आज एक मित्र का ईपत्र आया कि उन्होंने गूगल एडसेंस के लिए अप्लाई किया लेकिन गूगल ने उसे निरस्त कर दिया. गूगल के पत्र में उन्होंने कहा है कि वे हिंदी चिट्ठों के लिए विज्ञापन स्वीकार नहीं करते. मित्र जाना चाहते थे कि ऐसा क्यों हुआ जबकि एक साला पहले गूगल हिंदी चिट्ठों को स्वीकार करता था.
दोस्तों, आदमी का लालच कई बार सोने का अंडा देने वाली मुर्गी को खत्म कर देती है. गूगल के साथ मामला यही है. किसी ज़माने में गूगल हिन्दीभाषी चिट्ठों को विज्ञापन के लिए स्वीकार करता था, लेकिन चिट्ठाकार भाई लोग जम कर अपने चिट्ठों पर दिख रहे विज्ञापनों परा चटका लगा कर पैसा सूतने लगे. वे भूल गए कि गूगल के हाथ बड़े लम्बे हैं.
आप जिस संगणक से अपने गूगल विज्ञापन की आय को जांचते हैं उसी आई पी नम्बर से जब क्लिक जाने लगे तो गूगल ने पहचान लिया कि आप खुदा ही दुकानदार और खुद ही ग्राहक का काम कर रहे हैं. अंधा बांटे रेवड़ी, आपन आपन को देता जाए अंधे के लिए सही है लेकिन गूगल के लिए नहीं.
चूँकि कुछ हिंदी चिट्ठे जम कर ऐसा कर रहे थे, उसकी सजा सबा को मिल रही है. गेंहू के साथ घुन भी पिस जाता है.
लालच बुरी बला है
बड़े भोले रहे होंगे ऐसे लोग.
बात तो आपकी सही है
सही कहा-लालच करना अच्छा नहीं.
अब भी सीख ले लें तो ठीक।
आप खुदा ही दुकानदार और खुद ही ग्राहक का काम कर रहे हैं. अंधा बांटे रेवड़ी, आपन आपन को देता जाए अंधे के लिए सही है लेकिन गूगल के लिए नहीं. nice
गूगल से भीख मांगिये….
आपका कहना बिल्कुल ठीक है. हालांकि मैंने तो आजतक इसके लिये कोशिश ही नहीं की.
आप की बात सही है….
मुर्गी अंड़े समेत गयी पानी में 🙂
यह सच नहीं है। अगर ऐसा होता तो बाकि भाषाओँ में भी ऐसा होता। आपको क्या लगता है कि विदेशी लोग ज्यादा ईमानदार होते है। ऐसा बिलकुल भी नहीं है । बहुत से विदेशी भी ऐसा करते है और गूगल उनकी सदस्यता रद्द कर देता है। और देसी लोग क्या हिंदी भाषा में ही लिखते है। अगर ऐसा होता तो जो भारतीय अंग्रेजी में वेबसाइट/ब्लॉग चलाते है, उनका गूगल क्या करता होगा?
दरअसल इसका कारण यह है कि हमारी हिंदी भाषा को इंग्लिश में लिखने में थोड़ी कठिनाई है। अब जैसे की सारथी लिखने के लिए कोई saarthi टाइप करता है तो कोई sarthi । बनता दोनों से ही सारथि है पर स्पेल्लिंग तो अलग – अलग हो गयी न। अब विज्ञापनदाता तो अपने विज्ञापन को अपनी स्पेल्लिंग वाले पेज पर ही दिखाना पसंद करेगा।
इसी प्रकार ki लिखने से की भी बनता है और कि भी बन सकता है। यहाँ पर भी दिक्कत आती है। इसलिए अंग्रेजी से हिंदी लिखने में एकरूपता के अभाव के कारण गूगल को अपना adsense प्रोग्राम वापस लेना पड़ा.
वैसे चर्चा तो जारी रहनी चाहिए ।
अगर आप हिंदी साहित्य की दुर्लभ पुस्तकें जैसे उपन्यास, कहानियां, नाटक मुफ्त डाउनलोड करना चाहते है तो कृपया किताबघर से डाउनलोड करें । इसका पता है:
http://Kitabghar.tk
करे कोई, भरे सब कोई!
होली और मिलाद उन नबी की शुभकामनायें !!
आपकी बात काफी हद तक सही है। हिंदी चिट्ठों को इसीलिए बैन किया है।
होली पर आपको अनेक शुभकामनाएं उदकक्ष्वेड़िका …यानी बुंदेलखंड में होली
सोने की मुर्गी वाली कहावत यहाँ बिलकुल सही है ।
“आदमी का लालच कई बार सोने का अंडा देने वाली मुर्गी को खत्म कर देती है”
सही कहा
कविराज जी की बात से मैं काफी हद तक सहमत हूं ।
लेकिन गूगल विज्ञापन के लिए हिन्दी चिट्ठों को ही स्वीकार नहीं करता है । जबकि अंग्रेजी चिट्ठों के साथ शायद ऎसा नहीं है । लालची तो अंग्रेजी वाले भी हो सकते हैं ।
अपने वर्डप्रैस हिन्दी चिट्ठे पर तो ऍडसैन्स चल रहा है, पुराने ब्लॉगर वाले पर भी चलता था बस मैंने डैशबोर्ड में ब्लॉग की भाषा अंग्रेजी सैट कर रखी थी (हिन्दी सैट करने से कुछ बग दिक्कत करते हैं)।