देश को बर्बाद करती शालेय शिक्षा !!

image मेरे कल के आलेख बर्बादी के लिये एक और रास्ता ?? पर मैं ने बताया था कि दसवी की बोर्ड की परीक्षा समाप्त करके उसे निजी परीक्षा बनाने की साजिश चल रही है. इस मामले में दो मित्रों की टिप्पणी हम सब को सोचने के लिये मजबूर करती है:

(अनुनाद सिंह) परीक्षा को ही हटा देना किसी तरह से तर्कसंगत नहीं है। क्या हम बिना कड़ी परीक्षा के सही लोगों को रोजगार दे पायेंगे। यदि नहीं तो परीक्षा से छुटकारा कैसे मिल सकता है।  वस्तुत: परीक्षा-प्रणाली में परिवर्तन होना चाहिये; उसमें नये-नये प्रयोग किये जाने चाहिये । इन सब प्रयोगों का लक्ष्य होना चाहिये कि वास्तविक मेधा की पहचान हो; रट्टा मारने की प्रवृत्ति पर लगाम लगे; बच्चे रचनाशील (क्रिएटिव) और उद्यमी बने; बच्चे सूचना की जानकारी रखना, उसे सम्यक रूप से सजाना, और उसका सार्थक उपयोग करके मानवमात्र का विकास करना सीखें।

(सुरेश चिपलूनकर) अनुनाद से सहमत, पहले दसवीं में आते-आते बच्चा दो बोर्ड परीक्षा देकर अच्छी तरह पक चुका होता था और आराम से पास होता था… अब दसवीं तक कचरा आता जाता है, शिक्षकों पर भी पास करने का दबाव होता है… पास करते जाते हैं। दसवीं तक आते-आते “ढ” से ढक्कन बच्चे भी वहाँ तक पहुँच जाते हैं…। अब पास करने के लिये एक नई ट्रिक खोजी गई है वह है पूरे प्रश्नपत्र में 30% प्रश्न वस्तुनिष्ठ आयेंगे (ये तो सबको पता ही है कि ऐसे वस्तुनिष्ठ प्रश्नों में नकलपट्टी करना/करवाना कितना आसान होता है) ऐसे में आगे भविष्य में वे कैसे प्रतियोगिता का सामना करेंगे… लेकिन सरकारों के आँकड़ों में संख्या अवश्य बढ़ जायेगी कि “फ़लाँ प्रदेश के इतने प्रतिशत बच्चे 10 वीं से आगे तक पढ़े…”, भले ही वे कितने भी गधे हों…

शालेय शिक्षण की इसके अलावा भी कई समस्यायें है. उदाहरण के लिये, अंग्रेजी जरूरी है लेकिन अंग्रेजी माध्यम के अधिकतर विद्यालय जहां एक हाथ से अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा देते हैं वहीं एक दक्ष ओझा के समान वे  दूसरे हाथ से बच्चों के मन से भारतीयता को “झाड” कर दूर कर रहे हैं.

उदाहरण के लिये, अधिकतर अंग्रेजी माध्यम विद्यालयों में कंठलंगोट पहना अनिवार्य होता है. बात बहुत छोटी सी है लेकिन इस विदेशी प्रतीक को शैशव काल से बच्चों के शरीर और  मनों पर थोपने के द्वारा वे एक दूरगामी कार्य कर रहे हैं — बच्चों के मन में भारतीय वस्त्र को हेय और अंग्रेज के वस्त्र को उन्नत समझने की प्रवृत्ति पैदा की जा रही है. आप खुद सोचिये कि आज युवा पीढी गले में इस अंग्रेजी लंगोट को पहनने वालों को को परिष्कृत समझती है जब कि धोती पहने वालों को अपढ और असभ्य समझती है.

यदि आप को लगता है कि अंग्रेजी माध्यम विद्यालय सिर्फ देश का भला कर रहे हैं तो जरा वहां से दसवीं पास बच्चों से देशप्रेम संबंधित कुछ प्रश्न पूछ कर देखें. या जरा जांच कर देखें कि वे किसी भारतीय भाषा में दक्ष हैं क्या — आपकी झक्की खुल जायगी. बात स्पष्ट है,  इन विध्यालयों की संस्कृति का भारतीयकरण होना बहुत जरूरी है.

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Author: Super_Admin

8 thoughts on “देश को बर्बाद करती शालेय शिक्षा !!

  1. शास्त्रीजी, आपका यह पूरा विश्लेषण एक-पक्षीय रहा है, जिसकी वजह से ही आपको दसवीं से परीक्षा हटा देने अखर रहा है। आपने परिक्षाओं को केवल नौकरियों से जोड़कर देखा है, और माना है कि केवल काबिल बच्चों को ही पास होना चाहिए, और काबिल का आपने यह अर्थ ले लिया है कि जिन्हें संस्थाओं में नौकरी दी जा सके।

    परंतु शिक्षण का कहीं अधिक व्यापक माने होता है। उसका अपने आप में भी महत्व है, भले ही उसके कारण नौकरी मिले या न मिले। हर बच्चों को यह अधिकार है कि वह शिक्षण प्राप्त करे। शिक्षण में कुछ उपयोगी कुशलताएं अर्जित करना शामिल हैं, जैसे, लिखना-पढ़ना, गणित-ज्ञान, कंप्यूटर-ज्ञान, आदि। पर यही सब-कछ नहीं है। शिक्षण हमें संस्कृति, संस्कार, नीति-अनीति, साहित्य, कला, आदि का परिचय भी कराता है और हमारे व्यक्तित्व को भी गढ़ता है। इन दूसरे प्रकार की चीजों का भी उतना ही महत्व है, जितना पहले प्रकार की चीजों का। दूसरी प्रकार की चीजों को परिक्षाओं के माध्यम से मापा नहीं जा सकता है। इसीलिए परीक्षाएं, कम से कम उनके लिए निरर्थक हैं।

    तो मेरा कहना है कि इस विषय पर इस पहलू से सोचकर भी अपना बहुमूल्य मंतव्य दें।

  2. परीक्षा का अपना महत्व है. परीक्षा को खत्म नहीं किया जा सकता, यह बात अलग है कि उसका स्वरूप बदल जा सकता है.

  3. 10 वीं की परीक्षा को सरल बनाना या बोर्ड हटाना, छात्रों का तनाव कम करने के लिए | मुझे लगता है, इससे ज्यादा बचकानी बात हो ही नहीं सकती और हमारे गोबर गणेश नेताओं से ऐसी योजनाओं की ही उम्मीद की जा सकती है | यदि इसी बात को हम यूँ कहें की कोई मेडिकल स्टुडेंट परीक्षा कठिन होने के कारण M.B.B.S. नहीं कर पा रहा है इसलिए परीक्षा को थोडा सरल बना दो तो क्या आप लोग ऐसे कानून का समर्थन करेंगे ? अगर कोई डॉक्टर नहीं बन पा रहा है तो ये उसके बस की बात नहीं है उसको छोड़ देना चाहिए और वो करना चाहिए जो उसके बस का है, इसका मतलब ये थोड़े ही होगा की हम परीक्षा को सरल बनाते हुए ये धौंस दें की देखो हम हर साल कितने डॉक्टर बना रहे है | क्यों नहीं उन नेताओं के प्लेन चलाने वाले पायलेटों की परीक्षा को भी सरल बना दें ताकि वो आराम से पायलेट बनें और उनके प्लेन चलायें तो कम से कम कुछ नेतागण तो कम हों !
    इसके लिए परीक्षा को सरल नहीं बनाया जाता है, जरुरत है बच्चों को सिखाने के तरीकों को सुधरने की, अगर बच्चों को कुछ समझ में नहीं आ रहा है, तो इसका मतलब या तो उसकी रूचि नहीं या तरीके में कोई खामी है | अगर उसकी रूचि नहीं है तो उसको वो चीज़ सिखाए जाये जिसमे उसकी रूचि है, अगर तरीके में कमी है तो तरीका बदलना चाहिए | हमारा उदेश्य पास करना है या बच्चों को शिक्षित करना ? निश्चित ही शिक्षित करने का उद्देश्य होना चाहिए |

  4. पहले बुश और फ़िर बाद में ओसामा अपने देश में बच्चों से कहते हुए पाये गये हैं कि पढ़ो वरना सारी नौकरियाँ भारतीय बच्चे ले जायेंगे. हो भी यही रहा है. जहाँ भी अवसर मिल रहा है सबको पछाड़कर भारतीय अपनी जगह बना रहे हैं. ऐसे में कुछ कुतर्कों का सहारा लेकर शिक्षा के मूल ढांचे से छेड़खानी उचित नहीं लगती.

    दसवीं बोर्ड हटाना महामूर्खतापूर्ण कदम होगा.

  5. पहली बात तो शिक्षा आज रही ही कहाँ है?सब बस बच्चों को एक डिग्री के लिए स्कूल भेज रहें है!दूसरी बात इन स्कूल से ज्यादा गलती हमारी है जो हम इन्हें बढावा देते है!सोसायटी में वही माँ बाप ज्यादा बड़े है जिनके बच्चे इंग्लिश मीडियम में पढ़ रहे है….ये एक भावना बन गयी है!जब हम फीस देते है तो स्कूल गणवेश,संस्कार,माध्यम आदि पर दवाब भी दाल सकते है,पर शायाद अन्दर ही अन्दर ये सोचते है की कहीं हमारा बच्चा पीछे न रह जाये!जबकि दूरस्थ गाँवों में पढने वाले हिंदी माध्यम के बच्चे भी आज हर जगह सफल हो रहे है..!हमें अपनी मानसिकता बदलनी होगी,फिर ये स्कूल भी बदलेंगे और हमारे बच्चे भी….

  6. Shastriji, Eductional System has become professional, Peoples are running behind the Private Schools and we are expecting good education. Please don’t think this in dreams.I praise the comments by Shri Yogendra Singh Ji Shekhawat. Can country will permit . Ofcourse No.!!!!!!

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