बदलाव क्यों नहीं आयगा!!

image मेरे कल के आलेख सरकारी तंत्र, आम आदमी!! में मैं ने उन बातों की ओर इशारा किया था जहां बदलाव आ सकता है. जरूरत अपने अधिकारों को समझने, उनको मांगने, एवं जरूरत पडने पर संगठित रूप से मांगने की है. इच्छा हो तो किसी भी चट्टान को तोडा जा सकता है, बशर्ते सही समय पर सही औजार का प्रयोग किया जाये!!

ताऊ रामपुरिया ने याद दिलाया कि “फ़र्क तो आया है पर उस हद तक नही आया जैसा कि आना चाहिये. सरकारी अभी भी सरकारी सांड ही हैं”. ताऊ जी ने एकदम सही फर्माया. इसके साथ मैं यह भी जोड दूँ कि लगभग हर सांड को काबू में लाया जा सकता है और जरूरत पडने पर उसके नाक में नकेल डाली जा सकती है. उसका वंध्याकरण भी किया जा सकता है.  सारथी का एक लक्ष्य इसके पाठकों को इस तरह के सामाजिक परिवर्तनों के लिये प्रेरित करना है.

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी  की सोच है कि “सरकारी तन्त्र की मूल प्रवृत्ति ही ऐसी है कि यहाँ काम या तो भयवश होता है या लालचवश। कर्तव्यभावना की कमी एक ऐसी बीमारी है जिसका कोई इलाज नहीं दिखता है। सदाचार की बाते अब किताबों में बन्द हो गयी हैं।”

आप ने सही कहा है कि सरकारी तंत्र में काम या तो भयवश होता है या लालचवश. लालचवश जब होता है तो जनता लुटती है. लेकिन जब नियमकानून के भयवश किया जाता है तो जनता को उसका हक मिलता है. सदाचार की बातें किताबों में इसलिये बंद हो गई हैं क्योंकि नैतिक पतन में हम सब का हाथ है. लेकिन जिसे हम ने बिगाडा है उसे हम लोग सुधार भी सकते हैं.  अत: नैतिकता एवं नियमकानून को मजबूत बनाने के लिये हम सब से जो कुछ बन पडता है उसको करने के लिये कमर कसना जरूरी है. समय लगेगा, लेकिन जहां चाह वहां राह निकल आती है.

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Author: Super_Admin

5 thoughts on “बदलाव क्यों नहीं आयगा!!

  1. किसी भी व्यवस्था में मूल्यों का पतन भी एक नकारात्मक बदलाव है। सकारात्मक बदलाव के लिए सामूहिक प्रयत्नों की आवश्यकता होती है। इन्हीं प्रयत्नों में नए सामाजिक मूल्यों की स्थापना होती है।

  2. कोशिश तो करेंगे पर कैसे कितने ही लोग इस सरकारी तंत्र से टकराये पर कुछ हो न सका पर अगर हमें कोशिश करके सरकारी तंत्र को ठीक करना है तो कुछ ठोस योजना बनाना जरुरी है जिसे सारे लोग अमल में लायें।

  3. लेकिन जिसे हम ने बिगाडा है उसे हम लोग सुधार भी सकते हैं. अत: नैतिकता एवं नियमकानून को मजबूत बनाने के लिये हम सब से जो कुछ बन पडता है उसको करने के लिये कमर कसना जरूरी है.

    आपकी बात से सौ प्रतिशत सहमत हूं. अंतत: जनता को ही आगे आना होगा.

    रामराम.

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