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डॉक्टर की छोकरी सब विषयों में गोल है!!

मैं ने अपना पेशाई जीवन शालेय अध्यापन से शुरू किया था. वह भी उस विद्यालय में जहां पहली से ग्यारहवीं तक मेरी पढाई हुई थी. इसका नुक्सान यह था कि अधिकतर कर्मचारी एवं चपरासी मुझे ‘सर’ कहने के बदले ‘भईया’ कहा करते थे. फायदा यह था कि इस संस्था के नस नस पर मेरी अच्छी पकड थी. फल यह हुआ…

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चिट्ठालोक: ओखली या खरल?

हफ्ते भर की छुट्टी मनाने के बाद वापस चिट्ठालोक में आया तो पता चला कि मेरे युवा मित्र प्रकाश बादल बहुत दुखी हैं क्योंकि उनके विरुद्ध किसी चिट्ठाकार (चिट्ठाकारों) ने कुछ असत्य आरोप लगाये हैं. वे मैदान छोडने वाले थे लेकिन भला हो कई चिट्ठाकारों का जिन्होंने अपनी टिप्पणी द्वारा उनको हिम्मत बंधाया. लगता है कि अब लगभग हर महीने…

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शास्त्रार्थ तो मूर्खों के लिये है ??

सारथी पर प्रश्न पूछने के लिये जो सुविधा है उसका प्रयोग कई लोग कई तरीके से करते हैं. अकसर मेरे रचनात्मक-आंदोलन के बारे में प्रश्न पूछने या बेनामी आलोचना करने के लिये भी लोग उसका उपयोग करते हैं. इन में से सब को मैं लेख का विषय नहीं बनाता, लेकिन सब का उपयोग नई नई दिशओं में सोचने के लिये…

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शिकायत: भाटिया जी का प्रश्न !!

आज अपने आलेख सिलसिला….शिकायत में भाटिया जी ने पूछा है तो लिखिये अपनी शिकायत जिस से भी है, अगर मेरे से है, तो भी लिखे, इस समाज से है, तो भी लिखे. हो सकता है आप के दिल का बोझ थोडा हलका हो जाये, साथ मै कोई आप को अच्छी सलाह भी दे दे. बहुत व्यावहारिक प्रश्न है, और मुझे…

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अफसोस के कुछ क्षण

मैं ने अपने आलेख क्या ऐसे लोग अभी भी हैं?? , क्या यह हिन्दुस्तान में संभव है? , किस्सा कुर्सी का!! में कई सकारात्मक बातें बताईं थीं. कारण यह है कि हम जिस दिशा में सोचेंगे, जीवन उसी दिशा में चल पडेगा. सकारात्मक सोच जीवननिर्माण को प्रोत्साहित करती है लेकिन नकारात्मक सोच आत्मविनाश/जीवनविनाश को प्रोत्साहित करती है. यह हम सब…

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छोटा सा सुझाव जिसने काया पलट दी !

मेरे अध्यापकों में से एक थे डॉ कमल वशिष्ठ. नेताजी सुभाष चंद्र बोस के प्रभाव में चालू किये गये राष्ट्रीय अनुशासन योजना के अंतर्गत ये हमारे विद्यालय में पदस्थ हुए थे. आते ही इन्होंने विद्यालय के अनुशासन का कायापलट कर दिया था. चौसठ कलाओं के पारंगत वशिष्ठ  सर अकसर विद्यार्थीयों को कई प्रकार के सुझाव दिया करते थे. जब मैं…

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कचरे से पीएचडी तक 002

कल कचरे से पीएचडी तक 001   आलेख में मैं ने किताबों के प्रति मेरे लगाव के बारे में बताया था. चौथी कक्षा में आते आते मैं आठवी कक्षा तक की विज्ञान की पाठ्य पुस्तकें पढने लगा था, लेकिन इसके बावजूद पर्याप्त पुस्तकें नहीं मिल पाती थीं. मेरी आदत पंसारी से आने वाले लिफाफों को, इधर उधर कचरे में फेंके…

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कचरे से पीएचडी तक 001

दो शताब्दियों तक अनगिनित शहीदों का खून बहाने के बाद हिन्दुस्तान को आजादी हासिल हुई थी. लेकिन जब 1947 में देश आजाद हुआ तो इस देश की आर्थिक व्यवस्था एवं धन को ब्रिटिश लुटेरा साम्राज्य हर तरह से लूट चुका था. गांधी बाबा ने तो अपनी इच्छा से एक धोती में जिंदगी बिताई थी, लेकिन इन लुटेरों ने जाने से…

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कृपया अखबार न पढें !!

सारथी पर कई बार प्रश्न बॉक्स में एक प्रश्न आया है — मैं लोगों के नाम, चेहरे, जगहों के नाम आदि भूल जाता हूँ. सबसे बडी मुसीबत है कि मैं किसी भी किताब को पढ कर याद नहीं रख पाता. क्या करूँ. उत्तर है कि ऐसा करने के लिये अपने दिमांग को आप ही ट्रेनिंग दे रहे हैं, मजबूर कर…

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मेरी मां मेरी दुश्मन है 002

कार्टून: घरपरिवार विषय पर क्लास लेते हुए शास्त्री मेरे आलेख मेरी मां मेरी दुश्मन है 001 में हम ने ‘नवीन’ की समस्या देखी थी. नवीन के लिये मेरा बाकी उत्तर इस प्रकार है: नवीन, एक बात स्पष्ट है कि तुम बिना कुछ जानेसमझे, बिना किसी तरह की जांचपडताल के, एक लडकी पर मोहित हो गये हो. इस तरह से विवाह…

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