पिछले आलेख कोई भी बेवकूफ चिट्ठाकारी कर सकता है 001 के बारे में डॉ अरविंद का कहना है,
- शास्त्री जी, यह निश्चय ही एक विचारोत्तेजक श्रृंख्ला शुरू होने वाली है -मगर शीर्षक में कुछ परिवर्तन की जुर्रत/हिमाकत करना चाहता हूँ — मेरे विचार से ‘कोई भी बेवकूफ चिट्ठाकारी कर सकता है ००१’ के बजाय शीर्षक यह होना चाहिए था कि केवल बेवकूफ ही चिट्ठाकारी कर सकता है — सारा काम धाम छोड़कर नशे की हद तक चिट्ठाकारिता जैसे अलाभकारी शगल में मुब्तिला रहना कहाँ की बुद्धिमानी है ? मैं तो इसेपरले दर्जे की बेवकूफी के रूप में ही अभी इसे देख रहा हूँ -पर जीवन में कुछ बेवकूफियां भी भली लगती रहती हैं — जैसे पहली निगाह का प्रेम, अपना कोई प्यारा सा शौक आदि. सच मानिए मेरी भी यह बेवकूफी मुझे कई जागतिक सरोकारों से अलग तो कर रही है मगर जो आत्मिक आनंद मुझे चिट्ठाकारिता में में मिल रहा है वह किशोर वे के प्रेम से कुछ कम नही है — कोई बेवकूफ कहे तो कहे — मुझे तो अपने में ही मगन रहना है !
शुक्रिया डॉ अरविंद, "केवल बेवकूफ ही चिट्ठाकारी कर सकता है" से पूरा एक आलेख ही छाप दूँगा. फिलहाल इस आलेख में उस प्रश्न का जवाब दूंगा जो कल पूछा था कि अपने चिट्ठे को उन 20% चिट्ठों में कैसे ले जायें जिनको पर्याप्त पाठक मिलते हैं एवं जो लोगों के प्रिय चिट्ठे बन जाते हैं. मेरे निरीक्षण को बिन्दुवार नीचे दे रहा हूँ:
1. उच्चतम 20% में पहुंचने के लिये चिट्ठे को जनप्रिय होना चाहिये, एवं जनप्रिय होने के लिये पहली शर्त यह है कि चिट्टाकार अपने पाठकों में रुचि ले. रुचि कई तरह से ली जा सकती है. हिन्दी जगत में टिप्पणियों द्वारा आपसी विचारों के लेनदेन एवं अपने आलेखों में अन्य आलेखों चिट्ठों आदि की चर्चा के द्वारा एक चिट्ठाकार अन्य लोगों (चिट्ठाकारों) में रुचि लेता है. यह याद रखें कि फिलहाल हिन्दी चिट्ठों के पाठक मुख्यतया अन्य चिट्ठाकार हैं. यदि "मेरा लिखा तू जरूर पढ-टिपिया, तेरा लिखा भाड में जाये" आपका नजरिया हो तो गैर लोग भाड में नहीं जायेंगे, लेकिन आपका चिट्ठा जरूर जल्दी ही "विदाऊट-पे लीव" पर चला जायगा.
2. जनप्रिय होने के लिये यह भी जरूरी है कि आप जनप्रिय विषयों पर लिखें व कम जनरुचि के विषयों को जनप्रिय अंदाज में प्रस्तुत करें. यदि आप अपने दूध में गिरी मक्खी पर एक दीर्घ आलेख लिखना चाहें तो शायद ही किसी को पढने में कोई रुचि होगी, लेकिन यदि उसी आलेख को "एक बेवकूफ मक्खी जिसने एक विवाह-विच्छेद करवा दिया होता" स्टाईल में लिखें तो जनता उस आलेख पर टूट पडेगी.
3. जनप्रिय होने के लिये यह भी जरूरी है कि आप नियमित लिखें. यदि पाठक को इस बात का पता न हो कि आप कब लिखेंगे एवं कब अवकाश रखेंगे तो उसे आपके चिट्ठे तक खीचने वाला एक घटक कम हो जाता है.
4. जनप्रिय होने के लिये यह भी जरूरी है के आपके अधिकतर आलेख जनोपयोगी हो. जनोपयोगी से मेरा मतलब यह नहीं कि हर बार पाठक को आप किसी चिट्ठा-लाटरी में शामिल करें, लेकिन मतलब यह जरूर है कि आपका उसे आलेख आनंद, मनोरंजन, प्रोत्साहन, उपयोगी जानकारी, शिक्षा आदि दे. यदि आप के चिट्ठे के सारे आलेख हर समय टिम्बकटू के पानी की समस्या के बारे में हो तो कौन हिन्दीवाला होगा जो उसे पढता रहेगा. दूसरी ओर टिम्बकटू वाला हिन्दी में क्यों पढेगा वह तो लेख को टिम्बकटी भाषा में चाहेगा. तो दोनों तरफ से आप मर गये.
5. अपने ब्लॉग को लोकप्रिय बनाने का एक तरीका यह भी है कि दूसरों को ब्लॉग को लोकप्रिय बनाने के तरीके सिखाए जाएं। वैसे आपने इसे अपने लेख में शामिल नहीं किया है। इसलिए इसपर मेरा कॉपीराइट बनता है। सही कहा न? (जाकिर अली "रजनीश" की टिप्पणी से)
कुल मिला कर कहा जाये तो चिट्ठाजगत एक इलेक्ट्रानिक समाज है जहां आप समाज के लिये जियेंगे, तो आप उन 20% में आ जायेंगे जिसे सारा समाज पढता है. यह कठिन कार्य नहीं है, लेकिन इसे व्यवहार में लाने के लिये जरूरी है कि आपका हर आलेख पाठकों में रुचि लेकर लिखा गया हो.
कोई भी बेवकूफ चिट्ठाकारी कर सकता है, लेकिन मजे की बात यह है कि उन चिट्ठों को पढने के लिये कोई बेवकूफ तय्यार नहीं होता — क्योंकि वे तो उन्नत स्तर के 20% चिट्ठे पढ कर चिट्ठा-निर्वाण प्राप्त करने की कोशिश में लगे रहते हैं.
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चलिये, आप तो बेवकूफ नहीं ही हैं। हम आपको पढ़ रहे हैं!
कौन चिट्ठाकार कितना बेवकूफ नहीं है? नापने का यंत्र खोजना/तलाशना पड़ेगा।
भई,हमतो बिना लाग लपेट और ना नुकर के अपने को चिट्ठा बेवकूफ मान ही लिए हैं ! औरों को यदि किंचित संकोच या हिचक है तो या तो उनकी रैगिंग ठीक से नही हुयी है या फिर वे अभी भी दिल से हिन्दी के ब्लॉगर नहीं हैं ! हम और आप तो हैं ही शास्त्री जी !
Sir, which software/plugin do you use to post in Hindi.
Kindly contact me through
http://www.myaarohi.com
@Dr.Arvind Mishra “हम और आप तो हैं ही शास्त्री जी !”
निश्चित रुप से!! वर्ना क्या ब्लागिंग में इतना समय लगा रहे होते? यदि ज्ञान जी और दिनेश जी को और मना सकें कि वे भी इसी केटगरी के हैं तो मजा आ जाये !!
🙂 ye Gyan ji ki baat par hai.. sahi kaha unhone..
ye dusara lekh bhi badhiya raha..
आपके सुझावों को ध्यानपूर्वक पढ रही हूं। पालन करने का प्रयास करूंगी।
शाश्त्रीजी , आपके द्वारा हुक्के में डाली गई तम्बाकू वाकई खांटी कनपुरिया थी ! आनंद आगया ! आज बहुत ध्यानपूर्वक आपका प्रोफाईल पढ़ कर आपके चिठ्ठे तक पहुँच पाया हूँ ! अब आवक जावक लगी रहेगी ! बहुत शुभकामनाएं !
अपने ब्लॉग को लोकप्रिय बनाने का एक तरीका यह भी है कि दूसरों को ब्लॉग को लोकप्रिय बनाने के तरीके सिखाए जाएं। वैसे आपने इसे अपने लेख में शामिल नहीं किया है। इसलिए इसपर मेरा कॉपीराइट बनता है। सही कहा न?
shashtri jee,
jane kab se tamanna thee aaj jaakar hakeekat pata chalee, waise aap log bewkoofon ko aklmand banane mein lag gaye hain, mujhe to abhi se divya gyaan kee anubhuti ho rahee hai, waise bahut achhe baat shuroo kee hai aapne.
बधाई सीनियर चिट्ठाकार जी 🙂
सही कहा जी .हमारे सामने वाले प्रोफेसर साहब तो ब्लोगिंग के ख़िलाफ़ है कहते है की नचियिये.गवियिये ब्लॉग लिख रहे है .हम घबरा गये ..पूछा कौन ?? .बोले अमिताभ ..शारुख .आमिर….ओर बाकी बचे पढ़े लिखे लोग वहां लड़ते है..
हम तो बेवकूफी के रास्ते के मुसाफ़िर थे ही। लेकिन लगता है शास्त्री जी हमसे यह उपाधि छीन लेने की योजना के अन्तर्गत यह श्रृंखला लिख रहें हैं। …सच में आपके लेख ज्ञान में वृद्धि करने वाले हैं। आभार।
कैसी बेबकूफी की बात है. अरे भाई जो चिट्ठाकारी करना चाहे करे, आपको तकलीफ क्यों होनी चाहिए? आप अकलमंदी की चिट्ठाकारी करते रहिये.