इस चमकदमक के पीछे दर्दनाक है राज!!

कल अपनी भतीजी के लिये मिठाई खरीदने गया तो एक बात नोट की जिसे मैं ने हमेशा नजरअंदाज किया था –  कि मिठाई की दुकान पर एक पूरा हिस्सा चांदी के वर्क से ढंकी मिठाईयों का था. इस विभाग से कभी मिठाईयां नहीं खरीदी इस कारण इसके पहले ध्यान नहीं दिया था कि वर्क का प्रयोग कितना अधिक होता है.

इसे देखते ही मुझे चमक के पीछे की क्रूरता याद आ गई. हे प्रभु यह तेरा पंथ पर अपने आलेख में महावीर ने बताया है कि हर साल हिन्दुस्तान में 40 टन वर्क की खपत मिठाईयों के लिये होती है. उन्होंने बताया है कि

इस उधोग के काम मे लाने के लिये भारी सख्या मे भेड, बकरी, और मवेशियो कि हत्या कि जाती है। एक किलो वर्क तैयार करने के लिये १२५०० पशुओ कि हत्या कि जाती है।

मैं अभी तक यह समझता था कि शायद किसी तरह की टाटपट्टीनुमा कपडे का प्रयोग करके चांदी का वर्क बनाया जाता है. लेकिन इस आलेख से पता चला कि यह तो जानवारों की खाल के प्रयोग से बनाया जाता है.

इधर उधर जरा तलाशा तो पता चला कि चांदी के नाम पर आजकल अन्य किस्म के धातुओं का प्रयोग या मिश्रित प्रयोग भी होने लगा है, जो शरीर को काफी हानि पहुंचा सकता है. कुल मिला कर कहा जाये तो वर्क का प्रयोग न केवल शरीर को नुक्सान करता है बल्कि इसके पीछे छुपी हिंसा को भी प्रोत्साहन देता है. 

चांदी के वर्क के प्रति कभी भी मेरा झुकाव नहीं रहा है, और इस आलेख को पढने के बाद अब इस विषय पर खुल कर बोलने और जनजागरण करने का सोच लिया है.

हे प्रभु यह तेरा पंथ एक पठनीय चिट्ठा है और महावीर अकसर एक से एक आलेख देते रहते है. आप को हास्य से लेकर सामयिकी तक का पूरा स्पेक्ट्रम मिल जायगा. आज सारथी पर टिप्पणी करने के बदले यदि इस युवा चिट्ठाकार के चिट्ठे पर एक टिप्पणी कर दें तो मैं यह मान लूंगा कि आप ने मेरी बात रख ली!!

Article Bank | Net Income | About IndiaIndian Coins | Physics Made Simple | India

Share:

Author: Super_Admin

21 thoughts on “इस चमकदमक के पीछे दर्दनाक है राज!!

  1. वर्षों पूर्व जब मुझे पता चला था कि एक प्राणी विशेष की आँतों में भरकर, कूट-कूट कर ये वर्क बनाये जाते हैं, तब से वर्क च्ढ़ी मिटाईयों का उपयोग ही बंद कर दिया।

    बेशक, आज के माहौल में पीने का पानी तक प्रदूषित है, लेकिन आँखों देखी मक्खी निगली भी तो नहीं जाती (अब कोई निगलना ही चाहे, तो हम क्या कर सकते हैं, भई?)

  2. चांदी के वर्क से सजी मिठाई किस को अच्छी नहीं लगती…..लकिन आपका आज का ये लेख ………दिमाग सुन्न हो गया…..ऐसा भी होता है…….आगाह करने का आभार….

    Regards

  3. अब क्‍या बताउं … मै शाकाहारी हूं … पर लगता है लोगों ने मुझे शाकाहारी नहीं रहने दिया … अभी तक तो चांदी के वर्कवाली मिठाइयां खा ही रही थी … अब भले ही न खाउं।

  4. कुछ समय पहले ही इस सच्चाई को जाना था तब से चांदी वर्क वाली मिठाई लेना बंद कर दिया था ..शुक्रिया इसको बताने का

  5. बात अगर शाकाहार और मांसाहार से जुडी है तब तो तार्किक है. लेकिन जो लोग स्वेच्छा से मांसाहारी हैं, मुझे नहीं लगता की उनके लिए इस बात के बहुत अधिक मायने हैं. जिन जानवरों या मवेशियों को कृत्रिम रूप से सिर्फ और सिर्फ खाए जाने के लिए ही फार्म्स में पैदा किया गया था, उनको उनकी नियति तक पंहुचाने को अनावश्यक रूप से क्रूरता का नाम दिए जाने से मैं सहमत नहीं हूँ बावजूद इसके कि मैं स्वयं पूर्ण शाकाहारी हूँ और खुद को किसी भी प्रकार कि हिंसा का भागीदार बन्ने से बच्चा कर रखता हूँ.

    वैसे “हिन्दुस्तान का दर्द” चिट्ठे पर एकदम तीखी बहस चल रही है.. आप चाहें तो उसका रसास्वादन कर सकते हैं.. और ये रस शाकाहारी या मांसाहारी नहीं होगा. वैसे बिना सूचना के मांसाहार बेचना अब हमारे देश में भी अपराध कि श्रेणी में आता है.. भले ही वह भोजन का कितना भी मामूली भाग क्यों न हो.

  6. मैंने वहा पर पढ़ा था और कमेंट्स भी किया था!
    सच यह जानकरी मुझ तक पहली बार पहुंची है की हम अपनी खुशियों को बाटने के लिए जानवरों की जिंदगी उजाड़ते है !
    आपने महावीर जी के इस महत्पूर्ण लेख को यहाँ छापकर,इसके प्रचार प्रसार मे योगदान दिया है जो अधिक से अधिक जानवरों की जिंदगी को बचाने मे सफल होगा !
    हम वर्क लगी मिठाइयों का उपयोग नहीं करें इसी आशा के साथ…..

    जय हिन्दुस्तान-जय यंगिस्तान
    संजय सेन सागर
    हिन्दुस्तान का दर्द
    http://www.yaadonkaaaina.blogspot.com

  7. uncle..aap ne jo likha usko aaj mere dad ne mujhe bithake padhaya …main jab dad yeh lekh likh rahe the toh unke saath mumbai ke silver vork factory pe leke gaye the..mujhe tab tak maaloom nahi tha ki silver vork kaise banta hai..jab maaloom pada toh maine yeh khaana chod diyea..chunki hum jain hai..pur veg hain..par jaankari nahi hone ki vajah se aisi chiz jeevan
    upyogi banayi..mujhe khushi hui ki aapne mere dad ke thinking ko respect kiya..thank you..

  8. आ, शास्त्रीजी
    शायद आपने मुझे ज्यादा ही कुछ दे दिया। डर लगता है यह जिम्मेदारीयो को निभा पाउन्गा या नही। आपने मेरे पर विश्वास जताया इसके लिये मै आपका तेह दिल से शुक्रिया अदा करता हु। बस भगवान से एक ही प्रार्थन्ना है कि यह विश्वास हमेशा ही बनाऐ रखू। आज सुबह ही मेरे मित्र सजय सेन सागर[हिन्दुस्तान का दर्द ] ने आपके चिठ्ठे पर प्रसारित पोस्ट का सुचना दि। बाद मे आपका मेल भी मिल गया था
    गुरुदेव आज मजाक करने का मुड हो रहा है, करु ? आज्ञा है?

    इसे कहते है बिन साबुन कि धुलाई॥॥॥॥

    अतः मे आपके लिऐ

    शास्त्राभ्यास किया सुख़कारी।
    पाई ज्ञान सम्पदा भारी।
    शिक्षामृत का पान कराया।
    लाखो जन को तृप्त बनाया

  9. @पुनीत ओमर Says: (सारथी चिठ्ठा पर) -“लोग स्वेच्छा से मांसाहारी हैं, मुझे नहीं लगता की उनके लिए इस बात के बहुत अधिक मायने हैं. जिन जानवरों या मवेशियों को कृत्रिम रूप से सिर्फ और सिर्फ खाए जाने के लिए ही फार्म्स में पैदा किया गया था, उनको उनकी नियति तक पंहुचाने को अनावश्यक रूप से क्रूरता का नाम दिए जाने से मैं सहमत नहीं हूँ बावजूद इसके कि मैं स्वयं पूर्ण शाकाहारी हूँ और खुद को किसी भी प्रकार कि हिंसा का भागीदार बन्ने से बच्चा कर रखता हूँ. ”
    ……………….
    @बेनामी ने कहा… (हे प्रभु पर आकर कहा)
    “ये सब भेड़ चाल है.एक ने कहा की ये गलत है.तो सब ही कहने लगे ये गलत है. हम मिठाई नही खायेगे …..
    की घोषणा कर दी. (शायद इन को मदुमेह है )जानवर को मार कर क्या -क्या नही बनता है.क्या उन सब को पहना या उपयोग करना छोड़ दे. कुछ लोगो की भावनाओ को भड़काने के आलावा और कुछ नहीं है इस लेख का अर्थ. जो कह रहे है ये गलत है वो झूट बोल रहे है.सुब से ज्यादा मिठाई वो ही लोग खायेगे” .
    ………………

    मेरा तर्क पर वितर्क
    ” बात शाह्काहारी या मॉसाहारी कि नही बात है आपके स्वास्थय पर पडने वाली असर की
    वर्क केवल मॉसाहारी खाध पदार्थ ही नही है, वरन यह मानव शरीर के लिये काफी हानिकारक भी है
    इन्शान चान्दी को हजम नही कर सकता और उसे खाने से कोई
    लाभ नही। नवम्बर २००५ मे लखनाऊ मे वर्क पर इण्डिस्ट्र्यल टॉक्सीकोलोजी रिसर्च सेन्ट्रर द्वारा किये अध्यन मे स्पष्ट रुप से कहॉ गया है कि बाजार मे उपलब्ध चान्दी के वर्क जहरीले ही नही बल्कि कैन्सर कारक भी है। जिसमे सीसा, क्रोमियम, निकिल और कैडमियम जैसी धातुए भी मिली हुई है। जब ऐसी धातुऐ शरीर मे खाधय पदार्थ के रुप मे जायेगी तो निशिचत कैन्सर का कारण बनेगी। रिपोर्ट मे यह भी कहा गया है कि इस उधोग मे काम करने वालो के स्वास्थय पर भी विपरित प्र भाव पडता है।
    दुसरी बात मै माशाहारीयो का विरोध नही करता क्यो कि दुनिया भर मै मॉसाहारी५५%, शाकाहारीयो४५% से अधिक है; अगर कुछ प्रतिसत लोग शाकाहारी बन जाते है तो भी ससार भर मे दिक्क्त आ जाएगी शाकाहारी खाधय प्रदार्थो मे भारी किल्ल्त महसुस कि जाएगी। वैसे मेरा यह तर्क सिर्फ इतना है कि जो शाकाहारी है वो न खाऐ और जो मॉसाहारी बन्धुओ के लिऐ यह तर्क है करीब १२००० पशु कि हत्या होती है १ किलो वर्क मे उपभोग किसका हुआ वर्क या पशु का । पशुओ को तो आपने यूज ही नही किया (खाधय रुप मे )बेचारे इन्सानी फैशन के चक्कर मे मारे गऐ। वर्क आपके स्वास्थय के लिए भी हानिकारक है। चोथा तर्क है वर्क वाली मिठाई, पान, फल,पर रेड लेबल यानी मॉसाहारी लेबल लगाया जाऐ।

  10. यह कहना गलत होगा की वर्क बनाने के लिए पशुओं की हत्या होती है.वर्क बनाने की प्रक्रिया में चमड़े का प्रयोग होता है यह सत्य है. लेकिन इस कारण वर्क एक पशु उत्पाद तो नहीं बन जायेगा. हम वर्क का विरोध करते हैं क्योंकि वह सेहत के लिए ठीक नहीं है और आजकल वर्क चांदी का न होकर किसी और धातु का होता है.

  11. हे प्रभु यह तेरा पंथ के ब्लाग पर इस बारे मे पढा था और तब से ही मन खिन्न था. यहां भी विभिन्न लोगों के विभिन्न विचार हैं. पर भाई अपनी अब और वर्क वाली मिटःठाई खाने की इच्छा खत्म हो गई.

    एक अच्छी और शिक्षादायक बात लगी हमको तो.

    रामराम.

  12. @PN Subramanian Says:
    March 18th, 2009 at 6:28 pm
    यह कहना गलत होगा की वर्क बनाने के लिए पशुओं की हत्या होती है.वर्क बनाने की प्रक्रिया में चमड़े का प्रयोग होता है यह सत्य है. लेकिन इस कारण वर्क एक पशु उत्पाद तो नहीं बन जायेगा. हम वर्क का विरोध करते हैं क्योंकि वह सेहत के लिए ठीक नहीं है और आजकल वर्क चांदी का न होकर किसी और धातु का होता है.

    # सर, आपकि बात से सहमत नही बन पाया। क्षमा करे। वर्क बनाने मे चमडे का प्रयोग होता है यह बात सही है। पर चमडा पैड पर नही उगता। आवश्यकता एवम डिमाण्ड के हिसाब पशुओ के वध से ही प्राप्त किया जाता है। जैसे रोटी बनाने के लिये गेहू को आटा बनाना पडता है वैसे ही चमडे कि जरुरत पशुओ कि खाल से ही पुरी होती है। मेरे कहना का तत्पर्य सिर्फ इतना है कि सीधे-सीधे पशुवध इस लिये हो रहा है कि कोई अन्य प्रोडेक्ट को तैयार करना है। ना कि किसी के भोजन उपयोग मे होता है।

  13. शास्त्री जी मेने भी पढी थी यह पोस्ट, ओर उस से पहले शायद एक सल पहले मिडिया डाकटर पर भी ( डा प्रवीण चोपडा जी के ब्लांग ) पर भी पढा था कि यह चांदी नही होती, ओर मै तो बेसे ही इन चीजो को नही खाता, वल्कि बजार की मिठाई भी बहुत कम खाते है, बीबी घर मै ही कभी कभार बन लेती है( क्योकि यहा मिलती नही इस कारण)
    आप का धन्यवाद इस बारे बताने के लिये

  14. हे प्रभु,
    ५५% लोग जब मांसाहारी हैं तो जानवर तो कटेंगे ही. .उन सबके चमड़े का उपयोग विभिन्न उद्योगों में होता है. वर्क बनाने में भी होता है. आपके लेख की मूल भावना का हम आदर करते हैं. आभार.

Leave a Reply to PN Subramanian Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *