आज एक लंबे अरसे के बाद चिट्ठाजगत में वापस आया तो लगा कि घमासान अभी भी खतम नहीं हुआ है. कल कोई विषय था आज कुछ और है. इन में सब से आखिर में दिखाई दिया पाबला जी के विरुद्ध हो रहा घमासान जिस में उनको “बागी” (साईबर स्क्वेटर) घोषित कर दिया गया है. पाबला-विरोधी “मित्र” जम कर पाबला-विरोधियों का हिम्मत-हौसला बढा रहे हैं एवं इनामकिताब कर रहे हैं.
इन सब से हिन्दीजगत का कितना भला हो रहा है इसका अनुमान लगाना मुश्किल है, लेकिन एक बात का यकीन है कि गलतफमियां जरूर बढ रही हैं. उदाहरण के लिये, अब हर किसी को लगने लगा है वे साईबर-स्क्वेटिंग का मतलब जानने लगे हैं और इस कारन अपराध-शास्त्र में उनको दक्षता हासिल हो गई है.
“साईबर-स्क्वेटिंग” लगभग 20 साल पुराना एक शब्द है जिसका मतलब है जालजगत में ठसना. जब जालजगत चालू हुआ था उस समय कुल 3 प्रकार के डोमेन जनसाधारण के लिये उपलब्ध थे — कॉम, ऑर्ग, एवं नेट (Com, Org, Net). उस जमाने में हर व्यापारिक संस्थान एवं ट्रस्ट अपने नाम को पंजीकृत करवाने की होड में लगा रहता था क्योंकि कुल तीन ही प्रकार के डोमेन मिल सकते थे.
ऐसे युग में कुछ लोग व्यापारिक संस्थानों के नाम (मसलन, IBM.Com, CocaCola.Com) अपने नाम पंजीकृत करवा लेते थे और बाद में कंपनी को ऊंचे दाम पर बेच देते थे. कंपनी के पास उस नाप को प्राप्त करने का कोई और चारा नहीं था. कुल तीन संभावित नाम जो ठहरे. लेकिन आज 200 से अधिक प्रकार के डोमेन (मसलन, IN, TV, US, Asia, Org.In) उपलब्ध हैं और किसी भी व्यापारिक संस्थान को या संस्था को नाम की कोई कमी नहीं है. यदि Com में नहीं मिला तो In में पंजीकृत करवा सकते हैं.
चूंकि कोई भी कंपनी मसलन, IBM इन 200 डोमेनों को पंजीकृत नहीं करवा सकती अत: आज किसी भी नाम पर किसी का भी हक लगभग न के बराबर रह गया है.
यदि चिट्ठाचर्चा.कॉम पंजीकृत हो गया है तो अभी कम से कम 200 डोमेन बचे हैं जिन में कम से कम 25 (चिट्ठाचर्चा.इन, चिट्ठाचर्चा.नेट, आदि) को कोई भी चाहे तो पंजीकृत करवा सकता है. इस कारण पाबला जी ने कोई अपराध नहीं किया है. अपराध तो वे कर रहे हैं जो अनावश्यक मुद्धे उठा कर बवाल खडा कर रहे हैं.
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आप ही सम्झाइये .
अपराध तो वे कर रहे हैं जो अनावश्यक मुद्धे उठा कर बवाल खडा कर रहे हैं…
सत्य वचन ।
सरदार जी असरदार हैं तभी तो आप चुप्पी तोड़ बैठे।
आदरणीय सर ,पारिवारिक दायित्वों से निपटने के बाद आप वापस आये और क्या समय पर वापस आए । मुझे लगता है कि मुझ सहित बहुत से बल्कि अधिकांश ब्लोग्गर्स इन तकनीकी बातों की समझ नहीं रखते । आपने इस मुद्दे पर सभी तकनीकी बारीकियों के साथ एक और महतव्पूर्ण पक्ष रखा । धन्यवाद । इस प्रकरण से जुडी एक और बात जो मुझे उचित नहीं लगी वो कि आखिर क्या वजह थी कि सीधे सीधे किसी पर उंगली उठा देने से पहले , उस समस्या को हल करने के लिए कोई पहल नहीं किया गया ,, बात में नैतिकता की दुहाई दी जाने लगी । अच्छा किया जो आपने बता दिया कि अभी दो सौ डोमेन बांकी है , यानि एक सौ निन्यान्वे लोगों के लिए मौका है अभी अपराधी बनने का । आप ये पोस्ट लिख कर और मैं टिप्पणी लिख कर अपराध के भागी बन रहे हैं …criminial ….oops …blogial …conspiracy
पिछले दिनों पाबला जी को आरोपित करते एक आलेख में साइबर स्क्वेटिंग की परिभाषा से दो चार हुआ। तो पाया कि खुद उन के मुताबिक पाबला जी साइबर स्क्वेटिंग के दोषी बिलकुल नहीं कहे जा सकते। क्यों कि यह तभी संभव है कि डोमेन में उपयोग में लिया गया नाम पहले से ट्रेडमार्क के रूप में पंजीकृत हो। हालांकि मैं खुद उस परिभाषा से आश्वस्त नहीं था।
आप ने इस मामले को अब शीशे की तरह साफ कर दिया है।
शास्त्री जी
अपने देश में जितना भावनात्मक व्यभिचार होता है उतना शायद विश्व में कही नहीं . कुछ लोगों को ये शब्द कड़े लग सकते हैं लेकिन यथार्थ छुपता नहीं . प्रश्न तो ये है की ये सब सभ्रांत लोगों द्वारा किया गया .
पर्दे के पीछे क्या हुआ मुझे नहीं मालूम लेकिन जो सामने हुआ ?
पुनर्वापसी पर स्वागत है.
आपका स्वागत है।
घुघूती बासूती
aapne bahut sahi kaha
dhnyavaad !
nice…………………..
इतने दिनों बाद आपको देख कर अच्छा लगा .मैं तो घबरा ही गया था की कहीं आपने ब्लागजगत से संन्यास तो नहीं ले लिया .
आपने मसले को नीर क्षीर विवेक से हल कर दिया .आभार .
अब आप ने बता दिया है …. तो सही ही होगा !
कंटेंट के अलावा डोमेन का महत्व कितना है …इसको अभी हमारा दिमाग समझने की कोशिश कर रहा है !
पु्र्नस्वागत है।
पुन: वापसी पर हार्दिक स्वागत, आशा है पुत्र व पुत्रवधु ‘सानंद’ होंगे।
अपराध कितना बड़ा है इस पर हम टिप्पणी कैसे करें यूँ भी द्विवेदीजी ने बता ही दिया है कि चिट्ठाचर्चा प्रकरण में इसे अपराध नहीं माना जाना चाहिए क्योंकि ये ‘रजिस्टर्ड ट्रेड मार्क’ नहीं है…हमने अपनी पोस्ट में कहा ही था कि कानूनी तौर अपराध हुआ हे कि नहीं ये कानूनची ही तय कर सकते हैं तथा हमारी नजर में तो द्विवेदीजी इसके सबसे बड़े जानकार हैं। इसलिए मामला तय हो गया।
(कानून को ये बताना बहुत ही कठिन है कि रजिस्टर्ड छोडि़ए चिट्ठाचर्चा ट्रेड ही नहीं है बल्कि कष्ट ही तो प्रयोजकों वाले ट्रेड बनने के आसन्न होने से है)
हमने 2004 में, जब हिन्दी प्रेस में इंटरनेट पर शायद ही तोई तकनीकी लेख छपता हो, जनसत्ता में लेख लिखा था ‘जाल में फंसे नाम’ ये डोमेन स्कवैटिंग पर ही था तबसे ही हमारी समझ ये है कि जब पहले से मौजूद किसी की गुडविल का इस्तेमाल करने के लिए इसे लिया जाता है तो जाहिर है बैडफेथ में ही होगा इसलिए अनैतिक रहा (कोई आहत न हो इसलिए अपराध शब्द इस्तेमाल नहीं कर रहा हूँ)
डाट ओर्ग, इन, माब आदि आदि की उपलब्धता का तर्क बार बार दिया जा रहा है जो इसकी सैद्धांतिक समझ का कचरा करना ही है। सवाल सीधा है नई यदि चिट्ठाचर्चा के लिए डोमेन के 199 विकल्प है (हमने पहले ही कहा कि साझा प्रकल्प होने के कारण मूल चर्चा के डोमेन पर जाने के हम खास समर्थक हें ही नहीं) पर श्री पाबला के पास तो दूसरी (या तीसरी, चौथी पांचवी..) चर्चा के लिए अनंत विकल्प थे फिर चिट्ठाचर्चा ही क्यों ? उत्तर मुश्किल नहीं है उनकी ओर से लोगों ने बार बार स्पष्ट किया है कि वे इस मंच से नाराज हैं हमारी छोटी सी समझ इसे ही बैडफेथ कहती है।
थोड़ा पीछे चलते हैं। हममें से कई को लगने लगा था कि नारद अलोकतांत्रिक हो रहा है, हमें दिक्कत थी इस मंच के गलत दिशा में जाने पर आहत थे। पर जब ब्लॉगवाणी ओर चिट्ठाजगत आए जो वही काम करने आए थे नारद कर रहा था (और उसी तरह साझा था जैसे कि चिट्ठाचर्चा) तो ये नए एग्रीगेटर बैडफेथ में नहीं आए इन एग्रीगेटर्स ने डोमेननेम, इंटरफेस या प्रचार में नारद की गुडविल का उपयोग करने की चेष्टा नहीं की। चिट्ठाचर्चा अगर भटक रहा है तो उसे गाड़ा जा सकता है या खुद मिट जाएगा नारद की ही तरह किंतु इसे ही नकार देना अनुचित है इतने सालों में उसने वो गुडविल अर्जित की है (जो सहज ही ‘उसकी’ गुडविल है) कि हर इस तरह का नया उपक्रम खुद को चिट्ठाचर्चा कहने पर उतारू है।
इस गुडविल को हथियाने का प्रयास अगर हमें अनैतिक दिखा तो कैसे अदालती कार्रवाई की सावर्जनिक धमकी का बायस बना। (अरे हिन्दी का मास्टर है… इतनी हिम्मत कि वेब डेवेलपमेंट के बेस्ट ब्रेन को अनैतिक कहे… अरसे से कर रहे हैं किसी की आज तक हिम्मत नहीं हुई)
खेद है टिप्पणी लंबी हो गई। बाकी स्थानों पर इग्नोर किया जा सकता था पर आपके प्रति भिन्न भाव रहा है आपको इग्नोर नहीं कर सकता। जब हमने कहा था कि आप अकेले ये सब नहीं कर सकते जरूर कोई ओर बात है तो ये ज्यादा आहत करने वाली बात थी पर आपने लीगल नोटिस की धमकी नहीं भेजी थी अपनी बात रखी थी। यहॉं अभी तक कोई नहीं बता रहा हे कि ब्लॉगवात, ब्लॉगचर्चा, पाबलाचर्चा, छत्तीसगढचर्चा …. 199 नहीं 199 करोड़ नाम उपलब्ध होते हुए चिट्ठाचर्चा ही क्यों ?
खैर इस सबके बाद किसी को लगता है कि मेरी बात मालाफाईड थी तो मैं खेद व्यक्त करता हूँ।
बात आपने बिल्कुल ठीक लिखी है. लेकिन यहां पर यह आदत है कि पहले नाम से ही पहचान होती है. जैसे कि आदमी सरनेम सहित पूर्ण नाम न लेकर समीर, मोहन इत्यादि कहता है. लेकिन धीरे धीरे आदत पड़ जायेगी और वैसे भी पाइरेसी में तो हमें महारत हासिल है ही 🙂
हार्दिक खुशी हुई कि आप पुनः वापस आ गये हैं!
शाश्त्रीजी रामराम. आप बडे दिनों बाद दिखे हैं. और आते ही आपने दुध का दूध और पानी का पानी कर दिया है. बहुत ही सीधे शब्दों मे आपने “साईबर-स्क्वेटिंग” को समझा दिया है.
आपकी बात का मतलब समझ आगया है. जबरन लोगों को गुमराह किया जारहा है. बहुत धन्यवाद.
रामराम.
मसिजीवी ने कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न पूछे हैं. इन का उत्तर अगले आलेख में देखें.
मेरे मित्र मसिजीवी ने कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न पूछे हैं. उनका उत्तर अगले आलेख में देख लें.
सस्नेह — शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
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welcome back.
agle aalekh ki pratikshaa me
आपका पुन:स्वागत है।आपने बढिया पोस्ट लिखी।अगली पोस्ट की प्रतीक्षा रहेगी।
अच्छा है – पुनर्वापसी ऐसे मुद्दे से होना! 🙂
मैं बता नहीं सकता की आपकी इस पोस्ट ने कितना निराश किया है. ऐसी गोल मोल बातें सुनने की कम से कम आपके यहां तो अपेक्षा नहीं रखता था. अब तक आपके तर्क कौशल का लोहा मानता आया हूँ, इसीलिए इस पोस्ट में सायबर स्क्वैटिंग की ऐसी गलत व्याख्या (और सच कहने से बचने का ऐसा भीरु प्रयास) देखकर मन क्षुब्ध है.
और क्या कहूँ, आगामी पोस्ट की प्रतीक्षा करता हूँ. फिलहाल तो मसिजीवी का स्वर लेहड़ों की बस्ती में शेर की आवाज सा लगा रहा है.
it is very re-assuring to have balanced thinking individuals like you in Hindi blogosphere. I agree with you and i thank you for enlightening me.