कल के आलेख क्या व्यायाम मन में किया जा सकता है!! में मैं ने मानसिक सोच के असर के बारे में बताया था. इसके एक व्यावहारिक पहलू को ताऊजी ने अपनी टिप्पणी में बडे ही विस्तार से समझाया था जिसके लिए मैं उनका आभारी हूँ. जैसा उन्होंने बताया, तिब्बत के ठंडे वातावरण में भी गीला कपडा पहना साधक अपनी कल्पना के आधार पर कपडे को गरम पा सकता है.
लेकिन जैसा मैं ने पिछले आलेख में कहा था, अनियंत्रित मानसिक व्यायाम से नुक्सान ही नुक्सान है. उदाहरण के लिये, शून्य से नीचे की ठिठुरती ठंड में एक साधक अपनी मानसिक साधना के कारण पानी से तर कपडे को पहन कर कई घंटे अविचलित बैठा रह सकता है, लेकिन पानी और ठंड शरीर पर जो असर छोड जाता है वह उसे नहीं बदल सकता!!
मान कर चलिये कि इस प्रयोग से एकदम पहले उसे निमोनिया ने जकड लिया था. या शरीर में गठिया है. ऐसे में उसका मन भले कुछ भी सोचता रहे और चाहे उसे मानसिक तौर पर कितनी भी गर्मी महसूस हो लेकिन वास्तव में उसका शरीर ठंडा होता जा रहा है अत: उसका निमोनिया और गहरा हो जायगा और उसका गठिया और गंभीर हो जायगा. मानसिक व्यायाम उसे स्वस्थ नहीं रख पायगा.
शरीर और मन को अलग करने के द्वारा भावनात्मक स्तर पर बहुत कुछ किया जा सकता है. लेकिन चूंकि शरीर और मन एक इकाई है और चूँकि इस इकाई के भिन्न घटकों की रचना गहन तालमेल के साथ काम करने के लिये हुआ है, अत: जब विभिन्न घटकों को एक दूसरे से अलग कर दिया जाता है तो तालमेल के अभाव में कई प्रकार के नुक्सान होते हैं. इसके दो उदाहरण हैं ऊपर.
मानसिक व्यायाम का सबसे अधिक नुक्सान होता है दिवास्वप्न में और वासनात्म कल्पनाओं में लिप्त हो जाने पर. यह अपने आप में काफी बडा विषय है और इसे हम देखेंगे कल के आलेख में
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यानी कुल मिलाकर देखा जाय तो व्यायाम से दूर ही रहें।वैसे भी दूर थे एक उम्मीद जगाई थी आपने मन ही मन व्यायाम की सो उसमे भी लफ़्ड़ा है। चलो झंझट से दूर ही रहें।हा हा हा हा। शास्त्री जी अच्छी जानकारी दी आपने।बढिया पोस्ट्।
हां इस विषय मे एक बात बडी आवश्यक है कि किसी भी प्रकार के मानसिक व्यायाम किसी योग्य व्यक्ति की देख रेख मे ही किये जाने चाहिये. अन्यथा आपकी बात के अनुसार नुक्सान अव्श्यम्भावी है.
हमने तो बाबा महात्माओं के सानिंध्य मे ही यह क्रियाकलाप सीखे हैं.
रामराम.
अरे भैय्या ताऊ भी बड़े पहुंचे हुए हैं. हम अपनी सूक्ष्म और स्थूल काया को किसी भी प्रकार से हानि नहीं पहुँचाना चाहेंगे.
साधना और व्यायाम दोनों अनिवार्यतः एक नहीं हैं। अतः उनकी आपस में तुलना नहीं की जा सकती। जहां तक व्यायाम की बात है, प्रयास यदि शारीरिक और मानसिक दोनों स्तर पर किया जाये तो परिणाम ज्यादा प्रभावी हो सकता है। हां, इसमें योग्य गुरु का होना जरूरी है। जहां तक साधना की बात है वह नितांत वैयक्तिक है। हर साधना हर साधक नहीं कर सकता। पर यदि योग्य साधक गीले कपड़े को शरीर पर रखे तो उसके शरीर पर ठंड का असर नहीं होगा। ऐसे योगी हुये हैं जो सुबह के चार बजे घोर ठंड में भी नियमित रूप से नदियों में स्नान करते थे। उनके शरीर पर यदि ठंड का असर हुआ होता तो आज भारत में इन प्राच्य विद्द्याओं का नामलेवा भी नहीं बचता।
हूं, चिन्ता की बात है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
अब क्या करे …. चलिये इंतजार करते है आप की अगली पोस्ट का, वेसे मेने कभी भी अलग से कोई व्यायाम नही किया, कारण चार हडिया है, कोई टुट गई तो मेरे साईज की मिलनी भी मुशकिल है.
धन्यवाद
are gurujee aapne meri tippnni hata dee kya ..kuchh gadbad ho gayee kya..mera maksad to halke fulke haasya ke saath apnee baat kehne kaa tha.. shaayad aapko uchit nahin laga…chaliye bhaivishay mein dhyaan rakhungaa..lagtaa hai tippnniyaan karnaa hee chhodna padegaa….?
aashirwaad evam sneh banaaye rakhein…
i am not agree with you. there is synergy between the mind and body. but the boss is always the mind. i have read and see many people which done miracle because of the mind power. i do not know the sources but if you insist than i will let you know.
an experiment has been done on a group of patiences. half of the group goes through the actual treatment which is required a surgery on the bones of legs. and half of the people are taken into the operation room and but does not operated. but because of the cholorofoam they did not know the real truth. after the operation every one of the half of the group which is not operated by the surgeon has improve dramatically as the actual person who goes through the operation. and that is called the placoab effect. and he has write the book on it.
sanjay sharma, india
हाय,
काश हम भी मन में ही दौड पाते। सुबह ५ बजे उठकर ४ मिनट प्रति किमी की दर से १० किमी दौडने की जगह टहलते रहते और टांगे अपने आप उस रफ़्तार से दौडने के फ़ायदे ले लेतीं।
और भी अच्छा होता अगर बिस्तर में लेटे लेटे ही ये सब हो पाता 🙂
आप ने कल का सपना आज ही तोड़ दिया।
उलटबांसी- तन और मन दो अलग अस्तित्व हैं पर फिर भी एक हैं.
i never doubt that mind power can also increase the healing ability of the body.,,*