ईसाईयों का “भाईचारा-संप्रदाय”

मेरे आलेख सारथी अब वापस लीक पर!!  और अन्तर सोहिल का प्रश्न!! में मैं ने इशारा किया था कि केरल के 2000 साल पुराने ईसाई समाज में एक से अधिक संप्रदाय हैं. मैं इन में से भाईचारा-संप्रदाय या सहोदर-सभा (Brethren) का सदस्य हूँ जो लगभग 120 साल पुराने एक नवीकरण का फल है. इसके बारें में दिनेश जी ने कल टिपियाया:

हम जानना चाहेंगे आप के इस खास समुदाय की व्युत्पत्ति और उस के इतिहास के बारे में। आप ने जिज्ञासा बहुत बढ़ा दी है। जो एक सफल लेखक होने की निशानी है। (दिनेशराय द्विवेदी)

लीजिये उत्तर हाजिर है. प्रभु ईसा के 12 शिष्यों में से संत थोमा नाम व्यक्ति ईसा के संदेश के साथ केरल के कोडुंगल्लूर में ईस्वी 40 के आसपास पहुंचे थे. तब से केरल में ईसा के अनुयाई रहते आये हैं. कालांतर में यह समाज दो भागों में बंट गया. एक शत प्रतिशत भारतीयता का पक्षधर था तो एक देश के बाहर के ईसाईयों के अनुरूप जीने का पक्षधर था. पहले समूह की आराधना-प्रार्थना-प्रवचन स्थानीय भाषा में होती है. दूसरे समूह के प्रार्थना-मंत्रोच्चारण सामान्यतया अरामिक भाषा में होती है जो ईसा और उनके 12 शिष्यों की भाषा थी.

1700 से 1800 ईस्वी के बीच केरल का ईसाई समुदाय इतना फल फूल गया था कि उनके बीच हर तरह की कुरीतियां और कर्मकांडों की गुलामी बुरी तरह से फैल गई थी. पुरोहित-पादरियों के बिना सांस लेना भी मुश्किल हो गया था, जबकि बाईबिल में इन बातों की कडी मनाही है. 1850 के आसपास केरल के ईसाई समूह के कई प्रभावशाली लोगों, चिंतकों आदि को लगा कि वापस बाईबिल की सादगी की ओर लौटना जरूरी है. उनके सतत प्रयत्न के कारण चार या पांच नवीकरण हुए, जिन में से एक है भाईचारा-संप्रदाय (ब्रदर्स, ब्रद्रन). इस संप्रदाय के लोगों के आपसी भाईचारे को देख कर लोगों ने उनको यह नाम दिया था जो अब एक औपचारिक नाम बन चुका है.

इन लोगों ने विशिष्ट शैली के गिर्जाघरों को तिलांजली देकर सामान्य हाल या आडिटोरियमों में प्रार्थनासमाज के लिये एकत्रित होना शुरू कर दिया. साकार के बदले  सगुण एवं निराकार ईश्वर की आराधना पर जोर दिया. हर तरह की मूर्तिपूजा का निषेध कर दिया और लोगों से साकार ईश्वर से सीधे प्रार्थना करने को कहा गया. यहां तक कि इनके प्रार्थनालयों में सूली का प्रदर्शन भी मना कर दिया गया जिससे कहीं निराकार ईश्वर के बदले लोग सूली की ही आराधना न शुरू कर दें.  विशिष्ट वस्त्रधारी पुजारी-पादरियों को भी निषेधित कर दिया और हर तरह के धार्मिक कार्य को समाज के वरिष्ट या आत्मिक समझे जाने वाले लोगों को सौंप दिया गया.

समाज की आत्मिक नैतिक सुरक्षा के लिये उनकी समझ के अनुसार कई बातों को वर्जित कर दिया गया.

Earring धूम्रपान, मद्यपान, विवाह विच्छेद, आडंबर आदि पर कडी पाबंदी लगा दी गई. आडंबर पर पाबंदी के एक घटक के रूप में स्त्रियों के लिये आभूषण वर्जित कर दिया गया. इसके पीछे एक खास कारण था: केरल के ईसाई समाज में स्त्रियों का सारा शरीर सोने से भरा रहता था.

चित्र में इस ईसाई महिला के कानों में  असली सोने के कुंडल हैं एवं  चित्र दो साल पहले लिया गया था. नवीकरण के जमाने में (1850 ईस्वी में)  इस तरह के कम से कम चार से छ: कुंडल एक कान में होना जरूरी था. इनके वजन से कान खिच कर कंधे तक पहुंच जाते थे और उसे सौंदर्य की निशानी समझा जाता था. उच्चमध्यमवर्गीय ईसाई औरतें एक से दो किलो शुद्ध सोने के आभूषण सारे देह पर पहनती थी. (केरल अभी भी इस मामले में  सुरक्षित है और हर और सोने के आभूषण पहनी हर धर्म की स्त्रियां दिख जायेंगी). संयुक्त परिवार हर ओर थे, और इन आभूषणों के पीछे झिकझिक हर जगह होती थी, अत: झगडे को जड से हटाने के लिये यह किया गया.

इन एकसौबीस सालों में यह समाज काफी बदल चुका है, लेकिन पुरोहित-पादरियों से मुक्ति, सामान्य हाल/आडिटोरियम में प्रार्थना, मूर्तिपूजा की वर्जना, आदि अभी भी जारी है. धूम्रपान, मद्यपान, विवाह विच्छेद, आदि किसी भी व्यक्ति के विरुद्ध कडी सामाजिक कार्यवाही के लिये पर्याप्त अपराध हैं, एवं ऐसा करने वालों के परिवारों के साथ विवाहसंबंध के लिये लोग आसानी से नहीं मिल पाते.

कुल मिलाकार सगुण और निराकार ईश्वर की आराधना करने वाला, रूढियों एवं कर्मकांडों से काफी हद तक मुक्त, एक समाज है सहोदर-सभा या ब्रेदरेन सभा. आज इसके लगभग 3000 हजार गिर्जे हिन्दुस्तान में हैं. इससे मिलतेजुलते नवीकरण आंदोलनों के गिर्जों की संख्या 100,000 से ऊपर है.

  • sanjay vyas आपने पिछली पोस्ट में अपने समुदाय को 2000 साल से भी पुराना बताया था, इस तरह ये विश्व के कुछ चुनिन्दा प्राचीनतम ईसाई समुदायों में शुमार होता होगा.केथलिक्स से भी पुराना. तो क्या हम सीरियन क्रिश्चियन के बारे में पढ़ रहें हैं? सच में जानने की जिज्ञासा है. साभार.
  • प्रिय संजय, यदि मैं ने 2000 से भी पुराना बताया हो तो वह गलत था. केरल का ईसाई समाज 2000 साल के “करीब”  पुराना है.  इस कारण केरल का ईसाई समाज दुनियां के प्राचीनतम ईसाई समाजों में से एक है. सिरिया देश से कुछ ईसाई इस दौरान आकर केरल बस गये थे इस कारण सिरियन क्रिस्टियन नाम भी प्रचलित है. ऊपर के चित्र में एक सिरियन क्रिस्टियन दादीमां का चित्र है.

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    Author: Super_Admin

    9 thoughts on “ईसाईयों का “भाईचारा-संप्रदाय”

    1. बहुत अच्छी और प्रेरक जानकारी। धर्म एक तरह से जीवन पद्धति ही हैं। इस में समय समय पर सुधार जरूरी हैं। वैसे ही जैसे सोलह घंटे विभिन्न मुद्राओं जिन में अक्सर पैर नीचे और सिर ऊपर धरती के गुरुत्वाकर्षण केंद्र से विपरीत होता है, काम करने के बाद सिर से पैर तक पूरे शरीर को धरती के गुरुत्वाकर्षण के समानांतर ला कर आठ घंटे का विश्राम जरूरी है।

    2. हार्दिक आभार व्यक्त करता हूं
      आपके समाज “भाईचारा-संप्रदाय” के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा
      अच्छा जीवन जीने की कला सिखाने के लिये कुछ नियमों में कठोरता आवश्यक है

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    3. भाईचारा-संप्रदाय के बारे मे जान कर अच्छा लगा।
      आभार।

    4. शस्त्री जी लेकिन युरोप मै तो पहले आम आदमी को बाईबिल पढना मना था, कारण साफ़ है, लेकिन क्या भारत मै सब पढ सकते थे अपनी बाईबिल ?
      आप का लेख बहुत अच्छा लगा.
      धन्यवाद

    5. hi sir ,
      in these days of blogging , i learned about all religions and communities on the blogger world , but no one seems interested in humanity religion , i would like to know why , as you are so gentlemen ,as i read lot of ur previous blogs .

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