मेरे घर के पास ही है राजमार्ग 47, जिस पर हर महीने मैं 1000 से 3000 किलोमीटर की सफारी करता हूँ. अधिकतर अपनी कार में, लेकिन कई बार गैरों की गाडी में. एक औसत यात्रा 100 से 400 किलोमीटर की होती है. 4-लेन के इस राजमार्ग पर यात्रा सामान्यतया सुखद होती है, लेकिन एक चीज मन को दुखी करती है और वह है दुर्घटनायें.
एक बार की यात्रा में औसतन एक दुर्घटना नजर आ जाती है. यहां अधिकतर गाडियां 80 किमी रफ्तार से चलती हैं अत: दुर्घटनाओं में मौत बहुत अधिक होती है, और छोटी गाडियों के सिर्फ अंजरपंजर बच पाते हैं. अनुसंधानों से पता चलता है कि इन में 80% से 90% मानुषिक लापरवाही और घमंड के कारण जबर्दस्ती होती हैं, और सिर्फ 10% से कम दुर्घटनायें आकस्मिक होती हैं.
मद्यापन करके गाडी चलाना, आधी अधूरी नींद के बाद गाडी चलाना, बिन सही ब्रेक के गाडी चलाना, दूसरे से सडक पर प्रतियोगिता करना, सडक किनाने की चेतावनियों (खतरनाक घाटी, तंग रास्ता, बिन-फाटक रेलवे क्रासिंग, खतरनाक/अंधा मोड) की उपेक्षा आदि के कारण अधिकतर दुर्घटनायें होती हैं.
अफसोस यह है कि एक सेकेंड के दसवें भाग में जो दुर्घटना होती है उसका दर्द, विकलांगपन, बच्चों का, अनाथपन, स्त्रियों का वैधव्य आजीवन दर्द देता है. आश्रितों की जिंदगियां बर्बाद हो जाती हैं. बुद्धिमान बच्चे पढाई छोड मजूरी के लिये निकल पडने पर विवश हो जाते हैं. उससे भी अफसोस की बात है है कि जरा सी सावधानी से इन आजीवन के दुखों से बचा जा सकता था.
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अतिरेक बहुत सी दुर्घटनाओं को जन्म देता है। मैं भुक्त भोगी हूँ। कोई सात बरस पहले 35 वर्षीय भाई को दुर्घटना में खो चुका हूँ।
जी सच कहा आपने -मुझे तो रोड जर्नी से हमेशा बहुत डर लगता है जान जाने से नहीं दुर्घटना से …..
काश लोग थोडी सावधानी से गाडी चलाया करते !!
पता नहीं लोग किश नशे में हैं. मेरे ब्लॉक के नीचे सड़क के दोनों और कारों की कतारें हैं और उनके बीच में बमुश्किल ७-८ फीट का अंतर, लेकिन इतने में भी लोग इतनी तेज़ रफ़्तार से गाडी निकलते हैं कि मैं सिहर जाता हूँ. अब मैंने एक नया खेल शुरू किया है हांलाकि इसमें खतरा भी है. जब मैं दूर से किसी को तूफानी रफ़्तार से आता देखता हूँ तो किनारे पर लगने के बजाय कुछ बीच में चलने लगता हूँ. गाडीवाले को बड़ी मुश्किल से ब्रेक लगाना पड़ता है और फिर इसके बाद उसका गुस्सा और खीझ देखकर मैं रस लेता हूँ. थोड़ी गाली भी सुननी पड़ती है लेकिन दिल्ली में रहते हुए लोगों की इतनी बदतमीजी देखी है की अब बुरा नहीं लगता.
लोग स्वयं जिम्मेदार होना सीखें तथा अविवेकी ड्राइवरों से होड़ न करें और शेष ऊपरवाले के हवाले.
लोग सड़कों को भी वीडियो गेम समझ बैठते है न.
ट्रैफिक रूल्स की हमारे देश में कोई इज़्जत नहीं है. इसके लिए सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदार पुलिस और राजनेता हैं. ट्रैफिक रूल्स तोड़ने वालों को 10 साल जेल से कम की सज़ा नहीं होनी चाहिए. क्योंकि ये अपनी जान तो देते ही हैं, कई निर्दोषों के प्राणहंता होने का पाप भी इनके सिर चढ़ता है.
Sasthri saaheb, you raised a good question thru this write-up, no doubt we the travelers are to be blamed for most of the accidents, If we follow a bit of out traffic rules most of such incidents can be avoided. good thought, it create an awareness among our people.
Thanks
br. Ariel
bro, if you can translate it into hindi it will be very good
love
philip
desh ke jo yuwa hai un ko ye baat samjhani hogi