किस्सा कुर्सी का!!

Chair पिछले दिनों अपने बेटे के साथ समय बिताते समय हम दोनों में जब उसके आगे के पढाई (MD Medicine) चर्चा हुई तो मैं ने सुझाव दिया कि सुविधा के लिये मैं उसे एक आरामदायक घुमंतू-कुर्सी दिलवा दूंगा जिससे कि प्रवेश-परीक्षा के लिये  दीर्घ घंटों तक बैठकर पढते समय शरीर को आवश्यक सहारा मिल सके.

उसके साथ शहर के सबसे बडे फर्नीचर दुकान में जाकर मैं ने केटलाग से 3500 रुपये की एक कुर्सी पसंद की एवं 500 रुपया पेशगी दिया. मैं ने दुकानदार को यह भी बताया कि तीन दिन बाद जब कुर्सी आ जायगी तब हमको एक पक्के रसीद की जरूरत होगी जिससे कि बेटे के छोड जाने पर हम इसे अस्पताल को भेंट कर सकें. उसने तुरंत उत्तर दिया कि टेक्स के पैसे 12% अतिरिक्त होंगे जिससे मुझे परेशानी होगी. मैं ने जवाब दिया कि मुझे अपना फर्ज पूरा करने में कोई परेशानी नहीं होगी.

मैं ने उसे यह भी याद दिलाया कि टेक्स देना हमारा कर्तव्य है और टेक्सों के  कारण ही उनके दुकान के बगल से होकर गुजरने वाला गजब का हाईवे बन सका है. (इस मनमोहिनी हाईवे के बारे में कल लिखूंगा). दुकानदार खुशी खुशी मान गया कि यह सही बात है और यह भी कि टेक्स चोरी का नजरिया गलत है.

आज सुबह बेटे का दूरभाष आया कि कुर्सी उसे बेहद आराम दे रही है. उसने यह भी बताया कि दुकानदार मेरे नजरिये से इतना प्रभावित हुआ था कि उसने पक्का बिल दिया और फिर कीमत में 300 रुपये कम कर दिये.

यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम राष्ट्रनिर्माण में हर तरह से योगदान दें. इस लक्ष्य के साथ जो लोग ईमानदारी से जीना चाहते हैं कई बार उनको हंसी का पत्र बनना पडता है. मुझे तो यह अनुभव अकसर होता रहता है. लेकिन इस बार एक ऐसा अवसर भी आया जब किसी ने 300 रुपये का नफा कम लेकर मुझे एवं मेरे नजरिये को प्रोत्साहित किया.

शुक्रिया मेरे दोस्त!! अगले 10 साल के लिये आप ने मुझे प्रोत्साहित कर दिया है!!

आईये, सन 2025 से पहले हिन्दुस्तान को एक वैश्विक शक्ति, एवं 2035 से पहले हिन्दुस्तान को दुनियां की सबसे बडी सामरिक, आर्थिक, एवं सामाजिक शक्ति बनाने के लिये तन मन धन से लग जाये!!

 

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Author: Super_Admin

26 thoughts on “किस्सा कुर्सी का!!

  1. भाग-२ हम अपने चन्द रुपये बचाने के लिए दुकानदार को भी गलत काम करने का बढ़ावा देते हैं बिना पक्की रसीद लिए.
    प्रेरणादायी आलेख.(क्रमशः)

  2. भाग-३हिन्दुस्तान को दुनियां की सबसे बडी सामरिक, आर्थिक, एवं सामाजिक शक्ति बनाने के लिये तन मन धन से लग जाये!! इसमें डेट की क्या जरुरत-जितना जल्दी हो, अच्छा है. 🙂 (समाप्त)

  3. आपने बहुत सही बात की है।
    कुर्सी निःसंदेह इतनी धांसू किस्म की है कि अपना भी मन कर रहा है कि एक इस तरह की खरीद ही ली जाये।
    और डाक्टर साहब को हमारी तरफ़ से पी जी एंट्रैंस के लिये बहुत बहुत शुभकामनायें अवश्य भिजवा दीजियेगा—- दुआओं में बहुत असर होता है !!

  4. प्रेरणादायी आलेख। सबसे बड़ी बात अनेक प्रेरक प्रसंगो में आपकी उपस्थिति होती है। हम वही प्रसंग, उसी व्यक्ति की लेखनी से प्राप्त कर रहे होते हैं, जो शरीक है पूरे घटनाक्रम में। प्रेरणा ज्यादा बलवती होकर मन में समा जाती है।
    इस आलेख के लिये धन्यवाद्।

  5. न्यायमूर्ति होमस् पिछली शताब्दी के सबसे महानतम न्यायधीषों में से एक थे। वे टैक्स के कानूनों को हमेशा संवैधानिक घोषित कर देते थे। इससे चिढ़ कर उनकी सेक्रेटरी ने पूछा,
    ‘क्या आपको अधिक टैक्स देते समय बुरा नही लगता।’
    उनका जवाब था,
    ‘नहीं, मुझे टैक्स देना अच्छा लगता है। मैं इसके द्वारा अपनी समाज, सभ्यता के जरूरी कार्य खरीदता हूं।’

  6. अच्छा व प्रेरक है ! यदि हम टेक्स ना देगे तो देश में विकास कार्य कैसे होंगे अतः कभी भी बिना बिल के सामान मै भी नही खरीदता !

  7. प्रेरणादायक. यहाँ हम एक और बात करने से अपने आप को रोक नहीं पा रहे हैं. इस प्रकार टॅक्स लेकर बहुत सारे मेडिकल स्टोर भी चल रहे हैं जहाँ

  8. प्रेरक.. हम १०% टेक्स के चक्कर में ९०% काला धन पैदा कर देते है.. बधाई आपको..

  9. बातों-बातों में बहुत कुछ सिखा गये आप। मध्यवर्ग का एक बड़ा हिस्सा तो टैक्स बचाने(चुराने) को अपनी चतुराई समझता है। इतने प्रेरक आलेख के लिये आभार।

  10. “300 रुपये का नफा कम लेकर मुझे एवं मेरे नजरिये को प्रोत्साहित किया.
    किस्सा कुर्सी का! मजेदार रहा….फर्ज तो सभी का रहता है की टैक्स देकर हम सरकार और कानून की सहायता करें….”

    Regards

  11. सही है. अगर काम होता दिखे तो लोगो को टेक्स देने में परेशानी नहीं होती है. जनता की मेहनत का पैसा कोई उड़ाता है तो कोई क्यों टेक्स देना चाहेगा. सरकारों का नजरिया बदल रहा है और सामने से लोगों का भी.

  12. आपने पक्का बिल मॉग कर दो लोगो को अपने कर्तव्य के प्रति आगाह किया। (१) दुकानदार (२) आम जनता

    आप अपने जिवन मे जो बात करते है लिखते है उसका मुर्त रुप देख मुझे एक सीख मिलती है कि मै भी कोई भी वस्तु खरीदु तो पहले बिल मागु।

  13. बहुत प्रेरणादायक आलेख. पर क्या गरीब जनता से वसुले गये टेक्स का ताऊ (नेता) लोग सही उप्योग करते हैं? गरीब जनता इस लिये कह रहा हूं कि आजकल सर्विस् टेक्स के रुप मे सबसे ज्यादा टेक्स आ रहा है. जो हाईवे बने हैं उनके ठेके का कितना प्रतिशत ताऊओं की जेब मे गया? हम गरीब लोग इतना टेक्स देते हैं मर्जी या बिना मर्जी, कि हम हिन्दुस्थान की सडको और भवनों को सोने के पतरो से मढ सकते हैं. पर योजनाओं का पैसा कितना इनकी जेब मे और कितना योजनाओं मे लगता है? एक बार स्व. राजीव गांधी ने दुखी होते हुये कहा था कि १०० रुपया केंद्र से चल कर १५ रुपया भी गरीब की योजनाओ मे नही पहुंचता.

    और आज स्विस बैंको मे भारतीय धन के जो जमा आंकडे हैं उनमे इन ताउ लोगों का कितना है?

    आदर्णिय जनता तो बेचारी बहुत इमानदार है. उसकी बेईमानी करने की हिम्मत ही नही पडती. बेईमान तो ये ताऊ हैं जो सब्को बेइमान बना्ने की कला सिखाते हैं.

  14. गुरुदेव! एक बात तो छुट ही गई मेरे से और आप से ।

    .”फर्ज-प्रेरक व अनुकरणीय – कर्तव्य – जागरुकताराष्ट्रनिर्माण में हर तरह से योगदान” क्या ईन्ह शब्दो का पालन सिर्फ आम जनता करे ? सरकार मे बैठे लोगो का इन्ह शब्दो से कोई सरोकार है या नही ? क्या जनता जनार्धन जो अपना कर्तव्य समझ कई तरह के टेक्स सरकार को अदा करते है नेता लोग अपना कर्तव्य या यू कहे हक समझ कर जेबे भर रही है- ऐसे मे आपका सन्देश”सन 2025 से पहले हिन्दुस्तान को एक वैश्विक शक्ति, एवं 2035 से पहले हिन्दुस्तान को दुनियां की सबसे बडी सामरिक, आर्थिक, एवं सामाजिक शक्ति बनाने के लिये तन मन धन से लग जाये!! कैसे सम्भव हो पायेगा ? जहॉ तक मेरी जानकारी है भारत मे टेक्स से ज्यादा रिश्वत कि अदाईगी ज्यादा होती है टेक्स के मुकाबले रिश्वत कलेक्शन ६००गुना अधिक है।मेरा ऐसा मानना है सरकारी दुकानदारो को सबसे पहले सबक सिखाना चाहिये इसके लिये स्वतन्त्रता की एक लडाई फिर से लडनी पडेगी । जब तक कुर्सी पर बैठे नेताओ को उनका कर्तव्य नही समझाया जायेगा आपके सपने मे त्रृटीया बनी रहेगी। आप से विनती है आप एक लेख नेताओ के कर्तव्य पर भी लिखे। क्यो कि ताली एक हाथ से नही बजती। सिर्फ चुट्की बजती है और ऐसे मे भारत को ताकतवर बनने मे लम्बा समय लग सकता है।

    जय हिन्द -जय महाराष्ट्रा

  15. लेख के माध्यम से देश के विकास के प्रति आपकी जागरुकता एवम आपके सदविचारो से कर्तव्यो का बोध होता है, अब सभी नेता ताऊगिरी छोड दे नही तो ताऊ बाबुओ, कि खैर नही। क्यो कि शास्त्रीजी ने देशहीत मे अपनी कलम मे लाल स्याही भर दी है।

    ताऊ कान्ट्रेक्ट्रो, ताऊ नेताओ, ताऊ बाबुओ, ताऊ राजुओ (सत्यम), सम्भल जाओ वर्ना॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥।

  16. जिनके पास पैसा है वे टैक्स भी दे देंगे , और ज्यादा हो तो कुछ दान भी दे देंगे . जिनके पास गुजर करने लायक ही कम पडता है वे हर तरीके से बचाने का प्रयास करेंगे ,जिनके पास और भी कम है वे अवैध तरीकों से कमाने का प्रयास करेंगे . यह होता रहा है और होता रहेगा . सन 2100 में भी !

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