लोग तमाम तरह के जो शौक करते हैं उन में सिक्का-संग्रह एक ऐसा शौक है जिसमें आम के आम और गुठलियों के दाम वाली बात है. आप जितना पैसा इस पर खर्च करते हैं, दस साल बाद उससे कई गुना पैसा आप को वापस मिल सकता है.
भारतीय सिक्के एकत्रित करना किसी भी भारतीय के लिये कठिन नहीं है, न ही अधिक खर्चीला काम है. किसी भी समय कम से कम बीस तीस प्रकार के सिक्के तो हमेशा ही बाजार में चलते रहते हैं, और यदि आप टकसाल और ढलाई-साल के हिसाब से भी सिक्के एकत्रित करना शुरू कर दें तो सैकडों सिक्के आसानी से एकत्रित किये जा सकते हैं. कीमत भी सिर्फ सिक्कों की असली कीमत के बराबर होगी.
लेकिन इनको जरा दस साल के बाद किसी सिक्का-प्रदर्शनी में या सिक्का-शौकीन को बेचें तो कई गुना पैसे हाथ आ जायेंगे. उदाहरण के लिये, ढलाई-वर्ष, टकसाल, चित्र, आदि के वैविध्य के आधार पर आज एकत्रित किये 100 एक रुपये के सिक्कों की कीमत सिर्फ सौ रुपये है. लेकिन दस साल के बाद कोई भी व्यक्ति आप को 300 रुपये दे देगा. इससे अधिक मिलने की संभावना भी है.
इसके साथ साथ यदि आप पुराने भारतीय सिक्के भी जमा करना शुरू कर दें तो सोने में सुहागे वाली बात होगी. पुराने तांबे के सिक्के 25 रुपये से लेकर 200 रुपये तक के बिकते हैं. यदि आप सबसे सस्ते सिक्कों को जमा करें तो भी दस साल के बात उनकी कीमत कई गुने हो जायगी. यदि आप को इतिहास का शौक है तो भारतीय इतिहास एवं धरोहर को आगे बढाने का भी एक रास्ता हो जायगा.
उदाहरण के लिये, ग्वालियर के महाराज बाडे पर तमाम सारे कटेफटे नोट बदलने वाले बैठे रहते हैं. ये सब पुराने सिक्के बेचने का काम भी करते हैं. यदि आप के शहर में इस तरह के दुकानदार हों और यदि आप मोलभाव में दक्ष हों तो आप के हाथ काफी माल लग सकता है.
हां घर की पुरानी संदूकों, दादीमां के सुईधागे के डब्बों को भी टटोलना न भूलें.
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हमें याद है एक विश्व विद्यालय के कुलपति जी भी मुगल कालीन सिक्के खरीदते रहते थे. उन्होने अलग अलग टकसलों से जारी किए गये वर्षवार सिक्के संग्रहीत कर रखे थे. फिर मकान बनवाने के लिए उनका प्रयोग किया था.
सही कहा.. बचत की बचत.. और शौक का शौक.. एसे करते करते मैने भी २५०० सिक्के इक्क्ठे कर लिये है..
देखें कितने लोग प्रेरित होते हैं.
बहुत बढिया लगा, यह आलेख पढ़कर. मेरे पास भी कुछ हैं.
परमपुज्यनिय गुरुदेव!
प्रणाम!
साहब कलेक्शन तो पुरानी परम्परा है ही। इसमे भी वर्गीकरण हुआ है। अर्थ इसकी मुख्य वजह भी रही। हमलोग माचीस कि डिब्बियो का कलेकशन करते थे बच्चपन मे। कई मध्यमवर्गीय डाक टीकटो का सग्रह किया करते थे। अर्थ सम्पनता वाले सिक्को का या नोटो का सग्र्ह करते पाए गए। आपकी यह सलाह नेक लगती है की सग्रहीत सिक्को का दस वर्षमे सो का तीन सो रुपए जरुर मिलेगे। पर सर ! वैसे भी दस वर्ष मे रकम डब्ब्ल हो जाती है फिर व्यापार के लिए कोई सग्रह करे ? यह बात हजम नही हुई। वैसे आप मेरे से बडे है, मेरे आदरणीय है आपने सोचा होगा तो हम बच्चो के शुहनरे भविष्य को ख्याल मे रखकर ही ।
आभार/शुभकामनाऐ
हे प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई टाईगर
SELECTION & COLLECTION SELECTION & COLLECTION
सर, ब्लोग की सीमाओ की रक्षा के लिए क्या आपने भी मोर्डेशन प्रणाली को शुरु कर दिया है ?
आभार/शुभकामनाऐ
हे प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई टाईगर
SELECTION & COLLECTION SELECTION & COLLECTION SEL SELECTION & COLLECTION SEL
@हे प्रभु यह तेरापन्थ
सारथी पर प्रथम-अवसर माडरेशन है, जिसका मतलब है कि पहली बार कोई पोस्ट करता है तो उसका माडरेशन जरूरी है. लेकिन तकनीकी कारणों से कई बार साफ्टवेयर जबर्दस्ती किसी किसी टिप्पणी को अपने आप माडरेट कर देता है. आपकी टिप्प्णी के साथ ऐसा ही हुआ था.
तीन गुना तो मैं ने सिर्फ अनुमान से बताया था. असली संख्या 5 आधिक गुना है.
सस्नेह — शास्त्री
शौक़ तो वास्तव में फ़ायदेमन्द है.
अब से हर डिनॉमिनेशन के दो दो सिक्के धर लिया करुँगा-रिटायरमेन्ट के काम आयेंगे. 🙂
thankx to u sirji for replying,
& sorry to Disturb U
God-Bless u………..(:
Hey Prabhu Yeh Terapanth
Mumbai-Tiger
बहुत ज्ञानवर्धक पोस्ट शास्त्री जी। शुक्रिया ।
अच्छा लगा पढकर।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
BACHAT KE SAATH SAATH SHANK BHI POORA HOTA H AAPKA LEKH SARAHANIYA H