जालियांवाला बाग हत्याकांड!!

पिछले तीन हफ्तों से रोज सुबह ५ को दौड शुरू होती है और रात को ९ बजे खतम होती है. इस चक्कर में चिट्ठाकारी और अन्य सब कुछ पीछे रह जाता है. लेकिन कल जब बेटे के चिट्ठे पर पढ़ा कि कल जालियांवाला हत्याकांड का दिवस था तो मन एक दम से दर्द से भर गया.

यह हत्याकांड ब्रिटिश बर्बरता का एक नंगा उदाहरण है. ब्रिटिश लुटेरे इस देश का कल्याण करने नहीं आये थे, बल्कि सोने कि चिड़िया हिंदुस्तान को लूटने के लिए आये थे. उन में से एक न्यून पक्ष हिन्दुस्तानियों का हितैषी था, लेकिन अधिकतर लोग सिर्फ पैसा बनाने के लिए आते थे. लेकिन जब देश में आजादी की मांग होने लगी तो वे बेचैन हो गए. सोने की चिडिया हाथ से निकली जा रही थी. इस बीच प्रथम विश्व युद्ध आया तो उनको लगा कि अब हिनुस्तानी लोग उनके हाथ से निकल जायेंगे. लेकिन भारतीयों ने प्रथम विश्वयुद्ध में अंग्रेजों हर तरह से मदद कि क्योंकि इसके बदले उन्होंने हिंदुस्तान को आजाद करने का वाचन दिया था.

प्रथम विश्वयुद्ध में लगभग ४३,००० हिन्दुस्तानी लोग अंग्रेजों के लिये शहीद हो गए. लेकिन सोने कि चिड़िया को कौन आजाद करता है. अंग्रेज अपने वादे से मुकर गए. देश में इस कारण हर और असंतोष फैल गया. आजादी के लिए हर और कोशिश होने लगी. अप्रेल १३, १९१९ को अमृतसर के जालियांवाला बाग में काफी सारे लोग एक शांत सभा के लिए एकत्रित हुए. सभा के आरम्भ होने के लगभग एक घंटे बाद जनरल डायर लगभग ९० सैनिकों के साथ वहां पहुंचा. ५० के पास रायफल थे. बिना सूचना के गोली चलने का आदेश दिया गया. 1,650 गोले दागे गए और गोली दागना सिर्फ तब रोका गया जब लगभग सारी गोलियां खत्म हो गईं. 

कम से कम १००० लोग वहीं पर तडप तडप कर खतम हो गए. कम से कम ५०० लोग बुरी तरह घायल हो गए. उन लोगों ने मेरीआपकी खातिर अपना जीवन दान किया. लेकिन हम लोग ऐसे जीते हैं जैसे आजादी खैरात में मिली हो.

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Author: Super_Admin

11 thoughts on “जालियांवाला बाग हत्याकांड!!

  1. लेकिन हम लोग ऐसे जीते हैं जैसे आजादी खैरात में मिली हो….

    बिल्‍कुल सही कहा आपने .. अपनी संस्‍कृति, अपने ज्ञान , अपने आचरण को कमतर आंकते और विदेशियों की नकल करते हुए हम गुलामी की ओर ही बढ रहे हैं .. काश हम इसे समझ पाते !!

  2. शहीदों की चिता पर लगेंगे हर बरस मेले….वतन पे मरने वालों का यही बाकी निशां होगा…..खैर मैं खुद ही भूल गया…धन्यवाद

  3. खैर इस दिन की याद हमे थी, इसलिए हमें तो अपने पर शर्म कतई नहीं है। पर जरा सोचिए आजादीके दौर में जाने कितने लोगो ने जान दी थी पर हमें कितने कम लोगो को जानते हैं..कम से कम हर जिले के में ऐसे लोगो की लिस्ट तो बनाई जा सकती है, और शायद ऐसे में ही लोगो को पता चलेगा..याद रहेगा की आजादी का मोल क्या था, औऱ उसे पाने के लिए प्रतिदिन कितने लोगो को अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ती थी…

  4. धन्यवाद,लेकिन हम अब भी अपनी आजादी का मोल क्य़ॊ नही समझते, हम अगेजी सभ्यता की और क्यो दोड रहे हे.

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