मेरी पसंद के चिट्ठे 011
मेरे बारे में आज विवेक सिंह ने अपनी टिप्पणी में एक खास बात कही तो लगा कि जवाब के साथ साथ उनके और उनके चिट्ठे की चर्चा कर दी जाय. विवेक ने एकदम उस कलम को ताड लिया जो मेरे दिल के निकट आसीन रहता है. (चित्र देखें).
जब मैं कक्षा 8 में था तब से मेरी आदत है कि एक कलम, किताब, एवं डायरी हर जगह मेरे साथ चलते हैं. कलम तो सोते समय भी वहीं रहता है और सिर्फ नहाते समय मेरे शरीर से अलग होता है. इस आदत का फल है कि आज मैं 70 से ऊपर पुस्तकें एवं 7000 से अधिक लेख लिख चुका हूँ. जब जहां लिखने की प्रेरणा मिलती है वहीं कलम डायरी पर चलना चालू हो जाता है.
अब एक नजर डालते हैं उस पारखी की ओर जिसे न तो मेरे विचित्र (रंगबिरंगे) कच्छे में कोई खास बात लगी न ही पहलवानों जैसे दो सस्पेंडरों में कोई खास बात लगीं. मतलब कि इस युवा की पैनी नजर काम की चीजों को पकड लेती है लेकिन अनावश्यक चीजों को गौण समझती है. विवेक की रचनाओं को पढने के बाद कुछ ऐसा ही चित्र मेरे मन में अपने युवा साथी के बारे में आया था.
विवेक का चिट्ठा कई कारणों से खास है. पहली बात तो यह है कि उनका अपने स्वयं द्वारा इस चिट्ठे पर लिखी बातों से सहमत होना जरूरी नहीं है. यह आज तक मेरी नजर में पडे डिस्क्लेमरओं में सबसे अनोखा है. उम्मीद है कि यह डिस्क्लेमर सिर्फ चिट्ठालोग तक ही सीमित है.
विवेक चिट्ठे कम लिखते हैं, पढते अधिक हैं, और टिपियाते उससे भी अधिक है. यदि हम सब इसका अनुकरण करने लगें तो नये चिट्ठाकारों को प्रोत्साहन की कोई कम न होगी और चिट्ठाजगत आज से दस गुना तेजी से विकसित होने लगेगा.
विवेक के स्वप्नलोक में विभिन्न विधायें दिखती हैं, और विधा के हिसाब से आलेख की भाषा और शैली में भी वैविध्य दिखता है. काश हम सब इसी तरह से वैविध्य भरे सपने देख सकते तो जीवन कुछ और भरापूरा हो जाता. उनके चिट्ठे की पहेली का हल सुझाने की कोशिश मैं ने नहीं की क्योंकि सरेआम मझे अपने अज्ञान को प्रगट करने की जरूरत नहीं है.
विवेक एक अच्छे चर्चाकार भी हैं और चिट्ठाचर्चा पर यदाकदा चर्चा देते रहते हैं. उम्मीद है कि वे अपने चिट्ठे पर और चिट्ठाचर्चा पर कुछ और सक्रिय हो जायेंगे. लगे रहो विवेक, अभी काफी ऊर्जा बची है!!
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विवेक चिट्ठा लिखने से अधिक पढ़ने और उसकी चर्चा करने में प्रगति की मंजिल तक गतिशील हैं। उनकी इस अदा पर कोई क्यों न मर मिटे, और पैनी नजर के तो शास्त्री जी ही क्या, मैं भी कायल हो गया हूं इस कायलता को घायलता भी समझ सकते हैं।
शास्त्री जी पैनी निगाहे तो आपकी भी है जभी तो भीड़ मे हीरा खोज निकाला।
अपने चिट्ठे का नाम तो उन्होने स्वप्नलोक रखा है .. पर हकीकत में सपने नहीं देखते .. यथार्थ पर पैनी नजर रहती है .. उन्हें बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं !!
अपने नाम को सार्थक बना रखा है. उन्हें हमारी शुभकामनायें.
भतिजा काफ़ी होनहार है. नजर आ ही रहा है. बहुत आगे जायेगा.
रामराम.
विवेक का ’विट’ जबरदस्त है। झकास!
वाकई में आपने भी खूब चुना है.
विवेक की विवेकता पुर्ण ब्लोगिगता के लिए एक प्यार की झपी!!!!!!
गुरुजी! आपभी हिन्दी ब्लोग जगत के स्टार बन गऐ है। आप छीकते है तो खबर बनती है, यहा
अब यहॉ पर क्या चला कलम या किस्मत ?
पत्ता नही ?
Agreed
आपके विचारों से पूर्ण सहमति
सही कहा विवेक जी के बारे में.. बहुत शानदार व्यक्तित्व..
आपने विवेक जी के बारे में बिल्कुल सही कहा!!
हम भी आपके विचारों से पूर्णत: सहमत हैं!!
विवेकजी को शुभकामनायें …!!
एक बहुत संवेदनशील लेखक हैं विवेक सिंह ! मेरी शुभकामनायें !
नवोदित लेखकों में विवेक सिंह निस्संदेह प्रतिभावान और बेहद संवेदनशील व्यक्ति हैं , इनकी मस्त और बेवाक शैली की ब्लाग जगत में बेहद जरूरत है !शुभकामनायें !
विवेक के बारे में आपने सही लिखा वाकई वे भीड़ में हीरे है ! देशी भाषा में कहो तो गुदडी के लाल ! उनका लिखा हमेशा बहुत अच्छा लगता है |