बोदूमल को था
इस बात का मलाल सदा,
कि अंग्रेजी मीडियम में
पढ न पाये कभी.
अरे, सदा वह कहता बीबी से,
चपरासी हुआ तो क्या अरी बुधानी,
जनरल होता आर्मी में आज
यदि अंग्रेजी का होता
ज्ञान मुझे तो.
आकर बसे एक रिटायर्ड करनल
बगल में,
मेम थी जिसकी हिम समान गोरी,
तो इच्छा हो गई बलवती
यह सिद्ध करने की,
कि बोदू किसी जनरल से
कम नहीं है.
हिम्मत नहीं हुई कभी उन से
दुआ सलाम की,
क्योंकि शेरपुत्र था करनल,
बरगद के समान घनी मूछें,
अंगारों को मात करती आंखें,
बातबात में हरेक को
गोली मारने की धमकी.
युद्ध स्तर पर की
जासूसी बोदू ने
एक महीना,
फिर बोला
तोड लिया है हमने अरी बुधानी
तिलिस्म करनल का.
अरी बुधानी,
बोला बोदू प्राणप्रिये से
मंत्र के शब्द हम न समझें,
पर याद कर लिया है उसे जतन से.
शक्ति तो होती है शब्दों में,
मतलब से हमें क्या.
फूंक देंगे उसे करनल की
जनानी पें
तो गले लग जायगी
झट हमारे!
यही तो करता है करनल
दफ्तरे से आ,
रोज अपने गृह-प्रवेश पें.
अभ्यास कर रहे थे करनल
शाम, रायफल निशाने का
अपने बगीचे में.
मेम थी पी रही चाय
बगल में.
जाकर फुर्ती से बोदू ने
कर दिया
उच्च स्वर में
मन्त्रोच्चार मेम पे,
“गिव मी ए किस माय डार्लिंग”.
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हा हा उसके आगे क्या हुआ ?
वाह ! वाह ! शास्त्री जी |
भारत के करोड़ों बोदुमलों की स्थिति यही है |
सुबह सुबह पढके मजा आ गया । लेकिन सिर्फ़ मजा हि नही आया, यह कुछ सोचने कि ओर इसारा भी करती है ।
शास्त्री जी से सावधान।
अनुपम, बेहतरीन, उम्दा, जमाए रहें , बधाई स्वीकारें . आभार !
वाह खूब ! आगे क्या हुआ सस्पेंस रहे तो ही ठीक है !
बहुत मज़ेदार !!!
आगे कुछ कहने के लिए बोदुमल रहे तब ना!
शाश्त्री जी आप यकीन करिये एक बोदुमल ( उसका नाम बोदूराम था ) हमारे साथ भी पढता था ! और बिल्कुल आपके लेख के नायक जैसा ही !
हमारे बोदू कि तरह आपके बोदू ने भी खूब जूते खाएं होन्गे ? 🙂
उसके आगे क्या हुआ ! 🙂
बोडू राम ख्या कारटा हाय…
आगे क्या हुआ होगा कहने की जरूरत नहीं।
बोंदू जी के साथ उसके बाद जो हुआ वो मैं जानता हूँ। लेकिन बताउंगा नहीं। भविष्य के बोंदू बिदक जाएंगे…। 🙂
पूछो न कैसे वह फिर घर आया,
खुद ही पहुंचा या कोई उठा कर लाया।
यह तो आपने हास्य के रूप में लिखा है। पर मैं – जो गांव के देसी स्कूल से चला, यह आज भी महसूस करता हूं, कि जिन्दगी की दौड़ का इनीशियल एडवाण्टेज तो नहीं ही मिला था हमें।
मजा आ गया पढ़कर. वाह!
धन्यवाद.
अंग्रेज बडे ही फारवर्ड और काइण्ड होते हैं, रिक्वेस्ट को अनहर्ड नहीं करते । तलाश कीजिए, बोंदू की रिक्वेस्ट पर फेवरेबल एक्शन ही लिया होगा लेडी ने ।
हास्य की बढ़िया टॉनिक!!!!!!
प्राइमरी का मास्टर का पीछा करें
सर
माफी चाहूंगा पर यह जानने की उत्कट इच्छा है कि:
यह सब आपको पता कैसे चला 🙂
कर्नल साब ने फिर किया क्या….ये ठीक बात नहीं है सारथी जी यूं अपने पाठकों को इस तरह भंवर में छोड़ना
जाकर फुर्ती से बोदू ने
कर दिया
उच्च स्वर में
मन्त्रोच्चार मेम पे,
“गिव मी ए किस माय डार्लिंग”.
बहुत ही अच्छी एवम टॉनिक युक्त॥॥। बधाई॥॥
पलीता लंबा था पर बम फटा बहुत खूब, मजा आ गया, वाह शास्त्री जी, एक साधारण हिन्दी भाषी जिसे अंग्रेजी नही आती उसकी स्तिथि को बहुत मजेदार ढंग से प्रस्तुत किया आपने.