आज से लगभग 35 साल पहले मेरे पिताजी ने मुझे मोटरसाईकिल चलाना सिखाया. उनका पहला पाठ था:
जैसे ही एक्सीलेटर तुम्हारे हाथ आ जाता है, वैसे ही हवा में उडने की ताकत तुम्हारे हाथ आ जाती है. कल तक जो व्यक्ति साईकिल के पेडल पर जोर लगाने पर भी 20 किलोमीटर से ऊपर वेग नहीं पकड पाता था, वह आज बिन जोर लगाये 120 पार कर सकता है.
ऐसे में आदमी का मन बौरा जाता है और वह गाडी को हवा में उडाने की कोशिश करता है. साईकिल चलाने के अनुभव का उपयोग अब वह हवाईजहाज चलाने के लिये काम में लेना चाहता है. यह पागलपन होगा.
एक बात और याद रखो कि तुम गाडी किसी प्रतियोगिता के लिये नहीं चला रहे हो. अत: यदि कोई तुमको ओवरटेक कर जाये तो अपने आप को नियंत्रण में रखना. प्रतियोगिता में जीत गये तो कोई खिताब नहीं मिलेगा. लेकिन प्रतियोगिता में एक सेकेंड चूक हो गई तो जीवन भर अपंग होने का खिताब मिल जायगा. शादीशुदा व्यक्ति के बच्चों को जीवन भर अनाथ होने का खिताब भी मिल सकता है.
पिताजी की इस सीख ने जीवन भर मेरी मदद की. पिछले 35 सालों में मोटरसाईकिल और कार से कुल मिला कर लगभग 300,000 किलोमीटर ड्राईव कर चुका हूँ. बदमिजाज ड्राईवरों को देख कर खून खौल जाता है. कई बार लोग ओवरटेक करने के बाद बाकायदा ठेंगा दिखाते हैं. लेकिन पिताजी के वचन हमेशा याद आ जाते हैं — तुम सडक पर आवागमन के लिये उतरे हो, प्रतियोगिता के लिये नहीं. तुम्हारा खौलता खून तुम्हारे परिवार के लिये कहीं दुख का पैगाम लेकर न आ जाये.
इस जीवनदायी सीख के लिये आज मैं अपने पिताजी को नमन अर्पित करता हूँ. यह कामना भी करता हूँ कि मेरे सारे पाठक अपने बच्चों को यह सीख जरूर देंगे!!
Indian Coins | Guide For Income | Physics For You | Article Bank | India Tourism | All About India | Sarathi | Sarathi English |Sarathi Coins Picture: by baejaar
Hello Blogger Friend,
Your excellent post has been back-linked in
http://hinduonline.blogspot.com/
– a blog for Daily Posts, News, Views Compilation by a Common Hindu
– Hindu Online.
Please visit the blog Hindu Online for outstanding posts from a large number of bloogers, sites worth reading out of your precious time and give your valuable suggestions, guidance and comments.
मेरी दिली इच्छा है कि कभी मुझे किसी चौराहे पर खड़ा कर ट्रैफ़िक का उल्लंघन करने वालों को हाथों-हाथ सजा देने का सुख प्राप्त हो। फ़िर मैं तेज़ गाड़ी चलाने वाले की गाड़ी का क्लच और एक्सेलेटर वायर तोड़ूँ, तीन सवारी बैठाने वाले की हवा निकालूं, बगैर लायसेंस गाड़ी चला रहे व्यक्ति को 3 घंटे धूप में खड़ा रखूं, 18 साल से नीचे के बच्चे को गाड़ी देने के जुर्म में उसके बाप को बुलाकर 40 उठक-बैठक लगवाऊं… मेरा यह सपना इस जन्म में तो पूरा नहीं हो पायेगा… लेकिन यदि किस्मत से कोई ट्रेफ़िक इंस्पेक्टर यह टिप्पणी पढ़ ले तो इन तरीकों को जरूर आजमाये, क्योंकि भारत के लोग “डण्डा” किये बिना सुधरते नहीं हैं…
आपने बहुत सही कहा..अब ह तो बुलेट पर २० KM की स्फीड पर चलते हैं और बुलेट का मजा भी वही है. तेज चलाने मे कोई कारीगरी नही है..हां कोई स्लो ड्राईव करके दिखाये तो मजे की बात है. ड्राईविंग का असली आनंद
तेज चलाने मे नही है.
रामराम.
भूल सुधार :
.अब ह तो = अब हम तो
स्फ़ीड = स्फीड
आज लगता है हमारे की बोर्ड का दिमाग खराब है.:) भूल सुधार मे भी गलती कर रहा है.:)
पुन: भूल सुधार :-
स्फ़ीड = स्पीड
तुम सडक पर आवागमन के लिये उतरे हो, प्रतियोगिता के लिये नहीं. तुम्हारा खौलता खून तुम्हारे परिवार के लिये कहीं दुख का पैगाम लेकर न आ जाये… पिताजी के ये वचन वाकई हर उस इंसान को हर वक्त याद रखने चाहिए, जो अपने हाथ में हेंडल या स्टीयरिंग थामे है.. आभार
साधारण सी बात, पर मिर्च मसाला लगाकर कितनी रोचक बन जाती है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बिलकुल सही सीख है।
खौलते खून पर काबू पा लेना हरेक के बूते की बात नहीं!
लेकिन कोशिश तो की जा सकती है ना?
आपके पिताजी की सीख केवल वाहन चलाने में नहीं, जीवन के कई पहलुओं में लाभप्रद है।
शास्त्री जी, आप की बात बिलकुल सही है, मेरे बच्चो ने जब लाईसेंस बनबाया तो मेने उन्हे यही बात कही थी, लेकिन हम यहां बहुत तेज चलाते है, क्योकि यहां का सिस्टम भारत से अलग है, ओर हाई वे पर पेदल या फ़िर छोटा वाहन आता भी नही जो करीब से १०० से कम रफ़तार पर चलता हो,
बहुत ही सुंदर शिक्षा, आप का धन्यवाद
बिल्कुल सही।
घुघूती बासूती
सर जी, आपकी बात से सोलह आने सहमत हूँ! रोज़ 32 किलोमीटर अपनी बाइक से नापता हूँ और लोगों को एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ में गलतियाँ करते देखता हूँ. महिलाओं के प्रति मैं पूर्वाग्रही नहीं हूँ लेकिन देखता हूँ कि महिलाएं भी स्टीरिंग पर बैठकर अनापशनाप ड्राइविंग करती हैं. इससे यह मिथक टूटता है कि महिलाएं बेहतर ड्राइविंग करती हैं.
मुझ जैसे धीमे चलानेवाले हंसी का पात्र बनते हैं. क्या ज़माना आ गया है!
बहुत सही सीख है वैसे तो हम पहले से ही इस पर अमल करते हैं लेकिन एक बार फिर गांठ बांध लेते हैं।
ऐसी सीख काश हर माता पिता अपने बच्चों को देते..
bahut hi sahi sikh hai….acha laga