कोई दूसरा एडसेन्स सर्विस के बारे में भी बतायें तो अच्छा रहेगा.. किसी एक पर ही निर्भर होने से उसका एकाधिकार बढता जाता है जो अंततः तानाशाही में बदल जाता है..
मुझे गूगल एडसेन्स के बारे में भी ऐसा ही महसूस हो रहा है..
इस बारे मे कोई जानकारी न थी। आपको पढ कर पता चल रहा है। आभार आपका।
जानकारी के लिए आभार।
सही कहा आपने।
sir, kuch hamara bhi margdarshan kare
aap to accha hi likhate hen
regards
शास्त्री जी, मुझे भी आप के लेख का इंतज़ार रहेगा क्योंकि मैंने लोगों से निवेदन किया था कि वे एक-दूसरे के चिट्ठों पर विज्ञापनों पर क्लिक करें. यह एक मात्र एक आह्वान नहीं था बल्कि मैंने ख़ुद ऐसा किया भी. मेरे ऐसा करने से न किसी विज्ञापन कंपनी को भले ही कोई नुक्सान हुआ हो, पर उन सभी चिट्ठाकारों के खाते में डॉलर मेरे क्लिक से तो आए ही. 🙂
हालांकि मेरा वह आह्वान सही चला और अब किसी से कहने की ज़रूरत नहीं है. सब कुछ अच्छा चल रहा है, तो वह वाक्य मैंने अपने ब्लॉग पर से हटा दिया.
किसी कंपनी ने उस क्लिक को न तो पकड़ा और न ही वे अवैध घोषित हुए. यहाँ तक कि कईयों ने अपने 100 डॉलर भी पूरे कर लिए. मैं नाम लेकर उनकी खटिया नहीं खड़ी करूंगा.
यह स्वीकारता हूँ कि विज्ञापनदाता को इसकी हानि उठानी पड़ती है, पर वह तो सहज स्वाभाविक ही है. टी.वी. पर आने वाले क्या हर विज्ञापन हम देखते हैं !! नहीं न.
पर विज्ञापनदाता दिखाता था, है और रहेगा.
आपको क्या लगता है ये जो करोड़ों-अरबों डॉलर चिट्ठे बना लेते हैं, वह कैसे होता है !!
मैं जानता हूँ पर यहाँ यह राज़ अभी नहीं खोलना चाहता हूँ. अभी सही समय नहीं है.
दिनेश राय द्विवेदी जी ने थोड़ा सा ठीक कहा —
(इसी को कहते हैं अण्डे वाली मुर्गी का पेट चीरना.)
पर पूरे तौर पर सही नहीं.
क्या बीच का रास्ता नहीं है, चिट्ठे से आय कर पाने का.
क्या मुर्गी को इंजेक्शन लगा कर ज्यादा अंडे और जल्दी अंडे नहीं प्राप्त किए जा सकते ?
बिल्कुल रास्ता है, जो कोई भी पकड़ नहीं सकता.
फ़िर कभी समय मिला तो दोस्तों इस पर विस्तार से चर्चा होगी.
हजारों डॉलर हर महीने बनाना बिल्कुल भी कठिन नहीं है, अभी मैं इस विषय पर बहुत कुछ लिखने वाला हूँ…
नाइजीरिया वाले बेवकूफ थे, मैंने उनके बारे में सालों पहले सुना था. यह बहुत चर्चा में था.
उन्होंने सच में अंडे देने वाली मुर्गी का पेट चीर डाला.
अब 1000 लीटर दूध पाने के लिए भैंस का पेट तो नहीं न चीर सकते !!
हाँ, पर हार्मोनल इंजेक्शन लगा कर बहुत ज्यादा दूध प्राप्त कर तो सकते हैं !!
दिनेश राय द्विवेदी जी तो वकील हैं, वे यह क्यों भूल गए कि भारतीय दंड संहिता की धाराओं को तोड़-मरोड़ कर ही तो वकील अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं. वही हमें यहाँ करना है,
बस यह ध्यान रखना है कि गूगल के नियमों को हम मानते रहें, वह तो सर्वोपरि हैं.
गूगल की बिसात पर गूगल से खेलो पर गूगल के नियमों के हिसाब से. यहाँ तो सैकडों लूप-होल हैं.
बस ज़रूरत है उन्हें ढूँढने की और उनका लाभ उठाने की.
गूगल कभी भी उन चीज़ों के लिए आप को दोषी नहीं ठहरा सकता, जिसके लिए उसने नियम ही नहीं बनाए !!
ब्लोग से कमाई भई वाह ..पर कैसे
सही कह रहे हैं-शायद जल्द वापस आये.
मैने भी एक बार अर्जी लगायी थी, एडसेन्स की, लेकिन कभी चालू नहीं हुआ। एक सन्देश मिला था कि आप के ब्लॉग पर प्रयुक्त भाषा (हिन्दी) हमारे लिए अनुकूल नहीं पायी गयी। इसलिए भविष्य में फिर कभी प्रयास करें।
बस तबसे मैने कभी कोशिश नहीं की। करता भी कैसे?
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राजीव जी, हार्मोनल सुई का प्रयोग पर्यावरण के लिए और स्वास्थ्य के लिहाज से बहुत अच्छा नहीं माना जाता।:)
इसीलिये कहते हैं कि: Honesty is the best policy!
बढीया जानकारी दिया आपने।
आभार
हिन्दी ब्लाग पर गूगल एडसेंस लगाने ही नही चाहीये 🙂
bahut achchi jankari di. dhanyawad.
लेख का इंतज़ार रहेगा
यदि ब्लॉग मुख्यतः अंग्रेजी भाषा में है और उसमे हिन्दी के भी लेख है तो गूगल एड सेंस का प्रयोग किया जा सकता है. पर उसमे भी खतरा तो है ही. गूगल के नियमों से खेलना काफ़ी खतरनाक है. एक बार प्रतिबंधित हुए तो हमेशा के लिए छुट्टी .भाई अगर पैसे कमाना है तो अंग्रेजी का ही ब्लॉग बना ले.
सही कहा आपने @ दिनेशराय द्विवेदी ,शास्त्री जी,
शस्त्रीजी जिंदाबाद…
शास्त्री जी महान है…हमेशा दिलासा दिलाते हैं
जो हमें अच्छी लगती है
जै जै
jaankaari ke liye shukriya. likhte rahein
आभारी हैं
हम आपके जो सूचना परक आलेख
प्रस्तुत किया
सादर