Category: चुनी हुई प्रविष्ठियां
पैसा सबकुछ नहीं होता यारों
पैसा सबकुछ नहीं होता यारों : मैथिली जी के बारे में रवि रतलामी ने जो कुछ लिखा उससे कई सवाल पैदा हो जाते हैं. मैथिली गुप्त ही क्यों? क्या जिसने जीवन में पैसा नहीं कमाया उसका जीना बेकार है? और अंट-शंट तरीके से जिसने पैसा कमा लिया वह महान आदमी हो गया? आज बाजार और दुकान को स्थापित सत्य बतानेवाले लोग…
वो रास्ते
लोग मिलते हैं बिछड़ जाते हैंकभी किसी बात पे बिगड़ जाते हैं,पता भी नही चलताऔर सालों बादऐसे आते हैंजैसे एक अजनबी।शायद हम कहीं मिले थे।बरसों सेएक ही शहर में रह रहे हैं,वो रस्ते भी तय करते रहे हैंजहाँ कभी साथ-साथ चला करते थे।मै जब भी उन रास्तों पेजाता हूँ आज,अकेला नहीं होता,पर वो रास्तेजब भी मुझे अकेला देखते हैंकहते हैं,एक…
आइए, इनस्क्रिप्ट सीखें
आज इन्स्क्रिप्ट से सम्बंधित रवि रतलामी का एक उपयोगी, सचित्र, एवं वृहद लेख मेरी नजर में आया जहा वे लिखते हैं: “अगर लिनक्स (या विंडोज़) के डिफ़ॉल्ट हिन्दी की मैप (इनस्क्रिप्ट) पर थोड़ी सी भी गहरी ज्ञान-चक्षु डालें तो हमें मजेदार बात पता चलेगी, जो कि इस हिन्दी कुंजी पट को बिना किसी परेशानी के इस्तेमाल में, तथा इसे सीखने में न…
ईमेल
आज मेरे ईमेल की देहलीज़ पेएक मेल ने दस्तक दीं,किसी ने मेरे घर के नाम से पुकारा।जैसे ही मेल मेंमै आगे बड़ा,ख़त्म हो गयी एक लाइन में।खैरियत पूछी थी बरसों बाद मेरी,घरवालों की।सालों का फासलासेकेंड में ख़त्म हो गया,जैसे कोई बासी पोस्ट पे आंसू खारे होते हैं,जब दर्द आंसू बन बहता हैंदिल को राहत देता हैं,ये अपने-परायेकिसी के भी दर्द…
पापा
[ममता टी वी, रचनात्मक सामान्य प्रतिलिपि अधिकार] परिवार मे माता-पिता दोनो का समान स्थान होता है क्यूंकि अगर माँ घर बार संभालती है तो वो पिता ही है जिनकी वजह से हम बच्चों को सब सुख-आराम मिलते है।पिताजी,बाबूजी,पापा,ये सारे संबोधन हमे ये अहसास दिलाते है कि हमारे सिर के ऊपर उनका प्यार भरा हाथ है और हमे किसी भी बात…
माँ
[ममता टी वी, रचनात्मक सामान्य प्रतिलिपि अधिकार] माँ, ये एक ऐसा शब्द है जिसकी महत्ता ना तो कभी कोई आंक सका है और ना ही कभी कोई आंक सकता है। इस शब्द मे जितना प्यार है उतना प्यार शायद ही किसी और शब्द मे होगा। माँ जो अपने बच्चों को प्यार और दुलार से बड़ा करती है। अपनी परवाह ना…
अब बस क्लिक करें और किसी भी साईट पर हिंदी लिखना शुरू कर दें
[आयना] आज शास्त्री जे सी फिलिप ने चिट्ठाकार समूह पर कुशिनारा हिंदी तुलिका टूल के बारे में बताया। इस टूल के बारे में पहले से सुन तो रखा था मगर इस तरह से इसकी उपयोगिता हो सकती है यह आइडिया मुझे शास्त्री जे सी फिलिप जी की बात से ही आया। अब इस टूल को हिंदी टूलबार में जोड़ दिया…
आम आदमी
[चुनी प्रविष्ठी: सजीव सारथी]लफ्ज़ रूखे, स्वर अधूरे उसके, सहमी सी है आवाज़ भी,सिक्कों की झंकारें सुनता है, सूना है दिल का साज़ भी, तनहाइयों की भीड़ में गुम ,दुनिया के मेलों में,जिन्दगी का बोझ लादे , कभी बसों में , कभी रेलों में,पिसता है वो, हालात की चक्कियों में,रहता है वो, शहरों में , बस्तियों में,घुटे तंग कमरों में आँखें…
आप सब के राय की प्रतीक्षा है:
[रचना सिंह, http://myoenspacemyfreedomhindi.blogspot.com/]: मै जानना चाहती हूँ क्या चिटठा समुदाय मिल कर कोई ऐसी मुहिम शुरू कर सकता है जिसमे हम सब जुड़ कर कुछ सार्थक कर सके । चिटठा समुदाय मे आने के बाद से मैने ये देखा है कि इसमे काफी चिटठे पत्रकार समुदाय के है । क्या वह सब आपस मे जुड़कर किसी मुहिम को आगे ले…
जालधोखों से बचें
जालजगत में बहुत सारी भूलभुलैयायें हैं जिनमे कोई भी व्यक्ति फंस सकता है. सागर चंद नाहर ने अपने एक अनुभव के बारे में एक लेख अपने चिट्ठे पर लिखा है जो हरेक की नजर में आना चाहिये. कृपया इस लेख को यहां देखें — शास्त्री जे सी फिलिप चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: जालधोखा, जाल-जालसाजी, जाल-सुरक्षा, net-crimes, net-cheating, net-frauds, net-privacy, सारथी,