शाश्वत सत्यों को कोई भी व्यक्ति मिटा नहीं सकता. इनमे से एक शाश्वत सत्य है कि जैसी करनी वैसी भरनी. Sataire विधा में एक काल्पनिक — लेकिन संभाव्य — घटना द्वारा इस विषय पर प्रकाश डाला गया है. अखबारों में इससे मिलतीजुलती घटनाये आये दिन नजर आ जाती हैं.
मस्टर साहब
भौतिकी के अध्यापक थे, जडत्व अघूर्ण जी.
सच को त्याग देते थे सुबह दातौन के साथ,
मेहनत त्याग देते थे हर दिन विद्यालय के द्वार.
"जियो और जीने दो" था जीवन का आदर्श,
शर्त यह कि जीकर दिखाओ पर भलाबुरा मत देखो.
अत: साल भर का कोर्स पूरा कर देते थे बीस दिन में
तर्क यह देते थे कि मर जायेंगे बच्चे,
यदि कोर्स पढायेंगे पूरा.
अत: जीने दो उनको
कोर्स का कुछ वजन कम करके.
थे जडत्व जी नंबर एक के भ्रष्टाचारी,
लेकिन तर्क था उनका कि बच्चों पर कोर्स
लादना है असली भ्रष्टाचार.
देते थे तर्क कि वजन कम करना बच्चों का
है असली सदाचार,
अतः वजन डालो कम से कम उन पर,
लेकिन नंबर दो अधिक से अधिक.
कहते थे कि किसी आचार से यदि हो सभी का फायदा,
तो वह कभी नहीं है भ्रष्ट-आचार!!
जम कर पास करते थे हरेक को मुफ्त में,
लेकिन मुद्रायें सूतते थे बहुत,
पचास से ऊपर प्रतिशत देने में.
जीवन एक व्यापार है जडत्व जी याद दिलाते,
ऐसे जियो कि किसी को नुकसान न हो,
और हरेक को मिले रास्ता लाभ का.
एक भी फेल नहीं हुआ भौतिकी में आघूर्ण जी के काल में,
भले ही दूसरों के विषय में कई को नंबर मिलते थे शून्य.
अन्य विषयों में फेल छात्रों की भी लगा देते थे आघूर्ण जी
नैया पार, यदि समय पर कोई पडे उनके पांव.
सस्पेंड होते बचे कई बार जब
पकडे गये कोरी कापी पर देते नंबर शत शत.
जो जो बैठे थे जांच पर, उनके बच्चों पर
पहले ही से थे आघूर्ण जी मेहरबान.
खुब बचे वे अपने "आदर्श" के कारण
कि ऐसे जियो कि सब का हो भला.
आघूर्ण जी थे बडे दयावान,
खास कर जब पाते थे मुद्रायें.
लेकिन जीवन में सदा एक बात का था दुख,
एक ही था बच्चा उनका, लेकिन था वह
बालक मानसिक विकलांग.
हृष्टपुष्ट शरीर लेकिन शून्य था दिमांग.
जुकाम हुआ एक बार, तो ले गये अपने ही
पूर्व विद्यार्थी के नर्सिंग होम.
उसने तीन दिन की बीमारी का
तीन हफ्ते किया गंभीर इलाज.
बिल चुकाने पहुंचे आघूर्ण जी तो डाक्टर बोले
जिन्दगी की राह तो आप ने ही बताई गुरूजी,
सारे गुर भी आप ही ने सिखाये.
जियो और जीने दो आप ही ने सिखाया,
आपका बेटा तो "जी" रहा है,
बहुतों को अब वह "जीने" दे रहा है.
निकाल लिया है एक किडनी, एक कलेजा,
एवं कुछ और चीजे छोटी मोटी,
उसके इलाज का अत: कोई पैसा न लगेगा.
आपके हिस्से का बचा है एक लाख,
और दुआयें उनकी जिनको आपके जीते बालक ने
एस तरह "जीने" दिया है.
सब कुछ किया ऐसे आपकी शिक्षा के कारण,
कि किसी को कोई हो न नुकसान तो
वह आचार भ्रष्ट-अचार नहीं है.
इतना ही नहीं प्यारे गुरूजी,
जैसे आप बचा कर रखते थे हमेशा
कुछ नंबर अपने इष्ट विद्यार्थी के लिये,
उसी तरह मेरे इष्ट अद्यापक के
बुढापे के समय बेचने के लिये,
अभी भी बचा कर रखे हैं इस बालक की
दो स्वस्थ आंखें एवं दो — कोश !!
यदि आपको टिप्पणी पट न दिखे तो आलेख के शीर्षक पर क्लिक करें, लेख के नीचे टिप्पणी-पट दिख जायगा!!
Article Bank | Net Income | About India । Indian Coins | Physics Made Simple
बहुत अच्छी कविता लिखी आपने. पर ये व्यंग्य है ये बताने की जरूरत नही है. रचना खुद ही बोलती है कि वह क्या है. साधुवाद्
बहुत ख़ूब. जोरदार आईना दिखाया है आपने शास्त्री जी. ऐसे लोगों के साथ तो यही होना चाहिए. उनके दिलों की फीके करने की जरूरत ही नहीं है.
आईना भी जोरदार होता है. चलिए आज नया ज्ञान मिला,
hello,
sorry i am posting a question which is not related to this post. after seeing this :-
“This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivs 3.0 License. ”
i am curious to know what is this and if this is for stopping the theft of the post than why i am reading complain about some post were copied in name of other person.
sanjay sharma
“सब कुछ किया ऐसे आपकी शिक्षा के कारण,
कि किसी को कोई हो न नुकसान तो
वह आचार भ्रष्ट-अचार नहीं है.”
मुझे भी ऐसा ही लगता है
हमारे भी एक मास्साब थे कहते थे बिना धनोबल के मनोबल नही बड़ता.
उनसे पढो घर पर बिना लिखे पास हो जाओ
बहुत जोरदार आईना दिखाया है
An Eye Opener?
सटीक।
बहुत सटीक और लाजवाब व्यंग !
रामराम !
ऐसी सजा पाने वाले मास्टर साहब पर दया करनी पड़ेगी। बेचारे…। वैसे इस प्रकार का प्राकृतिक न्याय होते मैने वास्तव में देखा है।
सुंदर और हृदय-विदारक…एक साथ कहना उचित होगा क्या?
जैसा बोया जायेगा वैसा ही कटेगा। हर जगह बदलाव आ गया है, इस भोगवादी संस्कृति के कारण। मुझे अपने शिक्षक आज भी याद हैं जो बिना किसी चाह या लालच के हमारे भले के लिये अपना भी कुछ त्यागने को नहीं हिचकिचाते थे। नमन है उन पुण्यात्माओं को।
संजय शर्मा जी ने बीच में कुछ लिख कर ध्यान बाँट दिया. यदि हिन्दी में लिख देते तो अपने पल्ले भी पड़ जाता. चूँकि उनका कॉमेंट इस पोस्ट से संबंधित नहीं है, इसलिए हटा दीजिए और उन्हें सीधे उत्तर दे दें. लगता है कि आपको जितने भी गुरुजन मिले सभी बड़े दुश्ट प्रवृत्ति के रहे. केवल सहानुभूति जताई जा सकती है. कविता वैसे अच्छी बन पड़ी है अब इसके लिए प्रेरणा तो उसी दुश्ट गुरु से मिली. उनका आभार कर देश को आगे बढाये.
जब समाजिक मुल्यों मे गिरावट आ रही हो तो यह सब देखने को मिलने ही वाला है । लाजवाब व्यंग के लिये आभार।
शिक्षा को तो सौदेबाजी समझ ली जड़त्व जी ने |
शानदार |
बहुत खूब….गुरूजी मेरे चिट्ठे तत्वचर्चा का जाल पता थोङा बदल गया है कृपया ध्यान दीजियेगाhttp://mihirbhoj.blogspot.com…
बहुत खूब। गुरू की महिमा अपरम्पार है।