हिन्दी चिट्ठाजगत में वैसे तो सब कुछ सामान्य चल रहा है, लेकिन यदाकदा आपसी रंजिश, जलन, विरोध आदि दिख जाता है. इसमें कोई ताज्जुब नहीं है क्योंकि मानव संसार में कहीं भी पूरी तरह अमन और चैन नहीं है. मानव समाज में पूरी तरह अमन और चैन सिर्फ तभी होगा जब हम सब के सब देवपुरुष बन जायेंगे. फिलहाल तो ऐसा कुछ होता नहीं दिखता.
अधिकतर वरिष्ठ चिट्ठाकार इस बात को समझते हैं और मतभेद, टीकाटिप्पणी, नुक्ताचीनी आदि को एक संतुलित नजरिये से देखते हैं और अपना खुद का संतुलन बिगडने नहीं देते हैं. लेकिन कई बार कनिष्ठ चिट्ठाकार इन बातों से एकदम विचलित हो जाते हैं और चिट्ठाकारी त्यागने का मन बना लेते हैं. इससे संबंधित जो बातें अनूप शुक्ल ने अपनी चर्चा जूता, जोरा-जामा, मुखौटा और गिरगिट में कही हैं उसे सारे चिट्ठाकार जरूर देखे लें. इसी विषय से संबंधित मेरा आलेख विष्ठा से क्यों डरे ?? भी जरा देख लें.
अब आते हैं क्या-फायदा की ओर! जरा निम्न बातों की ओर ध्यान दें:
- यदि आप किसी विषय पर एक आंदोलन चलाना चाहते हैं (मसलन, शुद्ध हिन्दी का प्रचार, एतिहासिक दस्तावेजीकरण, रेगिंग का विरोध, कानून की जानकारी, अधिकारों के प्रति लोगों को सचेत करना), तो चिट्ठाकारी जैसा कोई माध्यम नहीं है. यह मुफ्त है, यहां आप अपने खुद के मालिक हैं, और इसके प्रचारप्रसार के लिये आप आजाद हैं. कोई भी छपाई-माध्यम आपको ये सुविधायें नहीं देता है.
- यदि आप अपने शौक (सिक्का संग्रह, संगीत, इतिहास, मूर्तिकला, शब्द-व्युत्पत्ति, भारतीय औषध, आदि) के बारे में लोगों को विस्तार से बताना चाहते हैं तो चिट्ठाकारी ही आपके लिये सही माध्यम है. कोई भी पत्रिका या अखबार लगातार एक ही विषय पर आपके लेख नहीं छापेगी.
- यदि आप लेखन के बहुत शौकीन हैं और उसके साथ साथ अपने पाठकों से “मुलाकात” भी करना चाहते हैं तो चिट्ठाकारी जैसा कोई क्षेत्र नहीं है.
लेकिन इसके साथ साथ निम्न बातों को न भूलें:
- समाज में हर जगह दोचार नंगे जरूर होते हैं. चिट्ठाजगत में भी हैं. ये अपना काम यहां जरूर करेंगे क्योंकि यहां न तो डंडा लिये कोई मास्टर है, न ही कोई चिट्ठा-पुलीस. लेकिन जिस तरह सडक पडा मैला आपको सडक पर चलने से नहीं रोक पाता, उसी प्रकार इन लोगों को चिट्ठाजगत की विष्ठा समझ कर इनको नजरंदाज कर दें.
- एक नंगे के कारण निन्यानवे मित्रों को अनदेखा न करें. न ही उसको मित्रों की तुलना में अधिक वजन दें.
लिखते रहें. यह समाज उन चंद लोगों के कारण चल रहा है जो जाने अनजाने लोगों की सोच को सकारात्मक दिशा में प्रभावित करने में लगे हुए हैं.
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Photograph by Zach Klein
बिलकुल सही, लाख टके की बात कही आपने!
जीवन में संयम यदि होता सृजन नवीन।
लगातार अभ्यास से बनते लोग प्रवीण।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
यही फ़ायदा है कि निगोड़ी चिट्ठाकारी होती रहेगी।
शास्त्री जी कुछ मित्रों को एक शंका हो गयी है -यहाँ नंगा केवल पुलिंग या फिर स्त्री लिंग का भी बोधक है ? या फिर उभय लिंगों का ? प्रकाश डाल सकेंगें ?
संक्षिप्त लेकिन बिलकुल सटीक आलेख! शास्त्री जी, बहुत ही प्रशंसनीय! उम्मीद है “बादल” जरूर वापस आयेंगे!
अगर नंगे ही नही रहेंगे तो सब कुछ शांत सा नही लगेगा? इन्ही नंगे टिपणी बाजों की वजह से तो कभी कभी हलचल दिखाई देती है वर्ना तो अब चिट्ठाचर्चा के अलावा कुछ कम ही सुगबुगाहट दिखाई देती है.
रामराम.
@Arvind Mishra
मेरे अधिकतर प्रयोग जेनेरिक होते है, अत: स्त्रीपुरुष दोनों पर एक समान लागू होते हैं.
पर कहीं न कहीं ये लोग भी जरुरी हैं वरना बिना सारे रंगों के तो सब बेमजा हो जाएगा..
बस इतनी उम्मीद है की कम से कम आयु के आधार पर वरिष्ठ लोग यूं बचकाना बातों पर अपना संयम ना खोया करें.
चिटठा कारी का सारा खेल दूसरो का आकर्षण चुराने पर टिका है, और इसीलिए ऐसे विष्टा सामान लोगों से निपटने का जो तरीका आपने बताया, वही कारगर भी है.
आपके इस आलेख ने संक्षिप्ततः महत्वपूर्ण बात कह दी है । धन्यवाद ।
सही लिखा है आपने.
ऐसे नंगों से निबटने का एक ही उपाय है शास्त्री जी और वह यह कि भूल से भी कभी और कहीं उनकी चर्चा न की जाए. ये असल में ऐसे लोग हैं जिनकी न तो कोई सोच है और न उद्देश्य. इसके बावजूद वे चर्चा में बने रहना चाहते हैं और केवल इतने के लिए ही बेचारे चिट्ठाकारी करते हैं. क्या ही बेहतर हो कि इतना भी कहना बन्द कर दें.
सबसे अच्छा तरीका उसे नज़रंदाज करना है। पर लग रहा है कि हम सब बार-बार उसकी चर्चा कर उसे उत्साहित ही कर रहे हैं।
@क्या फायदा निगोडी चिट्ठाकारी से!!
इस बात का अर्थ तो अनुभवो को जि चुका चिठाकार बडे ही सुन्दर ढग से विवेचित कर सकता है। सर हम तो नऐ नऐ है हमारी गाडि तो अबसे ही झटके खा रही है नगो- भुगो कि वजह से।