आज सुबह सुबह एक अंग्रेजी चिट्ठे पर एक विदेशी की टिप्पणी दिखी कि सन २०१० में हिन्दुस्तान में जितने संडास हैं उनसे अधिक मोबाईल फोन हैं. इस खबर पर कई लोगों ने काफी चुटकी ली एवं कई लोगों ने हंसी की तो मैं ने एकदम टिप्पणी की “क्या आप लोगों को लगता है कि हिन्दुस्तान में लोग जान बूझकर संडास बनाने से किनारा करते हैं”.
मैं ने कुछ और भी बातें लिखीं जिसका असर यह हुआ कि मूल टिप्पणी जिसने की थी उसने तुरंत एक माफीनामा मुझे भेजा और उस पूरी चर्चा को हटा दिया. उसके स्थान पर मेरी टिप्पणी छाप दी कि “यदि मोबाईल जिस कीमत में खरीदा जा सकता है उस कीमत में संडास बनाने की सहूलियत होती तो आज हर हिन्दुस्तानी के पीछे कम से कम दो संडास होते”. मुझे खुशी है कि मेरी बात उन लोगों को समझ में आ गई.
समस्या यह है कि हिन्दुस्तान के विरुद्ध कोई भी देशीविदेशी व्यक्ति कोई टिप्पणी करता है तो उसका विश्लेषण करने के बदले हम लोग तुरंत उस बात को मान लेते हैं. फलस्वरूप निराशाजनक नजरिया आगे बढता जाता है. निम्न कथन जरा देखें:
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हिन्दुस्तानी लोग सुधर नहीं सकते
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हिन्दुस्तानी लोग सुधरना नहीं चाहते
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हिन्दुस्तान में उन्नति इसलिये नहीं हो रही कि जनता विकास नहीं चाहती
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हिन्दुस्तानियों को भ्रष्टाचार की आदत लग गई है
सवाल यह है कि यदि भारत का असली स्वरूप हमेशा ऐसा रहा है क्या. यदि नहीं तो हम लोग क्यों ऐसे प्रस्तावों को चुपचाप मान लेते हैं?
दर असल जो देश सोने की चिडिया था वह २५०० साल तक नुचतापिटता और लुटता रहा, तब कहीं इस स्थिति में पहुंचा है. देश १९४७ में आजाद हुआ तो हर तरह से कंगाल था. लेकिन जिन लोगों ने पिचली ६ दशाब्दियों में हुए बदलाव को देखा है वे जानते हैं कि एक देश जिसके करोडों वासियों को मुगलों ने और अंत में अंग्रेजों ने नंगा करके छोडा था, वह पुन: एक विश्व शक्ति बनता जा रहा है. २५०० साल की लूट को ६० साल में काफी हद तक वापस पा लेना अपने आप में एक अद्भुत कार्य है.
यदि आप और मैं जीजान से और देशभक्ति के साथ लगे रहें तो सन २०२५ तक हम निश्चित रूप से एक महाशक्ति बन जायेंगे और २०५० तक वापस सोने की चिडिया बन जायेंगे.
आपने बहुत अच्छा किया और सलीके /प्रभावपूर्ण तरीके से अपनी बात रखी !
गुरूजी…..निश्चित ही ये बात सत्य है कि हम लोग अपनी गलती मानने की बजाय अपने आप को फटाफट गलत मान लेते हैं…..और बहुत कुछ ये हमारे मन मस्तिष्क मैं बार बार कूट कूट कर जो भरा गया हैं कि हम कहीं न कहीं उन से कमतर हैं…..हमें अपने आप को पहचानने की देर है….हम सब से आगे होंगे….वंदेमातरम्
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दर असल जो देश सोने की चिडिया था वह २५०० साल तक नुचतापिटता और लुटता रहा
विडंबना ही है कि इसके बाद भी हम सुधरना नहीं चाहते !!
आपने सही लिखा है.
[मेरे घर में 10 मोबाइल और 2 संडास है. तो संडास कम हुए ना? एक कारण यह भी है.]
आपकी हर पोस्ट मुझे प्रेरणादायी लगती है जी
प्रणाम स्वीकार करें
बात इन बेढंगे तथ्यों को स्वीकार कर लेने की है । यदि हम सब उनकी तरह दिनभर संडास में बैठकर मोबाइल से बतियायें तो निश्चय ही कुछ लोगों को यह सुख न मिल पायेगा । अब गुबरैले को गुलकन्द की क्या समझ । बहुत हो गयी हीन भावना । अब अपने को सर्वोत्तम मानिये और उसे अपने श्रम से सिद्ध कीजिये ।
चारों ही तथ्य ठीक हैं.. गुलामी में आर्थिक और शारीरिक रूप से गुलाम रहे लेकिन मानस तड़पता रहा आजादी के लिये. अब आर्थिक और शारीरिक आजादी तो मिल गयी लेकिन मन से गुलाम हो गये..
२५०० साल की लूट को ६० साल में काफी हद तक वापस पा लेना अपने आप में एक अद्भुत कार्य है
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“मोबाईल की कीमत पर संडास बन जाए” क्या बात कही. सुन्दर अभिव्यक्ति. आभार.
बहुत ही प्रभावी तरीके से बात को आपने सामने रखा और सही स्थिति पाठकों को समझायी. बहुत आभार आपका
रामाराम
विदेशियों के दिमाग में अभी भी भारत के बारे में बहुत सी गलत बाते भरी हुई यदि उन्हें आपकी तरह प्रभावी ढंग से समझाया जाय तब ही वे समझ पाते है |
आज तो ऐसा लग रहा है कि मेरे शब्द ही लिख दिए हैं। मैंने अपने अमेरिका यात्रा का वर्णन एक पुस्तक के रूप में किया है – सोने का पिंजर– अमेरिका और मैं। उसके भी यही भाव है।
…प्रभावशाली लेख!!!
adarniya sir pranam rajniti or aam jivan mobile padh kar muze laga koi to he jo sahi dhang se is desh me sochta he ekdam positive kyonki me manta hu ki admijo bhi kam kare vo imandari se kare koi bhi kam yahan tak ki bolna or sun na bhi vohi sachhi desh bhakti he padhkar urja ki anubhuti hui
prnaam guru ji
aapka sandesh pdkr jo urja milte uski baat he nirali hai.
पहले दूसरे देश से लूटने आना पड़ता था … अब आसानी हो गई है ….सब काम यही हो जाता है…जिन लोगो को अपने देश की प्रगति पर नाज़ है वो जापान को देखें ..second वर्ल्ड वार के बाद की प्रगति भी दुनिया जानती है… जिनको जापान से तुलना नहीं भाती वो चीन को देख लें ….जो कभी ओलम्पिक में भाग नहीं लेता था और तैयारी के बाद जब उतरा तो… हमारे लिए खेल भावना खास है उसी भावना से जम्बो दल जाता है घुमने फिरने विदेश…खिलाडी कम चमचे ज्यादा . वो भी हमारे साथ ही आजाद हुआ था ..कभी अफीमची कहलाने वाला देश….आज कहा है …इतनी आबादी के बाद भी…. हमारे देश में 1957 से शुरू हुआ परिवार निओजन आज भी निओजित नहीं हो पाया….
Aapki baat kaafi sach hai.1947 ya uske baad aazad hone waale deshon main dekhe to aaj hindustan bahut upar hai.Europe aur america ke baad aaj india aur china ka hee naam liya jata hai.Aapki positive soch bahut aachi lagi.Kripya ispar ek bada lekh likhen.