कुछ हफ्तों से चिट्ठे पढ नहीं पाया था (मेरे पिताजी के लिये घर-अस्पताल-घर चक्कर के कारण). लेकिन आज तसल्ली से बैठ कर चिट्ठों पर नजर डालने लगा तो महावीर बी सेमलानी का एक आलेख नजर आया जिसमें उन्होंने चिट्ठाजगत में पिछले दिनों जो कलुषित वातावरण पैदा हुआ था उस पर दु:ख प्रगट किया है. मैं महावीर के आलेख का अनुमोदन करना चाहता हूँ.
इसके साथ हम को एक बात मन में रखनी होगी कि हम में से हरेक कुछ हद तक इस अराजकत्व के लिये दोषी हैं. जब हम सडक पर मैला पडा देखते हैं तो बच कर निकल जाते हैं. लेकिन चिट्ठाजगत में कोई कुछ अनावश्यक लिखता है तो उसके समर्थन के लिये या टिप्पणी करने के लिये बहुतेरे लोग पहुंच जाते हैं. पक्ष और विपक्ष हो जाता है और लेखक की इच्छा पूरी हो जाती है कि उसका चिट्ठा किसी तरह हिट हो जाये.
पांच हजार चिट्ठों में पचास से अधिक नहीं है जो गंदगी फैला रहे हैं. उन में भी मुश्किल से पांच है जो लिखनाकरना कुछ नहीं चाहते (क्योंकि उनके पास देने के लिय कुछ नहीं है) लेकिन वे चिट्ठाजगत की नस नस पहचानते हैं. एक दक्ष ओझा के समान वे किसी एक “ग्राहक” को पकड कर चुपके से उसकी कोई नस दबा देते हैं. जैसे ही वह आह करता है वैसे ही ओझा को “काम” मिल जाता है.
यदि चिट्ठाकार मित्र इन पांच लोगों को पहचान लें तो चिट्ठाजगत में शांति हो सकती है. इसके लिये जरा निम्न प्रश्नों का उत्तर ढूँढे:
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वे चिट्ठाकार कौन से हैं जिन के कारण पिछले 3 साल सब से अधिक तूतूमैंमैं हुई है?
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वे चिट्ठाकार कौन हैं जिन्होंने पिछले 3 सालों में कम से कम 10 वरिष्ठ एवं आदरणीय चिट्ठाकारों पर आरोपप्रत्यारोप लगाया है या उनके साथ तूतूमैंमैं की है?
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वे चिट्ठाकार कौन से हैं जिनका अधिकतर समय, और जिनके अधिकतर लेख, दूसरों की गलती और मीनमेख निकालने में जाता है.
सडक पर पडे मैले को दूर से ही पहचान लें तो पैर गंदा नहीं होगा. उसी प्रकार चिट्ठाजगत में जो लोग अशांति और वैमनस्य पैदा करते हैं उन पांच छ: जमूरों को हम सब पहचान लें तो तो अशांति की स्थिति इतनी अधिक नहीं होगी. इन लोगों को पहचान कर इनके चिट्ठों को पढना बंद करें क्योंकि गंदी चीज को घर लाना मूर्खता है. इन चिट्ठों के अनुयाइयों के चिट्ठों को भी पढना बंद करें क्योंकि जो गंदगी का अनुयाई है वह शुचित्व का विरोधी है.
आईये चिट्ठाकारों को नंगा करने की कोशिश करने वाले चिट्ठाकारों को पहचान कर उनसे दूर रहें. जो पहले से कपडे उतार चुका है उसको उपदेश की नहीं बहिष्कार की जरूरत है.
सत्य वचन…
शास्त्री जी बताइए सफ़ाई कहां से शुरू करें…
जय हिंद…
सहमत |
पहचान हो गयी है अब आगे की कार्यवाही जारी है |
बात बिल्कुल पते की है, अभी हम इंदौर ताऊ से मिलने गये थे तब भी उनसे इस बारे में चर्चा हुई थी कि ऐसे लोगों से दूर ही रहो और उनको अपने से दूर रखो।
टी आर पी के खेल पर बेहतर दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है …!!
शास्त्री जी परेशानी की कौनो बात नहीं है -अब यह लुप्तप्राय प्रजाति है !
मगर, मेरा मानना है कि चिट्ठाजगत् के ये कुंठासुर बने रहेंगे और इनकी संख्या में इजाफ़ा ही होता रहेगा.
हाँ, आने वाले समय में जब पर्याप्त संख्या में – लाखों की तादाद में – चिट्ठे हो जाएंगे, तब ये शायद अप्रासंगिक हो जाएंगे क्योंकि फिर इनकी ओर किसी की निगाह शायद ही पड़े.
सहमत |
पहचान हो गयी है अब आगे की कार्यवाही जारी है |
बिलकुल ठीक बात उठाई, आपने…
nice
बढ़िया लिखा है आपने, इस प्रकार की गन्दगी को दूर करना बेहद आवश्यक है ! शुभकामनायें शास्त्री जी !
हम आपसे सहमत हैं
उपरोक्त तीन प्रश्नों का ज़िम्मेदार मैं नहीं हूं जी:)
आप से पूरी तरह सहमत।
पूरी तरह सहमत।
आदरणीय शास्त्रीजी!
आपने मेरे चिठ्ठे का हवाला देकर मेरी बातो का समर्थन किया मै आपका आभारी हू. कभी कभी मन मे आता है कहा फ़स गया, भाग जाने की ईच्छा प्रबल होती है किन्तु आपश्री, ताऊश्री, समीरजी, फ़ुरसतियाजी, पाण्डेजी, अरविन्दजी मिश्रा, दिनेश्जी द्धिएदीजी, भाटीयाजी, अल्पनाजी, लवलीजी, सगीताजी, चच्चा टीप्पुजी, PN Subramanianजी,आदि जेष्ठ ब्लोगरो को देख यहा लिखना एवम रहना प्रतिकुल लगता है. मुझे यह समझ नही आता है की सही प्रणाली से ब्लोगिग क्यो नही की जा सकती.
मनो मे कडवाहट पैदा होती है…इसके कारण को खोजने की जरुरत है. हिन्दी चिठ्ठा जगत मे ग्रुपीजम जो बन गऎ है वह समस्या पैदा करते है. जैसे फ़ला ब्लोगर शास्त्रीजी के खेमेका है……और फ़ला……….?
जब तक भाषा एवम शब्दो मे दोहरापन खत्म नही होगा तब तक यह समस्या समाप्त नही होगी. गुटबन्दी ने हिन्दी ब्लोगजगत के सारे समीकरणॊ को बदल के रख दिया है.
विशेष आपके पिताश्री के स्वास्थय के मगलकामनाऎ करता हू.
हे प्रभू यह तेरापन्थ surat
यह सही है कि वैचारिक आधार पर समूह बनते हैं। लेकिन विचार प्रधान लोगों के बीच और समूहों के बीच सभ्यता की सीमा में बहस होती है। अंतर्क्रिया होती है। यदि यह अंतर्क्रिया न हो तो विमर्श का कोई अर्थ नहीं होता। यही कारण है कि घोर से घोर विरोधी विचार वाले से भी विचार विमर्श जारी रहना चाहिए और सीखने-सिखाने की प्रक्रिया जारी रहनी चाहिए।
यदि लोगों की समाज और जनता से प्रतिबद्धता सच्ची है तो एक दिन विरोधी एक रास्ते पर नजर आते हैं। लेकिन कोई यदि केवल वैयक्तिक महत्वाकांक्षाओं के लिए काम कर रहा है तो उस का अलग थलग होना भी निश्चित है। सब से अंत में एक बात और ….
पापी को मारने को पाप महाबली है। किसी को कुछ करने की जरूरत नहीं सब अपने अपने अपने काम को करते रहें।
सत्य वचन,शास्त्री जी।
जैसे करम करेगा, वैसा फल देगा भगवान, यह है गीता का ज्ञान।
पिता जी कैसे हैं, उन तक हम सब की शुभकामनायें ज़रूर पहुचायें।
विचारशून्यता के इस समय में विचार का होना जितना आवश्यक है ,विचारों की टकराहट भी उतनी ही स्वाभाविक है। विचार के निहितार्थ भी पहचाने जाते हैं । यह दुर्भाग्य जनक है की विचारहीनता की स्थिति में भी विवाद हो । इस तरह की स्थितियों से बचना चाहिये । ब्लॉगजगत में अगर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है तो ग्रहण करने के अधिकार भी हैं लेकिन इन दोनो स्थितियों में पूर्वाग्रह से बचना आवश्यक है। पूर्वाग्रह युक्त विचारों के अलावा परपीड़ा की प्रवृत्ति भी खतरनाक है। इससे आनन्द तो मिलता है लेकिन वह फलदायी नहीं होता । विचार को सम्प्रेषित करने के लिये रचना ही एकमात्र मापदंड है और वह किसी भी विधा के अंतर्गत हो सकती है । इसके अभाव में ही इस तरह की स्थितियाँ जन्म लेती हैं ।
द्विवेदी जी हमारे वरिष्ठ है ,उनकी नेक सलाह पर अवश्य ध्यान दें ।
मेरी भी शुरू से ही यही राय है कि ऐसे चिट्ठों का बहिष्कार ही किया जाय |जब कोई पढने ही नहीं जायेगा तो वे अपने आप उकताकर शांत हो जायेंगे और हम जब तक उन्हें पढ़कर विरोध जताते रहेंगे वे उकसाने के लिए कुछ न कुछ उल्टा सीधा लिखते ही रहेंगे |
एकदम सही व संतुलित विश्लेषण किया है आपने.
इस पहल की बहुत आवश्यकता थी.
हम आपसे सहमत हैं.
आप से पूरी तरह सहमत।
दंगई लोगों की धड़-पकड़ !
jo sachbat kehne se darta he vo gunga shetan he.
arshadali khan
email-khanarshadalikhan@yahoo.com