जुगनू: किसी ने देखा है क्या?

Fireflies मेरे बचपन में हमारे शहर ग्वालियर की आबादी आज की आबादी की दसवीं भी नहीं थी. पेडपौधों की बहुतायत थी. शहर के बीचोंबीच हजारों एकड का राजमहल था जो घने पेडों और जंगलों से भरा हुआ था.

शाम होते ही दाना चुगने के लिये महल से मोर आसपास के घरों में पहुंच जाते थे. रात को महल के आसापास काफी जुगनू दिखते थे जो कभी कभार भटक कर हमारे घरों में आ जाते थे. बचपन में हम उनको पकड कर अपनी मच्छरदानी में डाल देते थे जहां रात भर उनकी चमक देखते रहते थे. बचपन की इस तरह की बहुत सारी बातें हैं जो मेरे जमाने के लोगों के मन की मूल्यवान यादें हैं.

अब महल की हजारो एकड जमीन बिक चुकी है, पेड कट चुके हैं, मोर और जुगनू लुप्त हो चुके हैं. विकास की आंधी को रोका नहीं जा सकता, न ही रोकने की कोशिश होनी चाहिये. विकास होते रहना चाहिये, लेकिन हमारी कोशिश यह होनी चाहिये कि विकास के कारण हमारे बच्चों से जो छीन लिया जाता है वह उनको किसी और रूप में वापस मिल जाये.

यदि आपके शहर में चिडियाघर है, पार्क है, या इस तरह के घर के बाहर मनोरंजन या ज्ञान के स्थान उपलब्ध हों तो महीने में कम से कम एक बार छुट्टी ले अपने बीबीबच्चों को लेकर पूरा दिन ऐसे स्थानों में जरूर बितायें. आप कहेंगे कि यह एक सैद्धांतिक सुझाव है जिस पर अमल करना मुश्किल है. हां वाकई में अमल करना मुश्किल है, लेकिन सुझाव किसी भी हालत में सैद्धांतिक नहीं है.

जब आप का बेटा 30 साल का हो जायगा, या बिटिया शादी के बाद आप से दूर कहीं जा कर बस जायगी, तब आपका मन एक दम से आप को कचोटने लगेगा. तब लगेगा कि यार दोस्तों के साथ पार्टी में, गैर-रिश्तेदारों के शादीब्याह में, और इस तरह के अनावश्यक सामाजिक बातों के लिये आप ने जो समय और धन निवेश किया उस कारण आप जीवन के जरूरी बातों के लिये ये निवेश नहीं कर पाये. लेकिन तब तक आपका बेटा, आपकी बेटी, आप के लिये पराया हो चुका होगा.

समय उन्हें आपके हाथ से छीन ले उसके बदले आप अनावश्यक बातों से अपने बहुमूल्य समय को छीन कर अपने बच्चों के लिये उनका निवेश करें.

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Author: Super_Admin

11 thoughts on “जुगनू: किसी ने देखा है क्या?

  1. जो छीन लिया जाता है वह उनको किसी और रूप में वापस मिल जाये-मिल तो गया जुगनु की जगह ट्यूब लाईट-बिजली बोर्ड की मेहरबानी से जुगनु की तरह ही ठहर ठहर के जलती है. 🙂

  2. वैसे बचपन में जुगनु हमने भी बहत पकड़े हैं. ढ़क्कन में छेद करके रात भर शीशी मे बंद. फिर सुबह डांट खा कर छोड़ देते थे. 🙂

  3. प्रेरित करती प्रविष्टि. अंधी विकास की दौड़ में पिछड़ गयी हैं हमारी संवेदनायें, फ़िर क्या करेंगे चिड़ियाघर, पार्क, सार्वजनिक स्थान. जब हमने मूल ही खो दिया फ़िर…

  4. बड़ी बातें और मैं अभी उम्र में कम,सो इसलिए यह पड़ाव अभी तक नहीं आये, लेकिन जुगनू तो मैंने भी पकड़े हैं!

  5. जो बाते समीर जी बता रहे हैं वो हमने भी खूब की हैं.

    एक बार बहुत सारे जुगनू पकड कर एक शीशी, जो कि केरोशीन तेल की थी, अन्जाने मे उसमे भर दिये, जब हम नानी के यहां थे.

    नानी ने जीवन मे पहली बार एक थप्पड लगाया जो आज तक याद है, बस नानी ने उस दिन समझाया था , उसके बाद किसी जीव को हाथ भी नही लगाया.

    नानी यूं तो ग्रामीण महिला थी..उन्होंने कहा था..ये खूबसूरत चीजें दूर से देखने में ही अच्छी होती हैं. इनके ज्यादा पास जाओ तो उस चीज को और तुमको खुद को भी नुक्सान पहुंच सकता है.

    पता नही उस वक्त तो नानी ने हमारे रुदन को एक गुड की डल्ली देकर शांत कर दिया. पर जीवन मे बाद मे यह शिक्षा क्युंकि थप्पड के साथ मिली थी सो अनायास ही सुन्दर चीज को देख कर याद आती रही.यहां तक की सुंदर लडकियों के मामले मे भी यह फ़िट बैठी. शायद इससे बेहतर शिक्षा मुझे जीवन में और कहीं नही मिली.

    रामराम.

  6. समय उन्हें आपके हाथ से छीन ले उसके बदले आप अनावश्यक बातों से अपने बहुमूल्य समय को छीन कर अपने बच्चों के लिये उनका निवेश करें

    ” सत्य और अनमोल शब्द….जीवन की अंधी दौड़ मे समय यु ही भागता निकल जाता और हम पीछे रह जाते हैं….आपके ये शब्द पड़कर लग रहा है …की समय शायद काफी आगे निकल चुका है….फ़िर भी देर नही हुई…” जुगनू की बात ने बचपन की याद तजा कर दी जब अँधेरा होते ही इनके पीछे भागा करते थे…..”

    Regards

  7. बहुत ही प्रेरक आलेख। बचपन की कितनी ही यादें ताज़ा हो गईं। आंगन में रोटी के टुकड़े और बाजरा डाल कर मोर और गौरय्या पकड़ा करते थे और कुछ देर खेल कर छोड़ दिया करते थे। गौरय्या तो अब दिखती ही नहीं।

  8. सही लिखा आपने बचपन की सारी शरारते और यादों को खोजने के लिये आज भी भटकते रहते है पर अफ़सोस अब सब कुछ शायद वापस नही आएगा।

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