एक झूठ जिसे हर कोई सच मानता है!!

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चित्र: केरल के राजाओं का सोने का एक सिक्का

मेरे पिछले आलेख सोने की चिडिया भारत: सच या गप? में मैं ने प्राचीन भारतीय सिक्कों के आधार पर यह प्रस्ताव रखा था कि  भारत एक समृद्ध देश था जिस कारण लगभग 3000 साल तक यह विदेशी व्यापारियों को आकर्षित करता रहा. मैं ने यह भी कहा था कि लोग इसे लगभग 1200 साल लूटते रहे जो इस बात को याद दिलाता है कि हिन्दुस्तान कितना समृद्ध था.

मेरे कई मित्रों ने समृद्धि की बात को स्वीकार किया लेकिन उसके साथ यह बात जोड दिया कि प्राचीन भारत में  थोडे से लोग समृद्ध थे, बाकी सब कंगाल थे. इस प्रस्ताव ने मुझे इतना झकझोर दिया कि पिछले दिनों सारा समय भारत के इतिहास को पढने में लगाया.

चूँकि मेरा मूल आलेख केरल के सोने के सिक्कों के बारे में था, अत: मैं ने केरल के इतिहास को काफी विस्तार से पढा. मैं सारथी के सब मित्रों का आभारी हूँ कि जिस काम को मैं कुछ महीनों से टालता आ रहा था उसे तुरंत करने के लिये उनका प्रोत्साहन मिला.

प्राचीन भारत के इतिहास को वस्तुनिष्ठ तरीके से पढें तो एकदम यह स्पष्ट हो जाता है यह देश धनधान्य से, खेतीबाडी से, खनिज पदार्थों द्वारा, एवं नदीनालों की संपदा (सोना, बहुमूल्य पत्थर आदि) से भरपूर था. धनीगरीब का अंतर जरूर था, लेकिन गरीब से गरीब व्यक्ति के पास भी खेतीबाडी और पेशेवर काम इतना रहता था कि आज जो “विषमता” दिखती है इतनी विषमता नहीं थी.

दर असल देश के गरीब किसी जमाने में आज के समान गरीब नहीं थे. उनको खेतीबाडी, पेशेवर धंधों, एवं जगल-खनिज-नदीनालों द्वारा रोजीरोटी की उपलब्धि इतनी अधिक थी कि गरीब व्यक्ति के पास परिवार को पालनेपोसने के लिये लगभग वह सब कुछ था जिसकी जरूरत थी. जनसंख्या कम थी, रोजीरोटी के संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे.

आज जो आर्थिक विषमता दिखती है इसका मूल कारण विदेशी लुटेरों के द्वारा पिछले 300 सालों में  की गई लूट एवं उसके कारण उत्पन्न विषम परिस्थितियां हैं. भारत वाकई में सोने की चिडिया थी, एवं आज जो आर्थिक विषमता हम देखते हैं यह एक प्राचीन नहीं बल्कि अर्वाचीन स्थिति है जिसका मूल कारण यूरोपियन साम्राज्यवादियों द्वारा की गई लूटखसोट एवं सामाजिक परिवर्तन है. इसे हम अगले आलेख में विस्तार से देखेंगे.

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Author: Super_Admin

13 thoughts on “एक झूठ जिसे हर कोई सच मानता है!!

  1. शत प्रतिशत सहमत हूं आपसे .. प्राचीन भारत में हर स्‍तर के लोगों का तथा हर प्रकार के काम का महत्‍व था .. और उसे अपने घर परिवार के पालन पोषण में कोई बाधा नहीं आती थी .. हर क्षेत्र में कला का इतना विकास हुआ था .. उसके पीछे बडे बडे राजा महाराजाओं और व्‍यपारियों का हाथ नहीं .. बिल्‍कुल सामान्‍य लोगों का हाथ था .. किसी प्रकार के दबाबपूर्ण वातावरण में मजदूरी तो संभव है .. पर कला का विकास नामुमकिन है .. आज पाश्‍चात्‍य देशों की भौतिक चकाचौंध से हमारी आंखे ही नहीं .. सोचने समझने की शक्ति भी समाप्‍त है .. हम इतना भी नहीं सोंच पाते कि .. यदि प्राचीन भारतीय मजदूरों के सम्‍मुख आज के गरीबों की तरह इतनी चुनौतियां होती .. तो क्‍या वे हर क्षेत्र में इतनी बेहतरीन कला का प्रदर्शन कर सकते थे ??

  2. मै भी सहमत हू आप के लेख से इतना बढ़िया लेख लिखने के लिए बधाई

  3. धनी गरीब का अन्तर किस देश में नहीं होता?

    किन्तु यह सच है कि अन्य सभी देशों की तुलना में भारत बहुत अधिक खुशहाल था।

  4. यह कह कर नहीं टाला जा सकता कि विषमता इतनी अधिक नहीं थी। समाज में जब से संपत्ति का संचय आरंभ हुआ है तब से विषमता है। एक समय वह था जब दास हुआ करते थे। यह विषमता का उच्चतम शिखर था। दासों की उपस्थिति मोर्यकाल में भी दिखाई देती है और उस के बाद भी। दासों के उपरांत सामंत वाद आया। तो सामंतों की भूमि पर काम करने वाले बंधक किसान और सामंत दोनों में दास-स्वामी विषमता से अधिक थी लेकिन बंधक किसान की जीवन परिस्थितियाँ दास से बेहतर थीं। हालांकि दास की अपेक्षा किसान चार गुना अधिक सुविधा प्राप्त था तो स्वामी की अपेक्षा सामंत चालीस गुना अधिक सुविधा प्राप्त हो गया था। आज उजरती मंजदूर जिस में खेत मजदूर से ले कर कंस्ट्रक्शन के लिए बोझा ढोने वाला मजदूर और विज्ञानी तक शामिल हैं दास और किसान से दस गुना बेहतर जीवन जीता है लेकिन आज का पूंजीपति सामंतो की अपेक्षा सौ गुना नहीं हजार गुना अधिक संपत्तिवान है। इस तरह विषमता में वृद्धि हुई है। देश की संपत्ति भी उस के मुकाबले बहुत अधिक बढ़ी है। लेकिन यदि साम्राज्यवादी ताकतों ने भारत को न लूटा होता और अब भी नहीं लूट रही होतीं तो भारत आज न जाने कहाँ होता। साम्राज्यी लूट को खत्म करने और विषमता को न्यूनतम करने की आवश्यकता है उस के लिए तंत्र विकसित करना होगा।

  5. आज भी भारत स्वतंत्र नही है । आज भी देश की सत्ता पर ऐसे लोग बैठे है जो वस्तुतः साम्राज्यवादी ताकतो (ब्रिटेन एवम अमेरिका) के हितो के लिए काम कर रहे है । सुनियोजित ष्डयंत्र के तहत भारत पर एक ऐसा संविधान लाद दिया गया है जिसमे अनेक छेद है और इन छेदो की वजह से भारतवर्ष मे सम्पुर्णॅ क्रांति के लिए उर्जा नही बन पा रही है । जब तक केशरीया, लाल और हरा एक साथ नही आएंगे उस साम्राज्यवादी ताकत ko परास्त नही किया जा सकता ।

  6. आज भी भारत स्वतंत्र नही है । आज भी देश की सत्ता पर ऐसे लोग बैठे है जो वस्तुतः साम्राज्यवादी ताकतो (ब्रिटेन एवम अमेरिका) के हितो के लिए काम कर रहे है । सुनियोजित ष्डयंत्र के तहत भारत पर एक ऐसा संविधान लाद दिया गया है जिसमे अनेक छेद है और इन छेदो की वजह से भारतवर्ष मे सम्पुर्णॅ क्रांति के लिए उर्जा नही बन पा रही है । जब तक केशरीया, लाल और हरा एक साथ नही आएंगे उस साम्राज्यवादी ताकत परास्त नही किया जा सकता ।

  7. आज का गरीब ज्यादा गरीब है, यह तो मानना पड़ेगा. पहले ज्यादा लोग भूखे नहीं रहते थे, सभी परंपरागत व्यवसायों में संलग्न थे, और अपनी स्थिति से संतुष्ट भी, वर्ग आधारित समाज का यह उजला पक्ष है की उसमे अपने रोज़गार के लिए किसी को सोचना नहीं पड़ता. सब कुछ जन्म तय कर देता था. और सभी अपनी स्थिति को ईश्वर की इच्छा और कर्मफल मान कर आज की अपेक्षा कहीं अधिक सुखी थे. आज लगभग हर कोई अपने अन्दर खालीपन लिए घूमता है.

    और यह भी सही है की अगर दुर्भाग्यवश किसी के पास खाने को अनाज नहीं है, तब भी उसके भूखे रहने की नौबत कम ही आती है. तब लोग कम आत्मकेंद्रित और स्वार्थी थे. सामाजिक संस्कारों ने यह बात लोगों के मन में ‘अन्नदान महादान’ वाली बात अच्छी तरह बिठा रखी थी. तब वनस्पति, जंगल इतने थे की फल,सब्जियां, वनस्पति, औषधियां मुफ्त ही मिला करती थीं. अन्न, गोधन और वस्त्रों के आलावा बाकी खर्चे नगण्य थे. उन्नीसवी सदी के पहले इतिहास में क्या साग या फल बेचने वालों का कोई उल्लेख है?

    हां मानव पहले की अपेक्षा सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से भ्रष्ट हुआ है. तब से आज तक मनुष्य ने न सिर्फ प्रकृति को नष्ट किया है बल्कि वह निसर्ग से दूर होकर मानसिक संत्रास भुगत रहा है. इसके सामाजिक और भौतिक परिणाम भी सामने हैं. आपकी यह पोस्ट नए सिरे से विचार करने विवश करती है.

    इतिहास के अध्ययन व इन जानकारियों के लिए धन्यवाद.

  8. साम्यवादी कुछ भी कहें, मुझे आपकी बात बिलकुल सही लग रही है. आज की गरीबी बहुत विषम है. परम्परावादी लोग सबमें प्रभु को ही देखते थे, दान में विश्वास रखते थे और अन्नदान आदि तो उनके जीवन का सामान्य अंग थे.

  9. the bigger reason is islamic rule.as far as last three hundred yers is concerned britishers made india country as it should be.they were actual liberators after 1947 india went on a path of single party rule which just like a dictatorship.india is again a slave nation.we are left in hands of god.

  10. BHARaT AAJ BHI GAREEB RASTRAO ME NAHI HAI VISHW KI SABASE BADI CHAUTHI ECONOMY AAJ BHI BHARAT KI PAAS HAI. TO AAJ BHI VISHW ME CHAUTHE NO. PAR HAM HI HAI. YAHI KARAN HAI KI SABASE JAYAADA BAHURASTRIY COMPANY BHARAT ME NIVESH KAR RAHI HAI. AUR MAIN PAWER ME BHI DUSARE STHAN PAR HAI. YAANI KI MILITRY POWER BHI VISHW ME DUSARE NO PAR HAI. ISLIYE BHARAT AAJ BHI SONE KI CHIDIYA HAI DUSARE DESO KE LIYE. ISLIYE KAHA HAI KI “KUCHH BAAT HAI KI AESI HASTI MITATI NAHI HAMARI SADIYO RAHA HAI DUSHMAN DAUR-E-JAHAN HAMARA”

  11. M/S. jayanti borana bhinmal
    यह कह कर नहीं टाला जा सकता कि विषमता इतनी अधिक नहीं थी। समाज में जब से संपत्ति का संचय आरंभ हुआ है तब से विषमता है। एक समय वह था जब दास हुआ करते थे। यह विषमता का उच्चतम शिखर था। दासों की उपस्थिति मोर्यकाल में भी दिखाई देती है और उस के बाद भी। दासों के उपरांत सामंत वाद आया। तो सामंतों की भूमि पर काम करने वाले बंधक किसान और सामंत दोनों में दास-स्वामी विषमता से अधिक थी लेकिन बंधक किसान की जीवन परिस्थितियाँ दास से बेहतर थीं। हालांकि दास की अपेक्षा किसान चार गुना अधिक सुविधा प्राप्त था तो स्वामी की अपेक्षा सामंत चालीस गुना अधिक सुविधा प्राप्त हो गया था। आज उजरती मंजदूर जिस में खेत मजदूर से ले कर कंस्ट्रक्शन के लिए बोझा ढोने वाला मजदूर और विज्ञानी तक शामिल हैं दास और किसान से दस गुना बेहतर जीवन जीता है लेकिन आज का पूंजीपति सामंतो की अपेक्षा सौ गुना नहीं हजार गुना अधिक संपत्तिवान है। इस तरह विषमता में वृद्धि हुई है। देश की संपत्ति भी उस के मुकाबले बहुत अधिक बढ़ी है। लेकिन यदि साम्राज्यवादी ताकतों ने भारत को न लूटा होता और अब भी नहीं लूट रही होतीं तो भारत आज न जाने कहाँ होता। साम्राज्यी लूट को खत्म करने और विषमता को न्यूनतम करने की आवश्यकता है उस के लिए तंत्र विकसित करना होगा।

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