मेरे मंझले साढू भाई की बिटिया की शादी तय करने के लिये आज सुबह दो कारों पर हम नौ जने आज सुबह लगभग 150 किलोमीटर की यात्रा पर गये। एलप्पी में नाश्ते के लिये एक जानेमाने हॉटेल में उतरे और आर्डर दिया। हम लोग इंतजार कर रहे थे कि एकदम से खाकी वस्त्रधारी दस बारह लोग खिडकी के बाहर दौडते और फुर्ती से एक दूसरे को इशारा करते नजर आये।
हॉटेल से ग्राहक लोग भागते नजर आये। पता चला कि रसोई में गैस के सिलेंडर ने आग पकड ली है। अपने परिवारजनों को बाहर भागने की हिदायत देकर मैं ने रसोई में झांक कर जलती आग, उसे बुझाने में लगे चुस्त दुरुस्त और फुर्तीले खाकीधारी अग्निशामकों को देखा। वे हर काम भाग भाग कर कर रहे थे। इस बीच जब उनको लगा कि अतिरिक्त पानी चाहिये तो इशारा हुआ, चार लोग दौडे और आधे मिनिट में पानी की अगली लाईन काम करने लगी।
अब जान बचा कर मैं भी बाहर आ गया। 15 मिनिट में आग पर काबू कर लिया गया, सिलेंडर को ठंडा किया गया, टोंटी बंद की गई और वे पाईप वापस खीचने लगे। दस जनों की इस खाकीधारी टोली की अगुवाई एक बिन वर्दी अफसर कर रहा था। उसको जब मैं ने अपना परिचय दिया तो उसने विस्तार से जानकारी दी और बताया कि यह टीम पिछले 23 घंटों से ड्यूटी पर है और यह इस दौरान छटा वाकया है। इन इन 23 घंटों में दो लोगों को डूबते से बचाया, एक घर से अजगर को निकाला, दो वाहन दुर्घट्ना से लोगों को बचाया और अब यह। मैं हैरान हो गया कि इतने भारी काम के बावजूद उनके समर्पण में किसी तरह की कमी नहीं आई थी।
दो बातें मुझे बहुत अखर गई। इतने जरूरी सेवा के लिये जो गाडियां हैं उनकी हालत सही नहीं थी। न ही पानी के पाईप सही थे। उन में से कई में छेद हो रहे थे और पानी चूता जा रहा था। एक ओर प्रदर्शन के लिये करोडों खर्च किये जा रहे हैं लेकिन दूसरी ओर जरूरी सेवाओं को सुविधा से वंचित रखा जा रहा है।
क्या आप ने कभी अपने शहर के फायर ब्रिगेड की खोजखबर ली हैं? (Picture)
ऐसी आकस्मिक सेवाओं के लिए तो विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये..
मुझे तो फायर ब्रिगेड के बारे में सोच कर ही रोना आ गया ,क्यूंकि उसकी गाडी शायद ही कभी मौके पर पहुँच पाए!!
फायर ब्रिगेड की सेवाओं की सख्त जरूरत होती है। खास तौर पर अब जब गर्मियाँ बाकायदे आरंभ हो गई हैं तो इन्हें हर दम तैयार रहना आवश्यक है। लेकिन जब निजिकरण का दौर है तब यह काम निजि क्षेत्र क्यों नहीं कर रहा है? उसे भी आवश्यक सेवाओं में अपना हाथ बंटाना चाहिए।
hamaare yahan ek petrol pump par aag lagi to khali gaadi aayi usme pani tha hi nahi
यह भारत है. कमीशनखोरी जिन्दाबाद. लोगों की जान की चिन्ता किसे है??
पहले तो आप को बधाई की जान बची, फ़िर भारत मै इन सब सुबिधाओ का होना बहुत कठिन है, एक खव्वाह सा है, लेकिन इन लोगो ने जेसे भी हिम्मत तो की, हमारे देश मै है तो सब कुछ मगर यह् भिखारी जब वोट मांगने आते है तो हमारा गंद भी खाने को तेयार होते है ओर हमारी ही वोटो से जीत कर हमे हमारी ही खुन पसीने की कमाई हम से छीन कर नोटो की माला दिखाते है…. तो मेरा देश केसे करे तरक्की??
ईश्वर की असीम अनुकम्पा की आप सुरक्षित हैं…
बाकी तो व्यवस्था की कमियाँ हैं हीं …नागरिकों की ज़िन्दगी का कुछ हिस्सा उनसे जूझने में बीत रहा है और कुछ इसे बिगाड़ने में…
क्या कहें..!!
शास्त्री जी ,
सच कहा आपने ….शायद ही हमारा ध्यान कभी इस ओर जाता है कि फ़ायर ब्रिगेड की क्या हालत है? मगर व्यवस्था इस कदर सड गई है कि उसका कोई भी कोना लगता ही नहीं है कि थोडा सा भी बचा हुआ है सडने से …सब कुछ सिरे से ही बदलना होगा …मगर कैसे ये एक यक्ष प्रश्न बना हुआ है …
S.P. sahab aur D.m. sahab k bagiche me pani dalnr jati hai fire brigade ki gaduyan
शहर के फायर ब्रिगेड की आँखों में पानी नहीं होगा तो यही सब होगा……पानी दिवस पर पानी-पानी……
….
……….
विश्व जल दिवस……….नंगा नहायेगा क्या…और निचोड़ेगा क्या ?…
लड्डू बोलता है ….इंजीनियर के दिल से..
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_22.html
sorru(gadiyan)
यहाँ यू.पी में फायरब्रिगेड सेवा की हालत बहुत ठीक नहीं है।
शुक्र है , शुक्र है…
HAMARE DESH MAIN FIAR BIGRAED AAG NAHI DHUNA BUJHANE KE LIYE HOTI HAI.
शुक्र है यहाँ समय पर पहुच गयी
शायद पूरे भारत मे ही अग्नि शमन दल संपुर्ण रुप से साधनसंपन्न नही है. पर इन मे एक जज्बा है जो जनता को बचाता रहता है.
रामराम.
शास्त्री जी आपने बहुत अच्छा किया जो उन अंजान बहादुरों की तारीफ़ की वरना उनकी तक़दीर मे बहुत अच्छा काम करने के बाद भी बदनामी ही आती है जिस्के लिये वे नही सरकार या व्यवस्था ज़िम्मेदार होती है।ये भी सही है कि म्यूनिसिपल ले फ़ायर फ़ाईटर बहुत चालू टाईप की व्य्वस्था मे काम करते है और विमानन के लोगों को फ़ाईव स्टार सुविधायें मिलती है जंहा कभी आग ही नही लगती।ये हमारे देश मे चले दोगले सरकारी सिस्टम और दोगले सिटीजन सिस्टम का नमूना है।फ़ायर ब्रिगेड़ की व्यबस्था तक़रीबन सारे देश मे एक सी है मगर यंहा राजधानी रायपुर मे तो हालत और बुरी है।फ़ायर फ़ाइटरों के पास ढंग के जूते भी नही है और इस बारे मे न केवल मैने बल्कि शहर के हर अखबारों ने हमेशा आवाज़ उठाई है।शहर मे लगी कुछ बड़ी आग को बुझाने के लिये हमेशा एअरपोर्ट और करीब के शहर भिलाई के स्टील प्लांट की गाड़ियां बुलवायी जाती रही है मगर उसके बाद भी म्यूनिसीपल की व्यवस्था नही सुधरी।बधाई आपको एक अनछुये और बेहद ज़रूरी विषय को सामने लाने के लिये।
शुक्र है आप समय रहते सकुशल निकल आये.
संसाधनों की कमी और नियमों की अवहेलना कर किये जाने वाले निर्माणों के बावजूद अग्निशमन कर्मचारी जिस लगन और निष्ठां से कार्य कर रहे हैं वह सराहनीय है.
दोष नागरिकों और स्थानीय प्रशासन का भी है. हम संकरी गलियों में मकान बनाते हैं. फायर इंजन के पहुचने लायक रास्ता नहीं छोड़ते, अग्निरोधी मानकों का पालन नहीं करते और रास्तों पर अतिक्रमण कर लेते हैं और यहाँ तक कि ट्रैफिक में फायर इंजन को रास्ता देने के नागरिक कर्त्तव्य का भी पालन नहीं करते. इस सब के बावजूद यदि हम बचे हुए हैं तो यह अग्निशमन कर्मचारियों की निष्ठा और बहादुरी तथा ईश्वर की कृपा का ही परिणाम है.
शुक्र है आप सकुशल निकल आये
अग्निशमन की व्यवस्था अधिकतर स्थानों पर निराशाजनक है। जहाँ कुछ ठीक भी है तो जैसा निशाचर ने टिप्पणी में कहा, हम भी बराबर के दोषी हैं।
इसके दुरूपयोग की बात की जाए तो मैंने कई बार देखा है कि फायरब्रिगेड का उपयोग प्रभावशाली व्यक्तियों के पारिवारिक भोजा आदि के अवसर पर पानी के तैख़र जैसा किया जाता है
सरकारें भी नहीं आम लोग भी अपने पैसे का ऐसे ही दुरूपयोग करते हैं और हमारे देश की आवश्यक सेवाएं बिना सुविधा के अच्छी सुविधा दे नहीं पाती। आज किसी से धर्म के नाम पर या भूखे को रोटी खिलाने के नाम पर चन्दा मांग लीजिए सभी देंगे लेकिन यदि ऐसी सुविधाओं के लिए पैसा मांगो तो तत्काल जवाब होगा कि सरकार क्या कर रही है? और सरकारों को हम ना तो टेक्स देते हैं और ना ही उन पर नजर रखने के लिए हमारे पास समय होता है।
शास्त्रीजी,
आप सुरक्षित हैं, इससे अधिक खुशी क्या हो सकती है। यह भी खुशी की बात है कि कर्तव्यपरायण लोग भारत में हैं।
अब गर्मी का मौसम आ गया है। सभी देशवासियों को आग के प्रति चौकस रहना चाहिये। छोटी-छोटी सावधानियों से करोड़ों की क्षति से बचा जा सकेगा। बचाने सबढ़कर श्रेष्ठ सृजन कोई नहीं है।