मुझे कई बार हंसी आती है जब लोग कहते हैं कि अंग्रेज शासक आये, इस कारण यह देश इसलिये सभ्य हुआ और हिन्दुस्तान में इस कारण अच्छी शिक्षा व्यवस्था का प्रादुर्भाव हुआ. यह वैसी ही बात है कि “अच्छा हुआ कि कल एक राहगीर लुट गया क्योंकि इस कारण अब पुलिस की गश्त तगडी हो गई है”.
ईस्ट इंडिया कंपनी आई थी व्यापार करने को, लेकिन जब हिन्दुस्तान की समृद्धि को पास से देखा तो आंखे फट गई. (गरीब के साथ कौन व्यापार करता है). और जब यह देखा कि इस देश के शासकों के बीच फूट है, या फूट डाली जा सकती है तो उनकी बांछे खिल गई कि अब तो आराम से इस देश की हजारों धनी रियासतों को चैन से लूटा जा सकता है. (लोग सिर्फ संपन्न लोगों को लूटते हैं, न कि कंगालों को. यह था हमारा हिन्दुस्तान).
किसी भी देश की मुद्रा उसकी सार्वभौमिकता की निशानी है. इस कारण हिन्दुस्तान के हजारों राज्यों के अपने सिक्के थे. लेकिन ईस्ट इंडिया कंपनी के लुटेरों ने एक एक करके जब हिन्दुस्तानी रियासतों को अपने हाथ में लिया तो जहां तक हो सका स्थानीय राज्यों के सिक्कों को बंद करवा दिया और “कंपनी” के सिक्के चलाना जरूरी कर दिया. राजनैतिक/सामरिक कमजोरी और फूट के कारण काफी सालों तक हिन्दुस्तान के कई हिस्सों में गोरे लुटेरों के द्वारा चलाये गये पैसे चलते थे.
इस चित्र में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा 1835 में उनके द्वारा शासित क्षेत्र में चलाने के लिये ढाले गये सिक्के को आप देख सकते हैं. यह हमारी गुलामी की निशानी है, लेकिन दुर्भाग्य से हिन्दुस्तान के इतिहास का भी एक हिस्सा है. यह सिक्का आजकल 50 रुपये से लेकर 250 रुपये तक का बिकता है.
[यदि हम अभी भी न चेते तो कल गुलामी पुन: वापस आ जायगी. आतंकवादी जिस तरह से देश में खुला तांडव कर रहे हैं यह महज इसका एक इशारा मात्र है. पश्चिमी राष्ट्र जिस तरह हमारे संचार माध्यमों का शोषण कर रहे हैं यह भी गुलामी का ही रास्ता बन जायगा.]
बहुत सामयिक चेतावनी दी है आपने अन्तिम पंक्तियों में।
गुड मोर्निग सरजी
सुबह सुबह सिक्को को देख मन प्रफुलित हो उठा। दोपहर मे मिलेगे सर जी।
इन लुटेरों ने तो बहुत कुछ किया है, दुर्भाग्य से हमारा बद्विजीवी इनको आदर्श मानता है इसलिए इनकी असलियत छिपाता है। आज सारी ही समस्यओं की जड़ ये अंग्रेज हैं। अच्छा विषय उठाया इसके लिए बधाई।
लगता है आपने इस सिक्के की सफाई कुछ ज्यादा ही कर दी. चाहे आप कुछ भी कहें आज जिस प्रकार का प्रजातंत्र हम देख रहे हैं उसके लिए कुछ विकल्प की आवाश्यकता तो है. साथ ही आप ने जिस और इंगित किया है उसके प्रति भी सचेत रहना होगा.
लुटेरे पहले भी थे, गोरे भी थे और अब भी हैं।
अपने जब लुटेरे हों तो कष्ट ज्यादा होता है। 🙂
‘आत्महीनता’ बौद्धिक/मानसिक दासता की नींव का काम करती है। वह अभी तक भारत में बनी हुई है। मानसिक दासता, राजनैतिक दासता की बड़ी बहन है।
लुटेरे तो हर समय मौजूद रहते हैं पर हम भी तो बेखबर रहते हैं फिर दोष किसका है ।
तालिबानियों का खतरा सर पे मंडरा रहा है पर हमारे राजनेता प्रधान मंत्री बनने के लिये जुगत लगा रहे हैं । आतंक वाद से निपटने का रास्ता एक को भी नही मालूम ।
पर सिक्के के बहाने आपकी ये चेतावनी बडी सामयिक है ।
क्या बताये ? लुटेरे तो लुटेरे होते हैं चाहे गोरे हों या काले हों.
रामराम.
शास्त्री जी भारत को सोने की चिडिया यु ही नही कहा जाता, मेने आधी से ज्यादा दुनिया देख ली है, लेकिन हमारे भारत से ज्यादा कुदरती तोर पर कोई अन्य देश नही हमारे देश मै सब कुछ मिलता है जब कि अन्य देशो मै कही कूछ तो कही कुछ मिलता है, अगर हम सारी दुनिया से अलग तलग भी हो जाये तो कभी भी भुखे नही मर सकते, बाकी यह गोरे अगर एक साल तक बाकी देश इन्हे खाद्य समाग्री देना बन्द कर दे तो भुखे मरना शुरू हो जाये अरबी भी कब तक खजुरे खा कर गुजारा करे गे, लेकिन यह सब बाते हम कभी नही समझ सकते, आज भी भारत से सब से बडिया किस्म का चावल बहुत ही सस्ते दामो पर युरोप को भेजा जाता है, जिसे हम यहां भारत से भी सस्ता खरीदते है, ओर भी बहुत सा समान जेसे चाय, हल्दी, मसाले बिलकुल साफ़ ओर उच्च स्तर के ओर भारत से सस्ते,ओर उस के बदले मै,या तो हमारे ही सस्ते लोहे से बनी मशीने हमे मंहगी दी जाती है या फ़िर वो पेसा यहां के स्विस बेंको मै रखा जाता है.
आज भी हम जाग उठे सही रुप मे भारत को प्यार करे तो कुछ ही सालो मे हम दुनिया पर राज कर सकते है, यह दुनिया हमारे समाने झुके, लेकिन हमे अपनी अपनी जेबे भरने से ही फ़ुरतसत नही, बाकी समय मिअलता है तो हह आपस मै ही लडना शुरु कर देते है,पहले भी गदारो के कारण गुलाम बने थे फ़िर से उन्ही गद्दरो की संतानो के कारण गुलाम बने गे, अगर समय पर ना चेते.इटली या युरोप के किसी भी देश मै किसी काले को प्राधान मंत्री तो दुर की बात है कोई बडा मंत्री बना कर दो दिखाओ?? अमेरिका की मिशाल हमारे यहां देने वाले तो बहुत है, लेकिन उन्हे क्या यह भी पता है यह अमेरिका है किन लोगो का ? क्या यह अमेरिका इन गोरो का है??
धन्यवाद अगर अब भी ना जागे तो हमारे आने वाली पीढी कही गुलाम ना हो जाये??
हम आधुनिक युग में रहकर अनपढ़ों को दुनिया लूटते हुए देख रहे हैं, विडंबना यह है कि पहले फ़ूट थी और अब हिम्मत नहीं है, देखते हैं कि हमारा देश कब तक आजाद रह पाता है ।
Really a nice blog with a commendable title who inspired me to write without hesitation that in number of walks of life , we are facing Gulami…I have not seen the governanace of previous era, but I can imagine that would have been more liberal.Kis bat ki savantrata ha aapko??Jara apne ander zhank kar dekhiye.
I dont agree that we are totally free. Money is rolling in swiss banks and we are doing the drama of poverty. Shame on us and our systum