[हिन्द युग्म से साभार] दुनिया में लगभग हर कौम को कभी न कभी गुलामी देखनी पडी है. और लगभग हर कौम ने गुलामी करवाने वालों के विरुद्ध बगावत की है. ऐसी ही एक खुनी बगावत के लिए मशहूर है कौम यहूदियों की भी.
ईस्वी पूर्व 42 की बात है, धनी यहूदियों पर एक शक्तिशाली गैर-यहूदी का राज्य हो गया. हेरोद-महान नामक यह गैर-यहूदी राजा जानता था कि यहूदियों से लोहा लेना आसान नहीं है अत: उसने यहूदियों को हर तरह से प्रसन्न रखा. राजकाज ठीक से चलता रहा. जैसा कि होना था, लगभग तीन दशाब्दी राज्य करने के बाद उसके राज्य की नींव हिलने लगी लेकिन उसने अपनी शक्तिशाली गुप्तचर सेना की सहायता से हर शत्रु का उन्मूलन कर दिया और राज्य अपने हाथ से न जाने दिया.
उसकी क्रूरता के कारण यहूदी फिर दब कर रहने लगे. रहस्यमय राजनैतिक हत्यायें चलती रहीं और उसके परिवार के कई प्रतिद्वन्दी एक एक करके लुप्त होने लगे. हेरोद और उसकी गुप्तचर सेना के मारे हर कोई थर्राता था. अचानक एक दिन एक दुर्घटना हुई और हर यहूदी का कलेजा मुँह को आ गया …
उस दिन यहूदियों के देश के पूर्वी देशों से विद्वानों का एक बडा काफिला हेरोद-महान के दरबार पहुंचा और बताया कि एक नये राजा का जन्म हुआ है और आसमान में उदित एक नया तारा इसका चिन्ह है. यह चिन्ह देख हेरोद एकदम डर गया. वह लगभग 75 साल की उमर का हो गया था और अपने हाथ से राज्य के छिन जाने के डर के कारण वह अपने परिवार, मित्र, और राज्य में हर संभावित प्रतियोगी की रहस्य में हत्या करवा चुका था. वह यह सोच कर बेचैन हो गया कि अचानक अब कौन प्रतियोगी पैदा हो गया!
इस बीच सारे यहूदी बुरी तरह घबरा गये क्योंकि राजपरिवार में कोई बच्चा नहीं जन्मा था और वे समझ गये कि इस खबर के कारण किसी आम परिवार के बच्चे पर तलवार गिरने वाली है.
हेरोद भी समझ गया कि नक्षत्र उसके अपने परिवार की नहीं बल्कि जरूर किसी यहूदी राजपुत्र के जन्म की खबर लेकर आया है. इस कारण उसने यहूदियों के पंडितों को बुलाया जिन्होंने इस बात की पुष्टि की कि वे एक राजाधिराज के जन्म का इंतजार कर रहे हैं और उनका पदार्पण "बेतलेहेम" नामक यहूदी गांव में होगा. हेरोद बहुत चालाक था. उस ने विद्वानों को रहस्य में बुलाकर तारे के उदय होने की तारीख एवं उस बालक की संभावित उमर वगैरह की जानकारी लेकर विद्वानों को बेतलेहेम गांव की ओर भेज दिया. उनसे यह भी कहा कि जब वे बालक का पता लगा कर उसे दंडवत कर लें तो उसके ठिकाने की खबर बादशाह को भी दें जिससे वे भी जाकर बालक को माथा टेक आयें.
विद्वान लोग जैसे ही उस सुदूर गांव की ओर चल दिये कि अचानक वह तारा पुन: आकाश में दिखने लगा और इस बार उनके आगे आगे उस गांव की ओर चलने लगा जिस के बारे में यहूदियों के पंडितों ने इशारा किया था. बेतलेहेम पहुंच कर वह तारा उस घर के उपर ठहर गया जहां मुक्तिदाता ईसा अपने माँ-बाप के साथ थे. उनकी उमर दो साल होने ही वाली थी.
पूर्वी देशों से पधारे विद्वानों ने अपने ऊंटों के ऊंटों के काफिले से उतर कर ईसा के समक्ष माथा टेका और महाराजाधिराजों के लिये उपयुक्त कुंदन, लोहबान, और गंधरस भेंट किया. अनुमान है कि लोहबान और गंधरस हिन्दुस्तान से (हिमालय से) ले जाये गये थे. ईसा के मांबाप ने उनको बताया कि वे ईश्वरीय प्रेरणा से ईसा को माथा टेकने के लिये पधारे दूसरे झुंड हैं. पहला झुंड गडरियों का था जो एक आसमानी वाणी सुन कर लगभग दो साल पहले ईसा के जन्म के दिन उनके दर्शन के लिये आये थे.
विद्वान लोग वापसी की तैयारी कर रहे थे कि उनको ईशवाणी हुई के वे हेरोद बादशाह के पास वापस न जायें क्योंकि बादशाह का असल लक्ष्य ईसा का दर्शन नहीं बल्कि उनकी हत्या करवाना है. ईशवाणी के कारण वे बादशाह के पास जाने के बदले सीधे अपने देश चले गये. इस बीच ईसा के पितामाह को ईशवाणी हुई कि हेरोद बादशाह ईसा की हत्या की सोच रहे हैं. इस दिव्य वाणी को सुन वे लोग ईसा को लेकर चुप के से मिस्र देश चले गये.
विद्वानों की वापसी के इंतजार में बैठे बादशाह को आखिर उनके गुप्तचरों ने आकर खबर दी कि जीजान से कोशिश करने के बावजूद किसी अनजान कारण से वे न तो विद्वानों पर नजर रख सके, न ही बालक ईसा का घर ढूंढ सके. इसे सुन कर हेरोद के क्रोध का पारा ऐसा चढा कि उसने आज्ञा दी कि यहूदियों के दो साल से कम उमर के सारे बालकों को तलवार के घाट उतार दिया जाये. तारे के उदय होने का समय उसने विद्वानों से पूछ लिया था और उस आधार पर उसका अनुमान था कि ईसा उस समय दो साल से कम उमर के थे.
यहूदियों के सारे गांवों और नगरों में हाहाकार मच गया जब सैनिकों ने निर्दयता से एक एक घर पहुंच कर दो साल व उस से कम उमर के सारे बालकों को निर्दयता के साथ तलवार के घाट उतार दिया. इस तरह हेरोद बादशाह को बडा सकून मिला कि अब उनका राज्य उन से कोई भी छीन न सकेगा. लेकिन अचानक एक घटना हुई.
अचानक बादशाह को एक एक करके कई प्रकार के असाध्य रोगों ने घेर लिया. खाल फट कर रिसने लगा. वह मानसिक रूप से विक्षिप्त भी होने लगा. लोगों को ऐसा लगने लगा कि कोई पागल मानवनुमा जंगली जानवर अब उन पर राज्य कर रहा हो. मुश्किल से एक साल नहीं बीते कि उसके बदन में कीडे पड गये और अचानक एक दिन वह "महान" बादशाह न रहा.
ईसा को कोई हानि न हुई एवं तीस साल की उमर तक वे अपने मांबाप के साथ रहे. उनके पितामाह इमारती लकडी का कार्य करते थे जो कि उस जमाने में श्रमसाध्य कार्य होता था. ईसा ने हर तरह से इस कार्य में अपने परिवार का हाथ बटाया. लेकिन इस बीच धर्म और दर्शन में उनके अगाध ज्ञान को देख कर लोग चकित होने लगे थे क्योंकि ईसा किसी भी प्रकार के गुरुकुल में नहीं गये थे. उनकी मां इस बात को जानती थी, लेकिन बाकी अधिकतर लोग इस बात को समझ नहीं पाये थे कि जिस धर्म एवं दर्शन का स्रोत परमात्मा स्वयं हैं, उसे सीखने के लिये ईसा को किसी का शिष्य बनने की जरूरत नहीं थी.
तीस साल की उमर में वे सामूहिक सेवा के लिये निकल पडे और अगले साढे तीन साल में अपना लक्ष्य पा लिया. इसका परिणाम यह हुआ कि यहूदियों ने उनको रहस्यमय तरीके से पकडवा दिया और सूली पर टंगवा कर उनकी हत्या करवा दी. लेकिन जैसा यहूदियों के शास्त्रों में कई बार भविष्यवाणी हुई थी, ईसा अपनी मृत्यु के तीन दिन बाद पुनर्जीवित हो गये और चालीस दिन तक जनसाधारण को दर्शन एवं प्रवचन देते रहे. यह देख उनके हत्यारों के बीच बडी बेचैनी और खलबली मच गई, लेकिन उन्होंने ईसा पर पुन: हाथ डालने की कोशिश न की. इन चालीस दिनों के पश्चात वे स्वार्गारोहण कर गये.
इस घटना के लगभग दो सहस्त्र साल के बाद की स्थिति जरा देखें! आज महान बादशाह हेरोद को कोई नहीं जानता. इस लेख को लिखने के पहले मुझे विश्वकोश में देखकर उनके बारे में जानकारी लेनी पडी. लेकिन आज ईसा का नाम हर कोई जानता है. यहाँ तक की जिन (लगभग) गुमनाम विद्वानों ने ईसा को माथा टेका, वे आज भी अमर हैं क्योंकि क्रिसमस या ईसाजयंती पर जो कार्ड भेजे जाते हैं उन में अकसर ऊंटों पर सफर करते इन विद्वानों का चित्र दर्शाया जाता है. इतना ही नहीं, ईसा के जन्म के दिन जिन गुमनाम गडरियों को ईसा के जन्म के बारे में खबर दी गई थी उनका चित्र भी अकसर क्रिसमस-कार्ड पर दर्शाया जाता है. यह ईसा की शिक्षा को बहुत ही सुंदर तरीके से प्रदर्शित करता है कि मनुष्य इस बात से महान नहीं बनता कि वह क्या है, बल्कि इस बात से महान बनता है ईश्वर के साथ उसका क्या नाता है. जो कोई दूसरों से उसका हक छीन कर बडा बनना चाहता है वह मटियामेट हो जाता है. यह भी ईसा की शिक्षा में हम देखते हैं.
इस हफ्ते सारी दुनियां में लोग ईसाजयंती मना रहे हैं. अपनी सुरक्षा के लिये जब एक व्यक्ति लोगों से उनका जीवन छीन रहा था तब ईसा ने लोगों को शाश्वत जीवन प्रदान के लिये अपना जीवन कुर्बान कर दिया था. यह है इस साल ईसाजयंती पर हम सब के लिये एक चिंतनीय संदेश.
शास्त्री जी, जी के बढ़ाने के लिए धन्यवाद. बहुत बढ़िया जानकारी दी है आज आपने.
बहुत बढ़िया जानकारी
ईसा के बारे में यह कथा पढ़कर अतीव प्रसन्नता मिली। हार्दिक धन्यवाद।
फिर एक बार पढ़ा इस कथा को। किसी भी महापुरुष के जन्म की कथा कुछ ऐसी ही होती है। क्यों पैदा होते ही उस व्यक्ति को पता लग जाता है कि जिस का तख्त जन्मने वाले व्यक्ति के कारण जाने वाला होता है। कंस को भी कृष्ण के जन्मते ही जानकारी हो गई। मुझे लगता है कि इन कथाओं में बहुत सी बातें केवल महत्ता स्थापना की दृष्टि से आरोपित होती हैं।
बहुत धन्यवाद ! आपने इतनी सुन्दर जानकारी दी ! असल मे परमात्मा के चरित्र को सुन्दर प्रतीकों से दर्शाया जाता है जिसमे उसकी महता और स्थापना वाली बात मुझे नही लगती !
अब जैन अनुयायी कहते हैं कि महावीर भगवान की शिराओं मे दुध बहता था तो इसे आप महता कहेंगे क्या ? अगर खून की जगह दूध बहता हो तो एक सैकिंड इस शरीर मे आदमी नही जी सकता !
कुल कहने का भाव ये होता है कि भगवान महावीर इतने निर्मल और पवित्र विचार के हो चुके थे कि दुग्ध की तरह धवल और पवित्र स्वभाव के हो चले थे ! ये तो उपमाएं है ! अगर उपमाओं को सत्यता/असत्यता की कसौटी पर कसने जायेंगे तो प्रभु का मूल भाव हम चूक जायेंगे !
अब लोग चांद जैसी प्रेमिका की कामना करते हैं अब सोचिये अगर वाकई चांद जैसी ऊबड खाबड चेहरे वाली प्रेमिका मिल जाये तो उससे कौन शादी करेगा ? भाई सीधी बात है कि
चांद को हमने सुंदरता का प्रतीक माना हुआ है तो प्रतीको को प्रतीक ही रहने दिया जाये तो सुन्दर है !
हम तो आपके लिखे से सहमत हैं और कंस व कृष्ण से भी सहमत हैं ! बाकी सबकी अपनी अपनी समझ है जो जैसे समझना चाहे समझे ! आपने बहुत सुन्दर जानकारी दी आपका आभार !
रामराम !
जानकारी के लिए धन्यवाद।
अपनी सुरक्षा के लिये जब एक व्यक्ति लोगों से उनका जीवन छीन रहा था तब ईसा ने लोगों को शाश्वत जीवन प्रदान के लिये अपना जीवन कुर्बान कर दिया था. यह है इस साल ईसाजयंती पर हम सब के लिये एक चिंतनीय संदेश.
हैरतंगेज और रोमांचक कहानी है ये बचपन मे पढ़ी थी कभी .. आज यहाँ फ़िर से पढ़ कर वही रोमांच की अनुभूति है…
Regards
समयानुकूल प्रासंगिक लेख के लिए आभार.
kmaal kee rochak aur jaankaareepurna kathaa padhwaaee aapne.
ईसा के बारे में यह प्रसंग लिखकर आपने क्रिसमस के अनुभव का विस्तार कर दिया है. धन्यवाद.