सन 1990 में मैं वजीफे पर एडवांस्ड-काऊंसलिंग की ट्रेनिंग के लिये अमरीका गया था. तब हर मौके पर खूब घूमाफिरा. एक चीज वहां बहुत अच्छी लगी – हाईवे के किनारे जगह जगह “विश्राम-क्षेत्र” मिल जाते हैं जहां आपको पानी, लघु शंका, चाय, पेट्रोल आदि कि सुविधा मिल जाती है.
चित्र 1: आने जाने के लिये बेलगांव-पूणे राजमार्ग के अलग अलग हिस्से, बीच का विभाजक, नीचे के डंबरीकृत सहाई मार्ग, एवं पुल. मैं ने बेटे के साथ कई शाम इस पुल के पास बिताये. इस राजमार्ग पर सारे पुल सैकडों में नहीं बल्कि अधिक हीं होंगे. (चित्र विकीमेपिया)
सन 2005 के आसपास जब केरल में राष्ट्रीय हाईवे 47 का नवीनीकरण हुआ तब एकाध पेट्रोलपंप वालों ने एवं हाटेल वालों ने शौचालय की सुविधा उपलब्ध करवाई, लेकिन 100 किलोमीटर पर इस तरह के 2 या 3 स्थानों पर ही सुविधा है. लेकिन इस बार बेलगांव से पूणे जानेवाले राष्ट्रीय मार्ग पर सफर किया तो खुशी के मारे मन (वाकई में) पागल हो गया.
जमीन से 10 से 25 फुट ऊचाई पर स्थित इस राजमार्ग के बीच का हिस्सा घने पौधों से ढंका है. अत: विपरीत दिशा से आने वाले वाहन की रोशनी रात को आपकी आखों में नहीं पडती. सैकडों मील तक इन पौधों को हरा बानाये रखना आसान बात नहीं है.
चित्र 2: आसपास के गांव वालों को राजमार्ग के आवागमन को बाधित किये बिना एवं अपनी जिंदगी खतरे में डाले बिना आनेजाने के लिये हर जगह पुल बना दिये गये हैं. (चित्र विकीमेपिया)
दोनों तरफ दो दो लेन होने के कारण वाहन काफी सुविधा से चलते हैं और ओवरटेक करने में कोई परेशानी नहीं होती. सैकडों किलोमीटर लम्बे इस राजमार्ग के दोनों तरफ हर जगह इतनी ही लम्बाई के सहाई डंबरीकृत मार्ग हैं जिन पर राजमार्ग को बाधित किये बिना गावों का धीमा आवागमन चल सकता है. इतना ही नहीं, दोनों तरफ स्थित गांव या शहर के लोगों को हाईवे के ऊपर से गुजरना नहीं पडता बल्कि सैकडों पुल बना दिये गये हैं जिनके नीचे से वे इधर उधर जा सकते हैं.
चित्र 3: उपमार्ग से हाईवे पर पहुंचने एवं हाईवे से सहमार्ग पर निकलने के लिये वैज्ञानिक तरीके से बनाये गये निर्गम (चित्र विकीमेपिया)
हाईवे पर पहुंचने के लिये, एवं हाईवे से उतर कर नगरों में जाने के लिये इन पुलों के पास ही सहमार्ग बना दिये गये हैं जिनके द्वारा आप 10 से 25 फुट उचे राजमर्ग से बगल के सहाई मार्ग पर पहुंच सकते हैं. बायें सहाई मार्ग पर उतर कर पुल के नीचे होते हुए दांये जाने का प्रावधान है अत: दांये मुडने के लिये कभी किसी को विपरीत दिशा से राजमार्ग पर आते तेज का सामना नहीं करना पडता.
क्या यह हिन्दुस्तान है? जी हां महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा पर स्थित यह स्थान वाकई में हिन्दुस्तान है. लेकिन एक बात और:
चित्र 4: हाईवे के बगल में (जहां क्रास का निशान लगा है) सार्वजनिक शौच एवं पानी की सुविधा. इसके लिये सडक के किनारे काफी चौडी जगह बनाई गई है. (चित्र विकीमेपिया)
लगभग 2 से 5 किलोमीटर पर सार्वजनिक शौचालय बना दिये गये हैं जिनको (शहरी नलव्यवस्था से दूर स्थित होने के कारण) रोज टेंकरों में लाकर पानी से साफ किया जाता है और पानी भरा जाता है. इन शौचालयों का उपयोग करने वाले इनको कितना साफ रखते हैं इसका मुझे अनुमान नहीं है क्योंकि अभी भी कई लोगों की आदत है कि अपने घर में संडास होते हुए भी पडोसी के घर के सामने की नाली पर बैठ कर हगना अधिक पसंद करते हैं. लेकिन मेरा अनुमान है कि नही सुविधाओं के साथ साथ पुरानी आदतें छूटती जा रही हैं.
क्या यह हिन्दुस्तान में संभव है. आप खुद देख लीजीये. कल किस्सा कुर्सी का!! में मैं ने टेक्स देने पर जोर दिया था. आज देख लीजिये कि कम से कम एक जगह किस तरह इस पैसे का जनोपयोगी निवेश हो रहा है.
नोट: विकीमेपिया के गैर सामरिक चित्र पृथ्वी से 400 किलोमीटर उपर स्थित उपग्रहों द्वारा लिये जाते हैं.
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आपका ह आलेख पढकर तो लग रहा है हम भी अमेरिका बन रहए हैं और इच्छा हो रही है कि इस हाईवे पर खुद गाडी चलाते हुये आपके पास आया जाये.
सुन्दर जानकारी दी आपने. बहुत धन्यवाद.
रामराम.
बिलकुल सम्भव है हिन्दुस्तान में; आवश्यकता जनोन्मुख नियोजन और इच्छाशक्ति की है। रोचक जानकारी के लिये आभार।
सुन्दर जानकारी दी आपने. बहुत धन्यवाद.
संभव हो रहा है और भविष्य में बहुत सी संभावनायें हैं.
अहमदाबाद वडोदरा द्रूतगति मार्ग पर ऐसी सुविधाएं देखी है.
अरे, आपने जो भी सुविधाएँ बताई है वो सुविधाएँ मैं चेन्नई-बैंगलोर हाइवे में ४-५ साल पहले से देख रहा हूँ(जब से यहाँ हूँ).. शायद यह सुविधाएँ उससे भी पहले से इस रास्ते पर उपलब्ध है. 🙂
सुंदर जानकारी. एक नकारात्मक बात. यह जो कुछ हो रहा, सरकार के प्रत्यक्ष प्रयास से नही. हमारे द्वारा चुकता किए जाने वाले कर तो नेताओं के घर भरने में लग रहा है. यह जो हो रहा है वह निजी उपक्रम है जिसके उपयोग के लिए हर बार भारी भरकम टोल टॅक्स की व्यवस्था है. (रोड टॅक्स के अतिरिक्त).
बढ़िया जानकारी दी है आपने .आने वाला वक्त अच्छा दिख रहा है
इसीलिये अच्छी सड़कों को विकास की धमनियाँ कहा गया है, लेकिन फ़िलहाल हम मध्यप्रदेश वासियों के पल्ले इस प्रकार की सड़कें नहीं हैं, हम तो अभी उज्जैन से इन्दौर के 55 किमी का सफ़र 2 घण्टे में तय करते हैं… जबकि उज्जैन महाकाल की नगरी है और इन्दौर को मुम्बई क बच्चा(?) कहा जाता है… सो बाकी के शहरों की बात तो जाने ही दें…
सुंदर जानकारी दी आपने… निश्चित ही सम्भव सब कुछ है बस करने का जज्बा होना चाहिए और दृढ़ निश्चय…
@अभी भी कई लोगों की आदत है कि अपने घर में संडास होते हुए भी पडोसी के घर के सामने की नाली पर बैठ कर हगना अधिक पसंद करते हैं
क्या करेंगे..! राष्ट्रीय चरित्र में ही खोट है..
सम्भव तो यहाँ सब कुछ है, पर सिर्फ़ कागजों में.
जी गुरुदेव!
दिसिज द इण्डियॉ!
अब हिन्दुस्थान सॉप/सपरो वाला देश नही बल्की एक समृद्ध्/विकासील भारत बन गया है। महाराष्ट्रा मे अमुमन सभी हाईवे पर हॉटलो के सग सार्वजनिक सोचालय कि व्यवस्था है। मुम्बई पुणे एक्सप्रेस वे तो भारत भर मै एक मात्र रोड है जहॉ वहान ८०-१००-१२०-१४० कि स्पीड लाईने है। यहॉ आपको फोन/अस्पताल/सोचालय/रेटोरेन्ट/ एम्बुलेन्स/ पुरे रास्ते के लिये उपल्बध है।
मुम्बई मे तो कुल १२० से भी अधिक ब्रिज पिछले १० वर्षो मे बने, जिससे सिग्नल कि भेजामारी समझो खत्मसी हो गई है। २०११ तक मुम्बई मे सी लिक ब्रिज करिब ११ किलोमीटर मे बन कर तैयार हो जायेगा। आपको मुम्बई आने का न्योता भेज रहा हु । हमे अनुग्रहीत करे। ताकि मुम्बई का विकास आपके ब्लोग के माध्यम से हमारे चिठ्ठाबन्धु पढे। और विदेश मे बैठे समिरलालाजी को भी ज्ञात हो जाये कि ताज हॉटल जाने के लिये १०% टीप से काम नही चलेगा।
mujhe to wishwaas nahee ho rahaa sir