चंदन का तेल: नाम सुना है क्या?

ग्वालियर शहर का “महाराज बाडा” शहर का जानामान बाजार है. राजेमहाराजाओं के समय से महाराज-बाडा बाजार का केंद्रबिंदु रहा है.  बीचोंबीच एक बगिया है जिसका अच्छा रखरखाव नगरपालिका करती है.  कई एकड में फैले इस गोलाकार बाजार में छ: सडकें आकर मिलती हैं और हर सडक के दोनों ओर बाजार हैं. कुल मिला कर कहा जाये तो महाराज बाडे पर हर चीज उपलब्ध है.

मैं जब भी ग्वालियर जाता हूँ तो यहां काफी समय बिताता हूँ.  यहां पुराने जमाने के अत्तारों की लगभग पांच दुकानें हैं जहां जाना मैं अपने लिये जरूरी समझता हूँ. आज से 20 साल पहले तक इन अत्तारों के पास चंदन का तेल मिलता था जो इत्रसुंगंधियों का राजा है.  बस सुबह अपने बदन पर हलके से लगा लीजिये, शाम तक लोग पूछते रहेंगे कि चंदन किसने लगाया है. एक तोला चंदन का तेल साल भर चल जाता था.

अब चंदन का तेल 100,000 रुपया लिटर हो गया है, और चंदन के नाम पर जो बेचा जाता है वह 999 भाग गुलाब का इत्र और एक भाग चंदन का तेल होत है. कीमत गुलाब के इत्र से दस गुना होती है और इस “चंदन”  की “खुशबू” सिर्फ अत्तार के पर्स में जाती है. असली चंदन का तेल आजकल देश में शायद ही कहीं बिकता हो.

चंदन की लकडी को भाप देकर यह तेल निकाला जाता है. अनुमान है कि एक किलो पकी लकडी 200 ग्राम से अधिक तेल प्रदान करती है. यह लकडी सिर्फ केरल और कर्नाटका के जंगलों में पाई जाती है जहां ठेकेदार लोग और माफिया मिलकर काफी लकडी चोरी करते हैं.  सरकार नियमित रूप से इन जंगलों से चंदन की लकडी काट कर तेल-कारखानों को नीलाम करती रहती है, लेकिन समानांतर जंगल से चोरीचपाटी भी चलती रहती है. वीरप्पन चंदन का एक बहुत बडा स्मगलर था.

चंदन के जंगल खतम होते जा रहे हैं. आज चंदन का सिर्फ नाम चल रहा है, तेल किसी ने नहीं देखा, कल नाम से भी कोई इनको नहीं जानेगा. अफसोस की बात यह है कि चंदन को बडे आराम से दक्षिणभारत के घरों में उगाया जा सकता है लेकिन लोग ऐसा नहीं करते क्योंकि आप अपने खुद के उगाये पेड को आप काटबेच नहीं सकते. सरकारी कर्मचारी पके पेड को औनेपौने दामों पर काट ले जाते हैं.

इस देश मे हर जगह हर प्रकार की नीतियों में एक बदलाव जरूरी है.

 

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Author: Super_Admin

13 thoughts on “चंदन का तेल: नाम सुना है क्या?

  1. अफसोस होता है इस तरह विलुप्त होती वनस्पतियों और प्रजातियों के बारे में सुनकर.

  2. मनुष्य की ही तरह उसकी मूर्खता भी महान होती है. नीचे लिखे अंश से तो ऐसा ही लगता है:

    “अफसोस की बात यह है कि चंदन को बडे आराम से दक्षिणभारत के घरों में उगाया जा सकता है लेकिन लोग ऐसा नहीं करते क्योंकि आप अपने खुद के उगाये पेड को आप काटबेच नहीं सकते. सरकारी कर्मचारी पके पेड को औनेपौने दामों पर काट ले जाते हैं.”

    क्या इसे उत्तर भारत में नहीं उगाया जा सकता ?

  3. Sorry to submit that these plants are available and are being misused. No solution. Total systemic failure in country.SABAL KO NAHIN DOSH GOSHAIN. Yes this oil when mixxed with SINDUR is to be used to worship Lord Hanumenji., whether it is ASLI OR NAKLI , God has to decide.

  4. घर में उगाए पेड़ को काटें बेचें नहीं उन की शाखाओं की छंटनी तो की जा सकती है। जब पक कर सूख जाए तो उसे हटा कर नया लगाया जा सकता है। तेल की जरूरत नही। चंदन की मुठिया घिस कर स्नान के उपरांत उस का उबटन कर लें और तौलिए से पौंछ लें दिन भर सुगंध नहीं जाएगी। मस्तिष्क में आनंद रहेगा।

  5. चंदन का पेड़ बहुत धीमे बढ़ता है और 10-20 साले पुरान पेड़ के तने में ही यह तेल होता है। इसलिए घर के बगीचे में चंदन उगाना “आम उगाए कोई, खाए कोई” वाली कहावत के समान होगा। चंदन जंगल का पेड़ है और वहीं वह शोभा देता है। चंदन और अन्य कई वनस्पतियों को बचाने के लिए हमें जंगल के संरक्षण पर ज्यादा ध्यान देना होगा।

    बहुत अच्छा संस्मरणात्मक लेख, पढ़कर मजा आ गया।

  6. हरियाली से प्यार करना कब सीखेंगे हम लोग!

  7. बहुत सही कहा आपने. यहा भी कुछ जगह जैसे रेसीडेंसी जैसी जगहों पर अब भी चंदन के पेड लगे हैं. रोज अकह्बारॊ मे आता है कि चोर चंदन के पेड काट ले गये.

    रामराम.

  8. बहुत सही कहा आपने. यहा भी कुछ जगह जैसे रेसीडेंसी जैसी जगहों पर अब भी चंदन के पेड लगे हैं. रोज अखबारॊ मे आता है कि चोर चंदन के पेड काट ले गये.

    रामराम.

  9. अच्छा किया आपने बता दिया वरना हम भी कभी चंदन का तेल खरीद खुश होते..

  10. कोटेज इन्डस्ट्रीस और खादी भँडार मेँ छोटी टीन की शीशी मेँ चँदन का तैल बिकता है क्या वह नकली है ?
    लिखा रहता है मैसूर मेँ बना सरकारी उत्पाद है – भारतीय नागरिक, नये प्रधानमँत्री को मिलकर एक प्रोटेस्ट लेटर क्यूँ नहीँ लिखते ?
    और सरकार से कहा जाये कि चँदन के पेडोँ के सँरक्षण व उत्पाद के लिये ठोस कार्यवाही की जाये – और १ शीशी खरीदनी हो तब
    कहाँ मिलेगी ये भी बतलाये< शास्त्री जी — धन्यवाद सहित,
    – लावण्या

  11. आपने ग्वालियर की याद ताजा कर दी. कुछ साल पहले मैं हुजरात रोड में किराये से रहकर गली-गली डाक्टर और कैमिस्ट के चक्कर लगाता था.
    उस अत्तार की दुकान मेरी देखी हुई है.
    अब तो चन्दन का इत्र शायद ही कहीं असली मिलता हो.
    बताइए, कौन सी चीज़ ऐसी है जो आज भी असली मिलती है!

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