चिट्ठालोक: ओखली या खरल?

image हफ्ते भर की छुट्टी मनाने के बाद वापस चिट्ठालोक में आया तो पता चला कि मेरे युवा मित्र प्रकाश बादल बहुत दुखी हैं क्योंकि उनके विरुद्ध किसी चिट्ठाकार (चिट्ठाकारों) ने कुछ असत्य आरोप लगाये हैं. वे मैदान छोडने वाले थे लेकिन भला हो कई चिट्ठाकारों का जिन्होंने अपनी टिप्पणी द्वारा उनको हिम्मत बंधाया.

लगता है कि अब लगभग हर महीने इस तरह का एक प्रकरण होने लगा है जहां किसी चिट्ठाकार के विरुद्ध बेतुके आरोप लगा दिये जाते हैं और वह बेचारा रणभूमि छोड कर कहीं ओर जाने की सोचता है. इसमें दोष उनका नहीं है बल्कि इस माध्यम का है जिसे अधिकतर चिट्ठाकार नहीं समझते.

अंतर्जाल का प्रादुर्भाव हुआ ही अभिव्यक्ति की आजादी के लिये था.  ऊपर से चिट्ठों का प्रादुर्भाव तो अराजकत्व की अवस्था तक आजादी के लिये था. इस कारण ना तो यहां नियम है न ही कानून. हां, यदि आपके अधिकारों का हनन हुआ है तो आप न्यापालिका द्वारा न्याय पा सकते हैं. लेकिन टीका टिप्पणी आदि के पीछे कोई इस तरह न्यायकानून के पीछे नहीं भागता है.

कुल मिला कर यह एक वाहन है जहां न तो कोई ड्राईवर है न कंडक्टर. अत: थोडेबहुत ऊचनीच के लिए हम सब को तय्यार रहना होगा.

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Still in Pencil by chefranden

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Author: Super_Admin

13 thoughts on “चिट्ठालोक: ओखली या खरल?

  1. आपका पुनः हार्दिक स्वागत है… इस प्रकार की घटनायें कई बार चिठ्ठाकार का आत्मविश्वास हिलाने के लिये भी की जाती हैं, लेकिन यदि दिल-दिमाग मजबूत कर लिया जाये और ईँट का जवाब पत्थर से देने का मानस बना लिया जाये तो विघ्नसंतोषी तत्वों से आसानी से निपटा जा सकता है… मेरे साथ बहुत पहले कतिपय “सेकुलर” लोगों द्वारा ऐसा किया गया था लेकिन जब उन्हें एक बार “शुद्ध हिन्दी और देसी भाषा” में समझा दिया गया उसके बाद वे चुप बैठ गये… लेकिन ये तो होता ही रहेगा… कभी अपना वर्चस्व दिखाने के लिये, कभी अपनी अति-विद्वत्ता दिखाने के लिये, कभी खामख्वाह परेशान करने के लिये… नये लोगों को इससे निपटना सीखना ही होगा…

  2. कुल मिला कर यह एक वाहन है जहां न तो कोई ड्राईवर है न कंडक्टर. अत: थोडेबहुत ऊचनीच के लिए हम सब को तय्यार रहना होगा… बिल्‍कुल सही कहा आपने।

  3. प्रकाश जी के प्रसंग की पूर्वपीठिका और उस पर हुआ वाद-संवाद तनिक भी नहीं रुचा ।
    प्रकाश जी का चिट्ठाजगत में सक्रिय रहना भी एक अच्छा जवाब होगा । धन्यवाद ।

  4. आदरणीय, आप छुट्टियाँ मना आए। हम सोचते ही रह गए, आखिर आप कहाँ मशगूल हैं। हमारे यहाँ वकील के साथ कुछ हो जाए तो हड़ताल वकीलों की नाक पर रखी रहती है। लेकिन अपना उसूल है कि खुद की खुद निपट लो। यही उसूल यहाँ भी रखना चाहिए। फिर ब्लागरी में तो सब कुछ दोस्ताना होना चाहिए। किसी भी विचारक को नीची निगाह से नहीं देखना चाहिए लोगों के अपने मौलिक विचार हैं तो वि्चार कैसे भी हों विचारक का सम्मान तो करना ही चाहिए। किसी को सलाह भी दें तो इतने सम्मान के साथ कि बातचीत न टूटे। समान विचार वालों के बीच तो बदलने को कुछ नहीं होता है। असल में यदि आप अपने विचार को लोगों तक पहुँचाना चाहते हैं तो अलग विचार वाला ही तो तलाशना होगा। उसी के साथ आप का व्यवहार मित्रवत न हुआ तो फिर आप अपने विचारों पर ताला डाल कर बैठ सकते हैं। बल्कि यदि कोई आप के साथ बदतमीजी भी करे तो भी हतोत्साहित होने की आवश्यकता नहीं है। वह स्वाभाविक प्रतिक्रिया ही तो है। आप को तो ऐसे में और विनम्र हो जाना चाहिए।
    वैसे इस तरह के सभी गुण कम से कम आप में तो हैं ही।

  5. लोग इतने छुई मुई ही क्यों हैं -जब देखिये टंकी प्रयाण पर उतारू हो जाते हैं ! तेवर तो वही होना चाहिए -इहाँ कुम्हड़ बतिया कोऊ नाहिं जे तर्जनी देख मरि जाहीं !

  6. अब टिप्पणियों की ओखली से भागते रहे तो बेचारा मूसल तो बेकार हो जाएगा। टिप्पणी [अच्छी हो या बुरी] आपके लेखन की सफलता की गाथा है….तो इससे कैसा डर?

  7. आपकी पोस्ट कई दिन बाद दिखी. प्रकाश जी के बारे मे पढ्कर बडा दुख हुआ. वैसे हमारे जैसे लोगों को यह प्रकरण समझने के लिये लिंक दे दिया जाता तो अच्छा रहता. खैर..

    इन सबसे निपटने के लिये भाषा का शुद्ध होना अति आवश्यक है. यकीन मानिये आधी से ज्यादा समस्याएं तो अपने आप दूर हो जाती हैं.

    रामराम.

  8. आपने सही कहा है।
    कुछ विवाद विचारॊ की भिन्नता के कारण होते हैं। कुछ यहां स्वाभाव के कारण होते हैं।

  9. प्रकाशजी के साथ क्‍या हुआ-पता नहीं। किन्‍तु जैसा कि द्विवेदीजी ने कहा है, सबके प्रति मैत्री भाव रखना ही श्रेयस्‍कर है। वैसे भी आदमी जैसा बोता है, वैसा ही उसे काटना भी पडता है। सदाशयता बनाए रखिए, सदाशयता ही पाएंगे। अपने रास्‍ते चलते रहिए। किसी के साथ छेडखानी मत कीजिए। यदि करते हैं तो ‘क्रिया की समान प्रतिक्रिया’ के लिए भी तैयार रहिए।

  10. स्वागत है ब्लोग-लोक मे। विगत समय से ब्लोग्-लोक मे आपकी कमी खली यह सत्य है। किन्तु कुछ आराम भी मिला यह भी सत्य है। आपके इस लोक मे आते ही हलचल महसुस की जा रही है। प्रकाश बादल जी का आपने जिक्र किया।

    “उनके विरुद्ध किसी चिट्ठाकार (चिट्ठाकारों) ने कुछ असत्य आरोप लगाये हैं. वे मैदान छोडने वाले थे लेकिन भला हो कई चिट्ठाकारों का जिन्होंने अपनी टिप्पणी द्वारा उनको हिम्मत बंधाया.”

    इस अखाडे मे कायदे नही है यह फ्रि-स्टाइल कुस्ती है। लोग लिखते समय भाषा के साथ-साथ विवेक भी खो देते है जो चिन्ताजक है। क्यो कि इस बिन लाईसेन्स कलम व बिन लगाम जुबान का ताल बन बैठा है यह ब्लोग जगत्। सत्य है इसलिए कडवा लगेगा किन्तु हे प्रभु चाहते है कि आऐ दिन ऐसे व्यक्तिगत झगडे ब्लोगेरिया के आखाडे मे दिखाई दे रहे है। मिशाईलो कि जगह शब्दो के घातक बाण चलाए जाना। तलवार कि जगह कलम का इस्तेमाल करना ( दुरपयोग) को रोकने के लिऐ शक्त कदम उठाऐ जाने चाहिऐ। पिडित व्यक्ति को न्याय मिले,विवेकहीन शाब्दिक हिन्सा फैलाने वाले को सजा एवम कम्युनिटि से बाहर किया जाऐ। ब्लोग जगत का दुर-उपयोग करने वाले व्यक्ति का प्रसार्-प्रचार चिठठाजगत-ब्लोगवाणी-नारदवाणी-सहित सभी प्रसारक समुह द्वारा रोका जाऐ। विवाद को निपटाने के लिऐ न्यायिक फारम का गठ्न हो।

    जय जिनेन्द्र॥॥

  11. यह बात उन लोगो के लिऐ है जो टि आर पी के चक्कर मे अर्नगर्ल बाते लिख हिन्दि चिठ्ठे के पेपर को नुकशान पहुचाते है या एसी इच्छा रखते है।

    “””व्यवहारिक भाई बन्धू ब्लोगकर्ताओ को ससम्मान प्रणाम॥॥।”””””

  12. मामला दर असल था क्या? हम तो जान ही नहीं पाये। खैर यहाँ रणछोड़दास बनने की जरूरत नहीं है। इस मुक्ता बाजार में माँग और आपूर्ति की शक्तियों को अपना काम करने दीजिए। बात का बतंगड़ बनाने वाले स्वयं अप्रासंगिक हो जाएंगे।

  13. श्री मान शास्त्री जी, प्रकाश भाई हमारे भी आजीज दोस्त है । मै ने भी उनके मामले को समझा है । यह एक प्रकार का षडयँत्र था उनके खिलाफ । यह बात समझाने के लिये मै ने अपने बलोग पर एक पोस्ट भी लिखी है । यह उस चैट बोक्ष वाले बक्से कि वजह से हुआ है जिसमें कोई भी असामाजिक त्तत्व किसी भी नाम से गलत मेल आई डी का प्रयोग करके कुछ भी वहा लिख सकता है । विस्तार से जानने के लिये यह पोस्ट पढ़े । http://myshekhawati.blogspot.com/2009/04/blog-post_18.html

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