आज एक इष्ट मित्र ने चलभाष पर बुला कर उलाहना दिया कि कैसे सारथी हो कि कु्छ लिखतेपढते नहीं हो। आभार उस मित्र का जिन्होंने मुझे सोते से जगा दिया। दर असल एक महीने पहले संगणक और आपरेटिंग सिस्टम बदला और विन्डोज 7 का उपयोग करने लगा तो मेरा इष्ट “केफे हिन्दी” गडबड करने लगा था। अनुमान है कि कुछ दिनों में केफे का नया संस्करण आ जायगा।
आज देखा कि काफी सारे लोग मिथिलेश दुबे के पीछे पडे हैं। एक चिट्ठाचर्चा के बाद सब कोई अब उस पर पिल पडा है। जहां तक चिट्ठाचर्चा की बात है, चर्चा करना तो हरेक का मौलिक अधिकार है। दर असल समस्या चर्चा की नहीं है बल्कि यह है कि अनजाने मिथिलेश ने कुछ लोगों की दुखती रगों को छू लिया है। उन लोगों ने अपने "पैदल" तुम्हारे विरुद्ध चला दिये। बस यह है इस गुरिल्ला युद्ध का मर्म।
इसका तरीका भी बहुत सीधा सादा है – एकाध हैं जिनको कोई आलेख पसंद न आये तो तुरंत अपने गुर्गों के दूरभाष खनखना देते हैं। बस अपने “उस्ताद” को खुश करने के लिये वे सब (बिना मूल आलेख को पढे ही) उस बेचारे चिट्ठाकार पर पिल पडते हैं। मुझे एक दिलचस्प घटना याद आ रही है जब मैं ने “नारी” विषय पर एक आलेख छापा था। अचानक दोचार महिला चिट्ठाकारों ने (जिन से मेरे काफी पत्र आदान प्रदान होते रहते थे) सारथी पर आकर दनादन अपशब्द लिखना शुरू कर दिया। जब पलट कर मैं ने उन से पूछा कि आप मेरे जिस “कथन” का खंडन कर रही हैं वह मैं ने क सारथी पर कहां लिखा है तो उनकी झक्की खुली। बडी माफी मांगी। बोलीं कि फलां चिट्ठाकारी (चिट्ठाकार का स्त्रीलिंग) ने दूरभाष पर बुला के कहा कि आप ने ऐसा लिखा है अत: उस पर यकीन करके आपका आलेख बिन पढे ही आप के विरुद्ध टिप्पणी कर दी। इसके बाद तो कई चिट्ठामित्रों के दूरभाष मिले उन को भी मेरे विरुद्ध लिखने को कहा गया, लेकिन मेरा आलेख पढने पर उनको वह कथित कथन न मिला। मैं ने उन सब से कहा कि जिस ने आप को दूरभाष पर बुला कर भडकाया उसी से पूछें।
समस्या यह है कि नंगे से खुदा भी डरता है। चिट्ठाजगत में लिखी कोई बात इनको पसंद न आये तो ये अपने पैदलों के साथ आप के विरोध में उतर आते हैं। ये पैदल खुद भी इन लोगों से डरते हैं अत: बिन सोचे समझे इन नंगों के कहे के अनुसार चिट्ठाकारों के विरुद्ध टिप्पणी करने लगते हैं। मिथिलेश जैसे लोगों को लगे रहना चाहिये, लिखते रहना चाहिये। अभिव्यक्ति की आजादी पर कोई भी लगाम नही लगा सकता।
डा अरविंद मिश्रा की एक टिप्पणी एक और बात सोचने को मजबूर करती है:
मिथिलेश की चिंता और आक्रोश इस मामले में जायज है की इसके पहले तो चिट्ठाचर्चा ने इनकी किसी पोस्ट का जिक्र नहीं किया — अब क्या केवल चिट्ठाचर्चा मात्र एकल पोस्टों की चर्चा का भंडास निकालने का मंच बन रहा है? जिसे जो भी खुन्नस हो और जिससे भी हो चिट्ठाचर्चा खुला मंच बनता जा रहा है उनके लिए -पहुँचो और भोंपू बजा दो !बढ़िया हैं -लगता है जल्दी ही यहाँ नारियों और नारीवादियों का ही वर्चस्व होगा — मिथिलेश आदि हवा हवाई हो रहेगें!
शास्त्री जी आपकी कमी खल रही थी -बात पुरानी है और चेहरे भी ज्यादातर पुराने ही!
अच्छा प्रायोजन चल रहा है- नारी क्रांति बस अब हुआ ही चाहती है!
आपके मित्र की बात तो सही है, इतना लम्बा ब्रेक भी अच्छी बात नहीं है… अब तो पारिवारिक जिम्मेदारियों से भी निबट चुके हैं… जल्दी ही सक्रिय हो जाईये… इन्तज़ार कर रहे हैं हम्॥
उन लोगों ने अपने “पैदल” तुम्हारे विरुद्ध चला दिये। बस यह है इस गुरिल्ला युद्ध का मर्म
वरिष्ठ एवं अनुभवी चिट्ठाकार होने के चलते आप ब्लागधर्म के इस परम सत्य से भली भान्ती परिचित हैं 🙂
शास्त्री जी, वैसे ये सारथी नाम ही उपयुक्त है वर्ना ब्लागरथ में जुते इन बिगडैल घोडों पर अंकुश रख पाना मुश्किल हो जाएगा 🙂
आज आपके मित्र को धन्यवाद, जिन्होंने आपको उलाहना दिया।
काफी लम्बी छुट्टी पर हो आये हो जी
प्रणाम
शास्त्री जी सादर चरण स्पर्श
व्यस्तता होने के कारण आपका मेल देर में देख पाया , मेरा कल Exam है , जिसके नाते अभी जारी ऊठापटक में मैं भाग नहीं ले पा रहा , जिसका मुझे बहुत खेद है । आपका और अरविन्द जी का तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ , आपने जिस तरह से मेरे पक्ष को सामने रखा मुझे उससे सांत्वना मिली और खुशी हुई और लगा कि अब भी हिन्दी ब्लोगिंग में कुछ लोग हैं जो सच का साथ देते है । यहाँ तो ज्यादतर लोग मात्र टिप्पणी से मतलब रखते हैं जिससे वे किसी का ना तो विरोध ही कर पाते है और ना ही साथ ही दे पाते है , उनका खूद का कोई वजूद नहीं होता, आपका आभार प्रकट करता हूँ ।
मेरा चिट्ठा चर्चा से कोई व्यक्तिगत विद्रोह नहीं है, मेरा कहना मात्र इतना ही है कि इससे पहले मुझे इस तरह से चिट्ठा चर्चा मे शामिल क्यों नहीं किया गया, चिट्ठा चर्चा को याद रखना चाहिए कि उनका ब्लोग हमशे है ना कि हम उनसे । चिट्ठा चर्चा को अपने नाम के अनुरुप चर्चा करनी चाहिए ना कि व्यक्तिगत रुप से भड़ास निकालने के लिए किसी की पोस्ट को लगाना चाहिए , अगर वे इस तरह की हरकत करते है तो उन्हे लेखक से अवश्य ही पुछना चाहिए, अगर इसी तरह से भड़ास निकलाने के लिए सभी खूद का ब्लोग बना लें तो शायद अपने ब्लोग पर लिखने के मायने ही खत्म हो जाऐंगे । सुजाता जी कौन है मुझे नहीं पता , आजतक उनका एक भी कमेण्ट मेरे ब्लोग पर नहीं है, तो इससे ये बात स्पष्ट होती है कि वे मुझे नहीं पढती ना ही मुझे जानती ही होंगी , तो मेरे लेख को बिना मेरे इजाजत चिट्ठा चर्चा में क्यों लगाया गया, सुजाता जी ने जो कुछ भी किया इसे मात्र कायरता और जलील हरकत कही जायेगी ।
आपका उदाहरण और वस्तु विश्लेषण जरुरी लगा.
इस तरह से ही एक बार हमारे साथ भी हो चुका है परंतु हम मुँह न लगे, क्योंकि हमें अपनी ऊर्जा इसमें लगाना व्यर्थ लगा, पर हाँ गलत तो गलत ही है।
आपने बिल्कुल ठीक लिखा है. बिना पढ़े और देखे ही कमेंट कर देना हमारे सूडो बुद्धिजीवियों की आदत बन चुकी है.
प्रिय मिथिलेश, चिट्ठाचर्चा या कोई भी चिट्ठा किसी भी अन्य चिट्ठे की चर्चा कर सकता है। यह उनका मौलिक अधिकार है। अत: उस मामले को जाने दो।
गलत यह हुआ है कि — जैसे डा अरविंद ने कहा — “पहले तो चिट्ठाचर्चा ने इनकी किसी पोस्ट का जिक्र नहीं किया — अब क्या केवल चिट्ठाचर्चा मात्र एकल पोस्टों की चर्चा का भंडास निकालने का मंच बन रहा है? जिसे जो भी खुन्नस हो और जिससे भी हो चिट्ठाचर्चा खुला मंच बनता जा रहा है उनके लिए -पहुँचो और भोंपू बजा दो !बढ़िया हैं -लगता है जल्दी ही यहाँ नारियों और नारीवादियों का ही वर्चस्व होगा — मिथिलेश आदि हवा हवाई हो रहेगें!”
वापसी मुबारक हो। चिट्ठा चर्चा का भी इतना चर्चा न होता यदि मिथिलेश ने पोस्ट लिख कर तगड़ी आपत्ति न की होती। वैसे मिथिलेश की पोस्ट में कोई नई बात नहीं थी। वही बात थी जो हजारों लाखों बार कही जा चुकी है।
आपको पुन: अपने बीच पाकर अदभुत प्रसन्नता का एहसास हो रहा है.
रामराम.
परम आदरणीय एवँ ब्लॉगर-स्मरणीय शास्त्री जी,
यह स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं कि मुझे आपके विरुद्ध टिप्पणी करने भेजा गया है, पर मैं आपकी पोस्ट पढ़ने का दुःस्साहस कर बैठा । इस पवित्र टिप्पणी बक्से की शपथ कि मुझे अपने ऊपर अत्यन्त खेद हुआ ।
इस पोस्ट की मौलिकता,विचारों की स्पष्टता और सबसे बढ़ कर यह कि इसकी निरपेक्षता से मैं पानी पानी हुआ जाता हूँ । मेरा हृदय-परिवर्तन हो गया है, ऎसी स्वच्छता और कहाँ ?
उधर मैं नाहक ही पानी भरता रहा, अब और पैदल रहा नहीं जाता..
हे फ़ादर, आप मुझे अपने घोड़ों में शामिल कर लें ।
मैं आजीवन आपके रथ में जुता हुआ, हिन्दी माँ की सेवा में लिप्त रहने का वचन देता हूँ ।
हे बिछी हुई बिसातों, मुझे इस आत्मस्वीकृति के लिये क्षमा करना ।
आपका अनुज – ” पैदल ”
प्रिय पैदल,
अमर-हिन्दी के लिये हम सब मिल कर बहुत कुछ करेंगे!!
जरूरत घोडों की नहीं सारथियों की हैं, और मैं ने आप को उस समूह में जोड दिया है!
इस हफ्ते से आप की जरूरत होगी — वाकई में — हिन्दी-सेवा के लिये.
सस्नेह — शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.IndianCoins.Org
इस प्रकरण की एक सुखद परिणति आपकी वापसी के रूप में देख रहा हूँ। बाकी यह दुनिया जस की तस है। कुछ भी बदला नहीं है और न ही बदलने को तैयार दिखायी देता है। आपका पुनः स्वागत है।
मैं मिथिलेश की बात का समर्थन करता हूं। कम से कम चिट्ठा चर्चा को भड़ास निकालने का माध्यम नहीं बनाना चाहिए, बाकी सब ठीक है। आपका अपना ब्लाग है, व्यक्तिगत स्तर पर जो चाहें लिखें…
फिलिप सर, आपको पढ़कर लगता है.. जैसे एक मार्गदर्शक लौटकर आ गया।
सार्थक चर्चा. आशा है, नियमित रूप से विचार मिलते रहेगे.
आचार्यवर !
बहुत दिनों बाद मूड में आये और खरा खरा लिखा है ! ब्लाग जगत में अजीब से हालात चल रहे हैं , और आज की स्थिति यह है कि हर कोई सही बात खुल कर कहने से डरता है, और दर है कुछ स्वयंभू ब्लाग माफियों से अपने आपको सबसे बढ़िया लेखक और सर्वप्रिय मान रहे हैं ! बेहद खटिया लेखन के ये महाधनी ये धुरंधर जब चाहें किसी को उठा दें अथवा नीचे गिराने में समर्थ हैं ! इस भय से इक्का दुक्का लोग ही इनका नापसंद लेख लिखने की हिम्मत करते हैं ! मिथिलेश ने अज्ञान वश, दूसरों के पेटेंट विषय पर लिखने की हिमाकत कर डाली नतीजा ….
डॉ अरविन्द मिश्र ही मिथिलेश के साथ खड़े मिसाइल झेल रहे हैं …
तो नया नाम क्या सोचे हैं?? 😀