मैं ने अपने आलेख क्या ऐसे लोग अभी भी हैं?? , क्या यह हिन्दुस्तान में संभव है? , किस्सा कुर्सी का!! में कई सकारात्मक बातें बताईं थीं. कारण यह है कि हम जिस दिशा में सोचेंगे, जीवन उसी दिशा में चल पडेगा. सकारात्मक सोच जीवननिर्माण को प्रोत्साहित करती है लेकिन नकारात्मक सोच आत्मविनाश/जीवनविनाश को प्रोत्साहित करती है. यह हम सब की जिम्मेदारी है कि हम हर चीज के सकारात्मक पहलू को देखें.
उदाहरण के लिये, मेरे बेटे डा. आनंद ने एक घटना मुझे बताई. उसके अस्पताल में डायबटीज का एक मरीज आया जो अंधा था. उसके पैरों में कीडे पड गये थे. कुल मिला कर 150 कीडे उसने निकाले.
मरीज शुरू से कहता रहा कि वह इतना गरीब है कि वह एक कौडी भी नहीं दे सकता है, अत: उसे शत प्रतिशत मुफ्त इलाज प्रदान किया गया. जिस दिन वह डिस्चार्ज हुआ, तब अचानक मोबाईल की घंटी बजी. जो मरीज कह रहा था कि उसके पास फूटी कौडी भी नहीं है उसने जेब से मोबाईल निकाली! (अंधा होने के कारण उसे नहीं मालूम था कि डाक्टर पास खडे हैं).
लेकिन ताज्जुब की बात वह मोबाईल नहीं बल्कि उसे जेब से निकालने के पहले उसे नोटों का जो बडा बंडल निकालना पडा वह थी! एक मरीज जिसके पास “फूटी कौडी” भी नहीं थी, उसकी जेब दर असल नोटों के बंडल से भरी हुई थी. जब इस तरह के अनुभव होते हैं तो एकदम लोगों पर से विश्वास उठ जाता है. एक डाक्टर के जीवन में इस तरह की कई घटनायें घटती हैं एवं मुझे विश्वास है कि चिट्ठाजगत में सक्रिय सारे डाक्टर इस बात की पुष्टि कर सकते हैं.
सवाल है कि जब हम इस तरह की घटनायें देखते हैं तो क्या सोचें क्या करें. मेरे पाठकों में कम से कम कुछ लोगों ने बालभारती में “हार की जीत” नामक कहानी पढी होगी. मेरा उत्तर कुछ वैसा ही होगा!
सडक पर रोज दुर्घटनायें होती हैं, लेकिन लोग सडक चलना बंद नहीं करते. गाडियां टकराती हैं, रेल दुर्घटनाओं में हजारों मारे जाते हैं, लेकिन कोई भी इस कारण इनसे दूर नहीं रहता. कई डाक्टर मरीज का इलाज करने के बदले उसका गला काटते हैं, लेकिन इस कारण लोग डाक्टरों के पास जाना बंद नहीं करते. कारण यह है कि बुरी बातें, बुरी घटनायें, बुरे लोग, हमेशा अपवाद होते हैं. ये समाज में हमेशा अल्पसंख्यक होते हैं. “बुरे अपवाद” के कारण हमें कभी भी “अच्छे सामान्य” को नहीं भुलाना चाहिये.
यदि किसी बुरे व्यक्ति या बुरे अनुभव से आप को चार होना पडता है तो यह न भूलें कि यह सिर्फ एक अपवाद है. समाज में हर कोई बुरा या धोखेबाज नहीं होता है. यदि इस सकारात्मक सोच से आप समाज को देखेंगे तो आप को ही फायदा होगा.
यदि आपको टिप्पणी पट न दिखे तो आलेख के शीर्षक पर क्लिक करें, लेख के नीचे टिप्पणी-पट दिख जायगा!!
Article Bank | Net Income | About India । Indian Coins | Physics Made Simple | India
टेस्टिंग
part1: याद आई वो कथा जिसमें बुढ़िया अंधे से कहती है कि चलो, तुमने यह स्वांग रच कर मेरे रुपये तो मार लिए ..(क्र)
पार्ट२:यह घटना मैं किसी को नहीं बताऊँगी वरना एक अकेले तुम्हारी करनी से दुनिया का विश्वास अंधों से उठ जायेगा.(क्र)
पार्ट३: वाकई, ऐसी घटनाओं को अपवाद मान भूल जाना चाहिये.(समाप्त)
अच्छे और बुरे के मेल से ही यह दुनिया सजी है।वैसे आज कल के हालातो के अनुसार आप ने जो पहले घटना बताई थी वह अपवाद स्वरूप थी। यह बात तो आम देखनें को मिलती है।
वाकई अफ़सोस होता है,ऐसी घटनाओं के कारण ही कई बार लोग ज़रुरतमंदो की मदद से पीछे हट जाते हैं।
होता है;ऐसा भी होता है।:(
सडक पर रोज दुर्घटनायें होती हैं, लेकिन लोग सडक चलना बंद नहीं करते. गाडियां टकराती हैं, रेल दुर्घटनाओं में हजारों मारे जाते हैं, लेकिन कोई भी इस कारण इनसे दूर नहीं रहता. कई डाक्टर मरीज का इलाज करने के बदले उसका गला काटते हैं, लेकिन इस कारण लोग डाक्टरों के पास जाना बंद नहीं करते. कारण यह है कि बुरी बातें, बुरी घटनायें, बुरे लोग, हमेशा अपवाद होते हैं. ये समाज में हमेशा अल्पसंख्यक होते हैं. “बुरे अपवाद” के कारण हमें कभी भी “अच्छे सामान्य” को नहीं भुलाना चाहिये.
आपका उप्रोक्त वाक्य बिल्कुल गीतादर्शन है. बहुत आभार आपका
इस जरासी घटना मे इतना बडा सत्य और सीख ढूंढ लेने के लिये. बहुत ही प्रेरणादायक लगा आजका यह लेख.
दूसरे लगता है टिपणी करने का कोई नया फ़ार्मुला ईजाद हो गया है? किसी मार्केटिम्ग कम्पनी से सर्वे करवाया गया है क्या? 🙂
रामराम.
समीर जी आप की प्रविष्टियों पर बिलकुल नायाब तरीके से टिप्पणी करते हैं. कोई डील है क्या?
“बुरे अपवाद” के कारण हमें कभी भी “अच्छे सामान्य” को नहीं भुलाना चाहिये.”
बहुत ही प्रभावित हूं, इस सूक्ति से.
समीर जी की टिप्पणी टुकड़ों में आ रही है जिससे टिप्पणियों की संख्या में वृद्धि दिखायी जा रही है। इसे क्या माना जाय?
अ- बुरा अपवाद
ब-अच्छा सामान्य
स- बुरा सामान्य
द- अच्छा अपवाद
मेरा उत्तर है द-अच्छा अपवाद। और आपका?
jarootmand ki sayahata karna hamarinaitik jimmedark haipar khabhi hume bhi aise log bewkuph banate hai to dukh hata hai