पब कल्चर (मतलब ताडीखाने में अशिक्षित लोगों के साथ बैठ कर देशी ठर्रा पीने के बदले परिष्कृत होटल में बैठ कर भारत-में-निर्मित “विदेशी” दारू पीने का संस्कार) किसी भी भारतीय समाज के लिये उचित नहीं है. यह सिर्फ समाज को बर्बादी की दिशा में ले जायगा. लेकिन शराबी (चाहे वह नर हो या मादा, उसके) के साथ जबर्दस्ती मारपीट भी उचित नहीं है क्योंकि यह भी समाज को अराजकता की ओर ले जायगा.
समस्या की जड है सरकार जो पैसे के लिये जम कर विदेशी ताडीखानों को चलाने का “लाईसेंस” दे रही है कि भईया तुम तो जम कर भारत-में-निर्मित “विदेशी” दारू पियो और पिलाओ और टेक्स हमारे खाते में जमा करते जाओ. अत: जब तक समस्या की जड नहीं काट दी जाती तब तक कुछ नहीं होने वाला. कल को मारपीट के बदले यदि यही लोग “विदेशी” शराबखानों के सामने “शांतिपूर्ण प्रदर्शन” करने लगें तो कोई उनका बाल भी बांका नहीं कर सकता, लेकिन इन पबों (विदेशी शराबखानों) में पीते पिलाते “परिष्कृत” ताडीबाजों की बडी किरकिरी हो जायेगी.
इस बीच कुछ लोगों ने अभियान चला दिया है कि तीव्रवादियों को गुलाबी चड्डियां भेजी जायें, वह भी चड्डी का मर्दाना नहीं नारियाना वेराईटी. सवाल यह है कि जिस देश में चोलीजांघिये का सरे आम प्रदर्शन करना भद्र लोगों के लिये अच्छा नहीं समझा जाता वहां ये लोग नवजवानों को क्या सिखा रहे हैं.
गुलाबी (या किसी और रंग की) चड्डियां भेजने से समाज का कोई फायदा नहीं होगा, न ही स्त्रियों को सामूहिक तौर पर को शराब पीने की आजादी मिल जायेगी, लेकिन मूर्खों द्वारा इस अभियान के लिये लाखों नारियाना अधोवस्त्र खरीदे जाने से चड्डी के निर्माता जरूर तर जायेंगे. क्या मालूम कहीं यह चड्डी-आंदोलन उन में से ही किसी की करतूत तो नहीं है?
समस्या चाहे कोई भी हो, लोग उसकी जड में जाये बिना उसका हल निकालना चाहते हैं. मजे कि बात है कि देश में ऐसे बेवकूफों की कोई कमी नहीं है जो यह समझते हैं कि चार चड्डी में यह समस्या हल हो जायेगी. वे हिन्दुस्तान के इतिहास से भी अपरिचित हैं.
हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि शराबखानों एवं ताडीखानों का कडा विरोध, जबर्दस्ती उनके शराब के घडों को उलट देना आदि, आजादी की लडाई का हिस्सा था. अत: पबों का विरोध भी आम भारतीय जनमानस के चिंतन का हिस्सा रहेगा. लेकिन हां, यदि हम चाहते हैं कि हमारी लडकियां सुरक्षित रहें तो निम्न कार्य करने होंगे
- अपने बच्चों को पबों (परिष्कृत ताडीखानों) में जाने से मना करना होगा
- “सामाजिक” शराबियों का सामजिक बहिष्कार करना होगा
- शराब बंदी के लिये सरकार पर दबाव डालना होगा
- हर तरह के सामाजिक हिंसा के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करनी होगी
चड्डी भेजते रहें, उसका कुतुबमीनार से ऊंचा ढेर लगा दें, फायदा सिर्फ अधोवस्त्र निर्माताओं को मिलेगा, समाज को नहीं. (Picture by glennharper)
पुनश्च: इस आलेख को छापने के बाद सुरेश चिप्लूनकर का निम्न लेख मेरी नजर में आया: “गुलाबी चड्डी” अभियान से ये महिला पत्रकार(?) क्या साबित करना चाहती है? प्रबुद्ध पाठकगण इसे जरूर पढें क्योंकि यह मेरे इस विश्लेषण की तुलना में काफी अधिक गहराई से विषय को प्रस्तुत करता है.
सच कहूं तो पहली बार आपके लिखे के एक एक अक्षर से संतुष्ट व सहमत हूँ !! कुछ अलग कहने और कुछ जोड़ने कि गुंजाईश ही नहीं बची है !!
जय हो शास्त्री जी!!!
पर अफ़सोस यही होगा कि यह उन लोगों के पल्ले नहीं पड़ेगा !!!
आपने बहुत आवश्यक मुदा उठाया है , मै समर्थक हु आपके विचारो का। आपने यह मुदा उठाकर लोगो कि सरकारो कि अक्क्ल ठकाने लाने का काम किया है। बधाई है आपको।
सापेक्षता ही समाज बनाता है। समाज और समज मे यही तो भेद है।पशुओ का समुह समज कहलाता है।और समाज उन्ह मनुष्यो का समुह होता है इसमे सापेक्षता होती है। समाज हो और सापेक्षाता न हो, वह समाज नही या वहॉ समाज नही।अस्थिसघात मात्र है, समाज का आधार है परस्परावलम्बन, परस्पर सहयोग। समाज मे व्यवस्थाका जन्म होता है। व्यवस्था भली-भॉति चले इसलिये शासन आता है। सापेक्षता, व्यवस्था,और शासन-ये तीनो जहॉ हो , वहॉ दस आदमी मिलने पर भी समाज बन जाता है, अन्यथा लाख आदमी होने पर भी समाज नही बनता।
यहॉ यह तीनो तन्त्र फैल है। लोगो को समाज का डर नही, शासन किसी कि सुनता नही, कुछके छुटभइया चड्डि चोर अपनी चड्डि तो पहनते नही लोगो कि उतारने मे लगे है।
बिल्कुल सही लिखा आपने.
रामराम.
पहले तो शराब खाने, कोठे शहर के एक ओर होते थे,और राजा महाराजाओ के होते थे। अब तो हमारे शासको ने नगर -महानगरो मे गली नुक्कड सभी जगह खुलवा दिये है। नगर- नगर, शहर-शहर पब, दारुके अडे, खुलवाकर शासन कोनसी व्यवस्था कर रही है ? रही सही कसर घरो मे लगे दुरदर्शन पुरे कर रहे है। मा बाप के सामने बैठ वलगर प्रोगाम्स का बच्चे लुफ्त उठा रहे है। बच्चो कि शर्म हया ही खत्म हो गई है। आजादी के विगत साठ वर्षो मे जितने शिशुओ ने जन्म लिया है उन्हे तो वेद, पुराण,गीता, उपनिषद, राष्ट्रभाषा, धर्म,भारत, भारतिय, भारतियता, का वास्तविक स्वरुप ही मालुम नही है. तभी तो वे लार्ड वायसराय कि भाषा धर्म के कलेन्डर शिक्षा, वेशभुषा, मासाहार,मधपान, चुम्बन, डॉन्स,को ही भारतीय सस्कृति मानते है? पता नही हमारी अस्मिता को, हमारे बच्चो को , हमारी लडकियो को, कोन बचा पायेगा। गुलाबी चड्डियो के ठेकेदार ?
जी हाँ ऐसे प्रतिक्रियात्मक कार्यों से माहौल खराब ही होगा ! यह आवेश में लिया गया कदम है इसका अनुमोदन नहीं किया जा सकता !
“पब कल्चर” का एक दूसरा पहलू भी है जिस पर ध्यान देना अधिक जरूरी है। इस संस्कृति के अधिकांश पैरोकार हराम की कमाई को लुटाने के लिये पब जाते हैं। इससे समाज के एक वर्ग में कुंठा जन्म लेती है और वहीं समाज का एक नकलची वर्ग इसकी भोंड़ी नकल करने पर उतारू हो जाता है। दोनो ही चीजें घातक हैं।
व्यक्तिवाद के नाम पर इस अनर्थ कबढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिये। जो मंत्री आदि इसका समर्थन कर रहे हैं वे बहुत गलत कर रहे हैं।
चोलीजांघिये का सरे आम प्रदर्शन करना भद्र लोगों के लिये अच्छा नहीं समझा जाता वहां ये लोग नवजवानों को क्या सिखा रहे हैं.
अरे हमे तो बहुत से भद्र जानो को सड़क के किनारे देखा हैं बिना परवाह किये की की कौन देख रहा हैं .
और ये नौजवान ही नहीं ७० साल के भी होते हैं . किस ज़माने का ज़िक्र हैं और किस भद्रता की बात हैं .
प्रेशर होता तो सब ठीक लगता हैं . पिंक समुदाय के उप्पर भी प्रेशर हैं
@rachna
तो क्या आपका मतलब है कि
1. कुछ लोग संस्कारहीन है, अत: हम सब को संस्कार त्याग देना चाहिये?
2. परिष्कृत दारूखानों की संस्कृति को प्रोत्साहन दिया जाये?
2. परिष्कृत दारूखानों की संस्कृति को प्रोत्साहन दिया जाये?
that you have already clarified and i stand by that clarification that dont give licence
for rest i am still repeating as my previous comment was posted half way thru { appology}
अरे हमने तो बहुत से भद्र जानो को सड़क के किनारे देखा हैं बिना परवाह किये की की कौन देख रहा हैं .
और ये नौजवान ही नहीं ७० साल के भी होते हैं . किस ज़माने का ज़िक्र हैं और किस भद्रता की बात हैं .
प्रेशर होता तो सब ठीक लगता हैं . पिंक समुदाय के ऊपर भी प्रेशर हैं
हमे आप को ना पसंद आए तो क्या . कही हम आँख बंद करके , नाक पर रुमाल रख कर निकलते हैं कहीं आप निकल जाए . बदलाव आ रहा हैं चेत जाए वो जो अपने को पेडस्टल पर बता मानते हैं क्युकी अब लड़कियां फोल्लो कर रही हैं वही जो देखती रही हैं .
पता नही किस ओर जा रहा है देश।विरोध करने के लिए चडडी ही मिली।और फ़िर विरोध तो जगह-जगह खुल रहे शराबखानो का होना चाहिए।आपकी बातों से सहमत हूं।
@Rachna
समाज में कुछ लोग अपरिष्कृत व्यवहार कर रहे हैं तो उसका मतलब यह नहीं है कि समाज की सीमायें, वर्जनायें, ही तोड दी जायें.
यदि लडकियां वह कर रही हैं जो देखती हैं, तो हम को अपना जीवन बदलना पडेगा. यही आपका कहना है, यही हम सबका कहना है.
एक ओर तो सरकार टैक्स और शराबखानों के माध्यम से पैसे वसूल रही है और दूसरी ओर नेता मोटे-ताज़े हो रहे हैं सरकारी दामाद बन कर! कुछ वर्ष पूर्व आंध्र की महिलाओं ने ऐसा जोरदार प्रदर्शन किया कि सरकार को वहां के शराबखाने वंद करने पडे़। यदि कुछ ठोस करना हो तो सड़क पर उतरना पडे़गा। क्या हमारी महिलाएं ये ‘च्ड्डी आंदोलन’ छोड कर सरकार से टक्कर लेने के लिए तैयार हैं?
क्या हमारी महिलाएं ये ‘च्ड्डी आंदोलन’ छोड कर सरकार से टक्कर लेने के लिए तैयार हैं?
ram sena sae fursat paa lae phir desh ki mahila kuch paayeegee naa pehale sadak par peetee rahee haen ab peetagee tyaar rahen cmpershad ji
सही कहा आपने समस्या की जड़ मैं जाने की बजाय , अपनी बात के समर्थन और दूसरों की बात के विरोध हेतु इस तरह के हाश्यास्पद और बेहूदा कदम लोगों की अतार्किक और अगम्भीरता को प्रर्दशित करती है . क्या यह व्यक्ति जो कर रहा है उसे किसी भी तरह से सही कहना का जूनून है , चाहे वह ग़लत ही क्यों न हो . एक अच्छा आलेख .
कुछ समय बीत जाए फ़िर देखते हैं, इन नारीवादियों ने अपने अधोवस्त्र पुरुषों को देकर क्या पा लिया !! 🙂
शास्त्री जी, एक बात मैंने नोटिस की है कि ये खोखली नारीवादी औरतें बन्दर जाति की भाँती नक़ल करना जानती हैं. अगर कोई पुरूष सड़क किनारे सुसु करे तो ये भी करेंगी.
ये उस एक आदमी का अनुसरण करेंगी पर लाखों आदमी जो अपने घर में करते हैं उनका क्या !!
उनका अनुसरण नहीं करना चाहेंगी !!
लाखों अच्छे आदमियों का अनुसरण नहीं करना चाहेंगी !!
घटिया औरतें घटिया पुरुषों का ही तो सहारा लेंगी.
कमाल है मैं अपने बाथरूम में करता हूँ तो मेरी कोई वैल्यू ही नहीं है.
मेरी माँ ने सिखाया है कि हमेशा अच्छी बातों का अनुसरण करना पर लगता है कि ये लोग बिना माँ वालियां हैं जिन्हें किसी ने कोई संस्कार नहीं दिए कि बेटा हमेशा अच्छी बातें सीखते हैं और अच्छी बातों का अनुसरण करते हैं.
इन लोगों को जीने का सलीका तो आता नहीं है हर बात में पुरुषों से बराबरी करेंगी. करो मेरी बराबरी करो मैं तो प्रेशर रोक कर घर आकर करता हूँ.
संयोग से आपकी पिछली दोनो पोस्टें मेरे लेख को उद्धृत करके हुई, इसके लिये मैं आपका आभारी हूँ… छिछोरेपन का जो खेल इन अंग्रेजी मैडमों ने शुरु किया है उसके जवाब में जैसी की अपेक्षा थी एक और जवाबी ब्लॉग आया है http://thepinkcondomcampaign.com ये भी उतना ही छिछोरा अभियान है, लेकिन इनका कहना है कि यह सिर्फ़ जवाबी कार्रवाई है, पहल तो उन्होंने ही की थी…
आप बिलकुल सही हैं शास्त्री जी, पर आजकल सच कहना गुनाह है. पुनश्च,इन मामलों में अपने ही प्रति जिम्मेदार हो सक्ते हैअ, सबको ऐसा करने के लिए विवश नहीं कर सक्ते. जैसे ही ऐसा कुछ कहेंगे आप भी तालिबानी घोषित कर दिए जाएंगे. और हाँ, राम सेना ने जो किया उसे भी सही नहीं ठहराया जा सकता. आख़िर तालिबान में और उनमें फ़र्क़ क्या रह गया, सिर्फ़ जगह और अस्त्र का ही न! बाक़ी तरीक़ा तो एक ही है, दोनोंका.
@E-Guru Rajeev
आजकल तुम्हारी लेखनी काफी सशक्त हो रही है. लिखते रहो. हर सामाजिक बुराई का विरोध करना जरूरी है.
@सुरेश चिपलूनकर
सुरेश, मैं ने वह कंडोम वाला http://www.thepinkcondomcampaign.com/ चिट्ठा देख लिया. वैसा ही हुआ जैसा मैं ने कहा था. अब शायद कंडोम के जवाब में चोलियां भेजी जायेंगी.
@Isht Deo Sankrityaayan
दोनों में से किसी भी पक्ष ने सही नहीं किया है !!
The correct URL:
http://thepinkcondomcampaign.blogspot.com/
शास्त्री जी,बहुत अच्छा लेख लिखा, हमे अपने बच्चो मे यह संस्कार डालने चाहिये लेकिन उस से पहले हमे भी अच्छा इन्सांन बनाना हो गया, वरना कल पछताना पडेगा, मेरे बच्चे युरोप मे पेदा हुये है मुझे भी यहा करीब ३० साल हो गये , मै कभी कभी एक आध बीयर ले लेता हू, लेकिन बहुत कम लेकिन आज तक मेरी बीबी ने या बच्चो ने कभी पी नही,
यह तुच्छ लोगो का काम है, दुसरो की नकल करना एक समझ दार आदमी या ओरत कभी भी किसे की नकल नही करेगी, नकल करना आजादी नही, ओर असल आजादी क्या है यह इन मुर्खो को नही पता, पता तब हो जब इन्हे किसी ने बताया हो इन के बताने वाले खुद नही जानते होगे, उन्हे रिशवत ओर घटोलो से ही फ़ुरसत कहा होगी.
धन्यवाद
न्यूटन के ‘गति नियमों’ का तीसरा नियम है – ‘प्रत्येक क्रिया की समान और विपरीत प्रतिक्रिया होती है।’
एक स्थिति और है – निषेध सदैव आकर्षित करते हैं।
वास्तविकता इन दो बातों के बीच ही कहीं न कही है।
शास्त्रीजी,
आपकी पुरानी दो प्रविष्टियों का उदाहरण देकर अपनी बात समझाना चाहूँगा। आपने “सडकछाप कुत्ते की जनानी कौन” और “सुपरमार्केट की मेम” प्रविष्टियों में एक महिला से वार्तालाप में जिन वाक्यांशों का प्रयोग किया वो इस प्रकार थे:
I know who you are. Only a B**** will enter among so many dogs. एवं
सच है देवी, सच है. शायद इसी कारण बहुत सी अंग्रेजीदां कुतियें खरीददारी के लिये यहां पधारती हैं।
मैने इन दोनों ही प्रविष्टियों पर टिप्पणी नहीं की क्योंकि मेरी समझ में किसी भी स्थिति में ऐसी भाषा का प्रयोग उचित नहीं है। अगर मूल किस्से से अलग करके आपके वाक्यों को देखें तो ये नितान्त अनुचित हैं लेकिन आपने जिस सन्दर्भ में इनका प्रयोग किया उसके चलते लगभग सभी टिप्पणीकर्ताओं ने इस पर सहमति जतायी न कि आपको कटघरे में खडा किया।
आपने ये इस सन्दर्भ में कहा जब उन दोनों महिलाओं ने आपसे कोई व्यक्तिगत बात नहीं कि और न ही आपको किसी सन्दर्भ में गाली सुनायी। लेकिन चूँकि इन महिलाओं का व्यवहार अन्य लोगों के प्रति अशोभनीय था, इसके चलते आपने वो शब्द बोले।
अब राम सेना वालों का व्यवहार केवल अशोभनीय ही नहीं, अनैतिक, अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक भी था। इसके चलते मेरी समझ में लाल चड्ढी भेजना किसी महिला को B**** कहने से बडा अपराध नहीं हो जाता।
फ़ल की चिन्ता न करें, आपके उन दोनो संवादों से अगर आपको लगता है कि कुछ फ़ल निकलेगा और उस महिला का हृदय परिवर्तन होगा तो आपकी सोच गलत है। परन्तु आपने भी अपने स्तर से विरोध किया। फ़िर लाल चड्ढी के मामले में Holier than thou का इसरार क्यों?
मैं व्यवहार और चिन्तन में हमेशा Abstract विचार को Fairplay जैसी भावना से अधिक महत्व देता हूँ। इस मुद्दे लाल चड्ढी के निर्माताओं को होने वाले फ़ायदे का तर्क देना बहस को मूल मुद्दे से भटकाना जैसा है। अगर वो खादी की लाल चड्ढियाँ भेजें तो क्या आप वैचारिक रूप से उनके साथ खडे हो जायेगें? असली मुद्दा सोच का है।
अगर किसी अन्य का ब्लाग होता तो मैं इस टिप्पणी को कभी नहीं लिखता। लेकिन आप वैचारिक रूप से काफ़ी सजग रहते हैं एवं आपके मेरे प्रति अनुराग के चलते ऐसा लिखने की ढॄष्टता कर रहा हूँ। आशा है आप अन्यथा नहीं लेंगे।
@नीरज रोहिल्ला
प्रिय नीरज,
मेरे आलेखों को अलग से देखा जाये तो तुम ने मेरी जो आलोचना
की है वह एक दम सही है. लेकिन इस लेख की आखिरी कडी
(जो इसके बाद छपी है) उसे देख लोगे तो समझ में आ जायगा
कि मैं ने जो कुछ कहा है उसके पीछे एक गंभीर कारण है.
Consortium of Pub Going, Loose-living Women
है इन सब के पीछे, न कि हिन्दुस्तान से स्नेह करने वाली
स्त्रियां. यदि देशप्रेमी लोगों ने देशप्रेम के कारण कुछ किया
होता तो मैं जरूर अनुमोदन करता.
अखिरी आलेख जरा देख लेना.
आलोचना के लिये आभार. आलोचना हमेशा मुझे चिंतन के
लिये प्रेरित करती है.
सस्नेह — शास्त्री