दुनियां में हर कोई हिटलर के नाम से घृणा करता है. बच्चा बच्चा इस बात को जानता है कि वह कितना भयानक एवं नीच जल्लाद था. उस ने न केवल लाखों लोगों की हत्या करवा दी थी, बल्कि उन मृतक लोगों के शवों को इज्जत देने के बदले जम कर उनका व्यापारिक दोहन भी किया था.
एक बार में सौ से पांच सौ लोगों को जहरीली गैसे से मार डालने के बाद हिटलर का नाई उन शवों के बाल उतार लेता था जो विग बनाने के लिये सारी दुनियां मे बेच दिये जाते थे. दांतों के डाक्टर हर शव का मूंह खोलकर सोने या चादी से भरे दांत उखड लेते थे. इस तरह लगभग दो टन सोनाचांदी हिटलर के खजाने में जमा हुआ था.
इसके बाद शरीर को भट्टियों में गरम करके चर्बी निकाल कर दुनियां भर के साबून निर्माताओं के बेच दी जाती थी. बचे खुचे शरीर को जला कर मिली राख को खाद के रूप में बेच दिया जाता था. यह था हिटलर.
लेकिन ताज्जुब की बात यह है कि आज जिस हिटलर को हम इन कार्यों के लिये घिन से देखते हैं, उसी आदमी को उसी कार्य के लिये उसकी प्रजा “हीरो” मानती थी. उसका आदर करती थी, उसको पूजती थी. ऐसा कैसे हुआ — मनोनियंत्रण के तरीकों के सफल उपयोग द्वारा!!
मनोनियंत्रण की चर्चा युनानी दार्शनिकों के समय चालू हुई थी लेकिन इसे वैज्ञानिक अनुसंधान का विषय बनाया गया 1930 के आसपास. मनोविज्ञान के “डेप्थ-टारगेटिंग” या “गहन-पैठ” नामक एक नये अध्ययन द्वारा लोगों ने पहली बार यह पता लगाया कि किस तरह से लोगों के जाने बिना ही कई प्रकार की सोच को उनके मनों में “सरका” दिया जा सकता है. इस तकनीक द्वारा लगभग किसी भी व्यक्ति से वह कार्य करवाया जा सकता है जिसे वह सोच-समझ कर सामान्य बुद्धि से कभी भी नहीं करेगा.
उदाहरण के लिये, आप किसी एक नौजवान या युवती को किसी नयेनवेले टूरिस्ट बस के सामने खडा करके उसके हाथ में दोचार ईंटें दे दीजिये और उस बस के कांच पर फेंकने को बोलिये. वह नहीं फेंकेगा. ईंट छोडिये, एक कंकड तक नहीं फेंकेगा. लेकिन उसी नवजवान या युवती को “शोषण” पर जरा एक लेक्चर पिला दीजिये, उसका आक्रोश जगा दीजिये, पांच छ: सौ पत्थरों से लैस जवान और आक्रोश से भरे लोगों की भीड में जोड दीजिये, और फिर देखिये तमाशा. वह जम कर पथराव करेगा और दस मिनिट में करोडों की राष्ट्रीय संपत्ति को स्वाहा कर देगा. उसके मन या विवेक में रत्ती भर भी ग्लानि नहीं होगी.
कैसे हुआ यह?? उत्तर है मनोवैज्ञानिक तरीके से उसके मन में किया गया “गहन-पैठ” जिस ने कुछ क्षणों के लिये उसकी बुद्धि को कुंद कर दिया और उसे भडकी हुई भावनाओं के नियंत्रण में पहुंचा दिया.
हिटलर के पास एक अतिविशाल प्रचार-तंत्र था जिसका काम ही यह था कि लोगों की युक्तिपूर्ण सोच को मिटा कर उनकी भावनाओं को इस तरह भडका दिया जाये कि वे हर तरह के निंदनीय, नीच, घृणित, एवं जुगुप्साजनक कार्य को पसंद करें, अनुमोदन करें, एवं उस कार्य को अंजाम देने वालों को महान “नायक” के रूप में पूजें. इस कारण हिटलर के देशवासियों ने उसे एक हीरो के रूप में पूजा.
आज यही मनोवैज्ञानिक “गहन-पैठ” हिन्दुस्तान के जनमानस के नैतिक मूल्यों को मिटा कर उनको देशद्रोही बनाने के काम में लाया जा रहा है. जानना चाहते हैं कि यह कैसे हो रहा है? आगे के आलेख देखते रहें!!
यह चिंतन-विश्लेषण परंपरा अभी जारी रहेगी . . . मेरी प्रस्तावनाओं में यदि कोई गलत बात आप देखते हैं तो शास्त्रार्थ की सुविधा के लिये खुल कर मेरा खण्डन करें. आपकी टिप्पणी मिटाई नहीं जायगी. [Picture by laszlo-photo]
इस लेखन परम्परा के लेख आलेख के क्रम मे:
शास्त्रार्थ तो खैर क्या करें मगर अगली कड़ी की प्रतिक्षा जरुर करते हैं.
पढ़ रहे हैं !
आज यही मनोवैज्ञानिक “गहन-पैठ” हिन्दुस्तान के जनमानस के नैतिक मूल्यों को मिटा कर उनको देशद्रोही बनाने के काम में लाया जा रहा है. जानना चाहते हैं कि यह कैसे हो रहा है?
” उत्सुकता बढ़ गयी है…….आगे की कड़ी का इन्तजार है”
Regards
अगली कड़ी की प्रतिक्षा है.
बहुत अच्छी ज्ञानवृद्धक, बाते पढने को मिली। हिटलर नाम तो सुना था पर मनोविज्ञानिक तरह से उसके चरित्र, क्रियाकलापो को उदघृत कर आपने लिखा, वो पसन्द आया। अगली कडी का मै भी एक ग्राहक हु समीर ताऊ की तरह हमारी भी बुकिग कर देवेजी।
नेताओं की एक पूरी जमात है जो लोगों को अब भी मूर्ख बना कर मेस्मराइज किये है।
हिटलर के बारे में काफी कुछ नया जानने को मिला। अगली किश्त की प्रतीक्षा रहेगी।
हिटलर को लेकर बडे विरोधाभासी विचार आते हैं.
बहुत सही कह रहे है शास्त्री जी, धीरे धीरे यही हो रहा है.गली कडी की इन्तजार मै.
धन्यवाद
तालिबानी लोग भी हिटलर की पद्धति के पोषक हैं.
आपका मनोनियंत्रण अचूक है क्योंकि आप हमारे मानस पटल पर गहरी पैठ जमा रहे हैं… 🙂 अगली कड़ी भी पढ़ रहा हूं..