चित्र: अंग्रेजों के जमाने के एक प्रकार के दो भारतीय सिक्के, एक जिस हालत में मुझे ये सिक्के मिले उसको दिखाता है एवं दूसरा चित्र सिक्के की वैज्ञानिक विधि से सफाई करने के बाद का चित्र है. इस विषय पर मेरी पुस्तक 3 से 4 महीने में छपने वाली है.
मेरे पिछले लेख क्या ऐसा इतिहास कहीं और मिलेगा? में मैं ने हिन्दुस्तान की असाधारण पृष्ठभूमि का जिक्र किया था. हीनभावना से ग्रस्त हिन्दुस्तानियों के अलावा हर कोई यह जानतामानता है कि हिन्दुस्तान दुनियां के सबसे श्रेष्ठ देशों में से एक है एवं हमारी प्राचीन विरासत तो श्रेष्ठतम है.
जो भारतीय हिन्दुस्तान की महानता को नहीं जानते वे हमेशा ही इस देश की संस्कृति, तकनीकी, एवं कलाओं को विदेशियों के हाथ बेचते रहे हैं. भारत के करोडों रुपये के हीरे जवाहरात, लाखों विरल मूर्तियां, एवं लाखों हस्तलिकित पांडूलिपियां आज विदेशियों के हाथ हैं. अफसोस यह है कि इस तरह की बिक्री आज भी चल रही हैं.
नियम के अनुसार 100 साल से अधिक पुरानी चीजें देश के बाहर नहीं ले जाई सकतीं. लेकिन जिन स्थानों में विदेशी पर्यटक खूब आते हैं वहां इस तरह के चीजों की बिक्री जम कर होती है. इन चीजों में से इन दिनों मेरा ध्यान सबसे अधिक भारतीय सिक्कों पर है. ये इतने छोटे होते हैं कि बडे आराम से कोई भी व्यक्ति इनको अपने सामान में छुपा कर विदेश ले जा सकता है, एवं ऐसा ही हो रहा है. इतना ही नहीं, कई व्यापारी लोग धडल्ले से डाक द्वारा सिक्कों के गट्ठर विदेशियों को बेच रहे है.
चित्र: चांदी के कुछ पुरातन सिक्के. पहले चार सिक्कों की सफाई नहीं हुई है एवं अंतिम दो की सफाई हो चुकी है. पांचवे सिक्के पर सूर्यदेवता का चित्र देखें. यह वीर रानी अहिल्याबाई द्वारा चलाया गया सिक्का है.
इसका फल यह है कि कई दुर्लभ हिन्दुस्तानी सिक्के आज सिर्फ विदेशी सिक्का-विक्रेताओं के पास हैं. उदाहरण के लिये “कांगडा” राज्य के सिक्के फिलहाल किसी भी भारतीय सिक्का-विक्रेता के पास नहीं है जबकि एक विदेशी सिक्का-विक्रेता के पास सैकडों कांगडा सिक्के बिक्री के लिये पहुंच चुके हैं.
यदि आपके पास यदि किसी भी तरह के प्राचीन भारतीय सिक्के हैं तो उनको विदेशी हाथों में पडने से बचायें. या तो उसे सुरक्षित रखें, या किसी भारतीय सिक्का-शास्त्री को या ऐसे शौकीन को दे दें या बेच दें जो उसकी कदर करेगा. या किसी ऐसे व्यक्तिगत संग्रहालय को दे दें जो लोगों को उसे देखने एवं अध्ययन करने का मौका देगा. (फिलहाल कई सरकारी संग्रहालय सिक्का-शास्त्रियों को अपने सिक्कों का अध्ययन करने की सुविधा नहीं देते एवं छायाचित्र लेना निषिद्ध कर रखा है).
[यदि किसी पाठक के पास प्राचीन सिक्के हों तो छायाचित्र लेने का एक मौका जरूर मुझे दें जिससे कि दुर्लब सिक्कों की याद के लिये उनको मेरे द्वारा बनाये जा रहे डाटाबेस में जोडा जा सके].
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रोचक आलेख.. आपकी पुस्तक का इंतजार है…
रोचक जानकारी
आज दिनभर से बिजली गोल रही इस लिए थोड़ी नोक झोंक ही सही.
आपके वैज्ञानिक सफाई की दाद देनी पड़ेगी. जॉर्ज ५ धुल कर जॉर्ज ६ बन गया.
अब मैं गंभीर हो चला हूँ. एकदम सही बात लिखी. सिक्के प्राचीन इतिहास के स्त्रोत हैं इनमे
हमारे पुरा वैभव से संबंधित कई अनछुए पहलुओं को उजागर करने की क्षमता निहित है.
आपकी पहल प्रशंसनीय है. आभार.
मै भी सिक्कों में ्रुची रखता हूँ.. देश विदेश के सिक्के इक्कठे करता हूँ… करीब २-३ साल पहने पुराने सिक्के भी इक्कठा करना आरंभ किया.. अभी कुल २००० सिक्के तो होगें..
हाँ पुराने सिक्कों में नकली बहुत होते है.. और कई विशेषग्य सिक्कों की सफाई करना भी सही नहीं मानते…
आपकी पुस्तक का इन्तजार रहेगा..
रोचक आलेख एवं जानकारी.
आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
समीर लाल
आदरणीय शास्त्री जी,आज पहली बार सौभाग्य से आप तक आ पाया ,सच में आज किस्मत अच्छी है जान पड़ता है। लेख बहुत सुन्दर जानकारी देने वाला है। व्यक्तिगत आभार….। आपकी पुस्तक संग्रहणीय होगी मेरे निजी पुस्तकालय के लिये। साधुवाद स्वीकारें।
आँखें खोलने वाला आलेख 🙁
सिक्कों का संग्रह इतिहास बताएगा।
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दीपावली की मंगल शुभकामनाएं।
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पा.ना. सुब्रमणियनजी की टिप्प्णी पढ़ने के बाद, मैंने भी चित्र को ध्यान से देखा।
सिक्के अव्श्य अलग हैं। न केवल George V George VI बन गये हैं पर चेहरा भी अलग है। अक्षरों का size भिन्न है।
सुब्रमणियनजी की अवलोकन शक्ति की दाद देता हूँ!
शास्त्रीजी, आपकी मज़बूरी समझ सकता हूँ।
चमकाने से पहले और चमकाने के बाद वही सिक्के को कैसे बगल में रेखेंगे?
ज़ाहिर है दो अलग चित्र होनी चाहिए।
चित्र ने अवश्य यह बता दिया के पुराने सिक्कों को किस खूबी से चमकाया जा सकत है पर यदि एक ही सिक्के का चमकाने से पहले का चित्र और फ़िर चमकाने के बाद का चित्र पेश किया होता तो और अच्छा होता।
कृपया इसे nit picking न समझें।
मेरे पास भी कुछ पुराने सिक्के थे जो मुझे विरासत में मिली थी। किसी अलमारी में किसी डिब्बे के अन्दर सालों से बन्द पडे हैं। इनके बारे में मैं कुछ जानता नहीं हूँ। समय आने पर अपने बेटे/बेटी को सौंपने का इरादा है। आशा करता हूँ की अगली पीढी भी इसे संभाल कर रेखेगी।
इस रोचक लेख के लिए धन्यवाद और दिवाली के अवसर पर आपको और आपके सभी पाठकों को मेरी शुभकामनाएं
जोर्ज पंचम धुल कर जोर्ज सिक्स्थ नहीं बना है और न कोई बना सकता है /जोर्ज आख़िर जोर्ज होते थे-उन पर धुलाई का असर बेमानी था /खैर / आप बहुत महनत करते हैं और नई नई जानकारियां देते हैं / सिक्के देख कर कुछ पुरानी यादें आई /जोर्ज सिक्स्थ सबसे आख़िरी सिक्का था और इसमें चांदी भी कम थी /इसके पूर्ब के सब सिक्के जोर्ज पंचम ,विक्टोरिया ,मुंडा सबमें पूरी एक तोला चांदी होती थी /अठन्नी चवन्नी भी थी और एक पैसा ताम्बे का जिसके बीच में छेड़ होता था .इकन्नी ,दुअन्नी / हाँ मैंने मोहरें और अशरफिया जरूर नहीं देखी है /नीचे जो सिक्के दिए है उनमें एक का तो बताया की अहिल्या बाई द्वारा चलाया वाकी में उर्दू अथवा अरबी अथवा फारसी में लिखा है न जाने कब के होंगे किसी जानकार से पढ़वायें की लिखा क्या है /आप देश की प्राचीन धरोहर सहेज रहे है और जानकारी भी दे रहे है आप बहुत बधाई के पात्र हैं
वाकई सिक्कों के प्रति लोगों की दीवानगी अब समाप्त हो रही है।
दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।
वैसे मैं सिक्कों के बारे में कोई विशेष तकनीकी जानकारी नहीं रखता लेकिन पुरानी दिल्ली के चांदनी चौक में अशोक से लेकर विक्रमादित्य और बाबर से लेकर कंपनी शासन तक के सिक्के कौडियों के भावः बिकते हुए देखे हैं वो भी सड़क किनारे जमीन पर. तकनीकी के जानकारों से पूछना चाहूँगा की इनकी विश्वसनीयता जांचने का सबसे आसान तरीका क्या है क्योंकि कार्बन डेटिंग आदि कोई सड़क पर खड़ा होकर तो कर नही सकता.