Category: मार्गदर्शन
समलैंगिकता एवं सामाजिक नजरिया!
चित्र: समलैंगिक अमरीकी इंडियन लोगों को श्वेतवर्ग के लोगो कुत्तों से नुचवाते हुए! चूंकि समलैंगिक लोग हमेशा ही विषमलिंगी लोगों की तुलना में नगण्य रहे हैं अत: उनको कभी भी सामाजिक मान्यता नहीं मिली थी. इतना ही नहीं, अधिकतर धर्मों में समलैंगिक संबंधों पर प्रतिबंध था एवं इसे नैतिक पतन का लक्षण माना जाता था. इस कारण पकडे जाने पर…
नजरिया और जीवहत्या !!
अभी दस मिनिट पहले मेरे एक विद्यार्थी ने मुझे बिहार से दूरभाष लगाया, सिर्फ यह जानने के लिये कि वह काव्यरचना करता रहे या नहीं. वह एक मानसिक रोगी था. मेरे कहने पर उसे देश के सबसे अच्छे मनोवैज्ञानिकों को दिखाया गया. उनकी दवादारू से उसे काफी फायदा हुआ. आज वह अध्यापक है, सामान्य जीवन जी रहा है, दवा नियमित…
इतना तो हर कोई कर सकता है!!
मेरे पाठकों में हर कोई चाहे तो एक हफ्ते में आधा घंटा घर बैठे ही देशसेवा के लिये निकाल सकता है. यदि इसे नियमित रूप से पांच साल करते रहें तो आपके शहर में तमाम तरह की सुविधाये बढ सकती हैं और भ्रष्ट लोगों की नीद हराम हो सकती है. अनुसंधानों द्वारा यह बात बारबार स्पष्ट हुई है कि अखबारों…
इलाज जो मर्ज से खतरनाक निकला!!
मेरे पिछले आलेख जब गधे राज करते हैं!! और ठस लोगों की नाक में दम करें!! में हम ने मूर्खों के राज की चर्चा की थी. आज समाज में हर जगह ऐसे लोग मिल जायेंगे जो बिना योग्यता के उस स्थान पर पहुंच गये हैं और जानमाल का कबाडा कर रहे हैं. इनका विरोध करना कई बार जरूरी हो जाता…
ठस लोगों की नाक में दम करें!!
मैं ने अपने पिछले आलेख जब गधे राज करते हैं!! में दो बातें बताने की कोशिश की थी: यह मानकर न चलें कि हमेशा जिम्मेदार लोग ही राजकाज करेंगे या समाज के ऊपर अफसर होंगे. संभावना इस बात की है कि निपट मूर्ख के हाथ रास थमा दी जाये. जिम्मेदारी का वक्त आने पर ये निपट मूर्ख समाज का कबाडा…
मन जब आत्मघाती हो जाता है!!
मेरे पिछले लेख मानसिक व्यायाम नुक्सान कैसे होता है?, मानसिक व्यायाम: नुक्सान ही नुक्सान!!, क्या व्यायाम मन में किया जा सकता है!! में जिस विषय को प्रारंभ किया था उसकी अंतिम कडी आ गई है. मन और शरीर की रचना आपस में एक दूसरे के पूरक के रूप में कार्य करने के लिये हुई है. यदाकदा मन शरीर से अलग…
मानसिक व्यायाम नुक्सान कैसे होता है?
मेरे पिछले आलेख मानसिक व्यायाम: नुक्सान ही नुक्सान!! में मैं ने लिखा था कि जिन जिन कार्यों को शरीर और मन के तालमेल द्वारा करना चाहिये उनको एक दूसरे से अलग कर दिया जाये तो काफी नुक्सान होता है. कारण यह है कि शरीर और मन अलग अलग कार्य करने के लिये बनाई गई इकाईयां नहीं है. अब आते हैं…
मानसिक व्यायाम: नुक्सान ही नुक्सान!!
कल के आलेख क्या व्यायाम मन में किया जा सकता है!! में मैं ने मानसिक सोच के असर के बारे में बताया था. इसके एक व्यावहारिक पहलू को ताऊजी ने अपनी टिप्पणी में बडे ही विस्तार से समझाया था जिसके लिए मैं उनका आभारी हूँ. जैसा उन्होंने बताया, तिब्बत के ठंडे वातावरण में भी गीला कपडा पहना साधक अपनी कल्पना…
क्या व्यायाम मन में किया जा सकता है!!
स्वस्थ जीवन के लिए व्यायाम बहुत जरूरी है. लेकिन यह कार्य धीरे धीरे आधुनिक जीवन से खिसक कर बाहर होता जा रहा है, जिसका दुष्परिणाम हम में से कई लोग भुगत रहे हैं. अत: व्यायाम को प्रोत्साहित करना जरूरी है. इस विषय पर अनुसंधान करते समय कुछ दिलचस्प जानकारियां मिली हैं जिनका संबंध न केवल व्यायाम से है, बल्कि मनुष्य…
एक सेकेंड जो मौत से बचा सकती है!!
आज से लगभग 35 साल पहले मेरे पिताजी ने मुझे मोटरसाईकिल चलाना सिखाया. उनका पहला पाठ था: जैसे ही एक्सीलेटर तुम्हारे हाथ आ जाता है, वैसे ही हवा में उडने की ताकत तुम्हारे हाथ आ जाती है. कल तक जो व्यक्ति साईकिल के पेडल पर जोर लगाने पर भी 20 किलोमीटर से ऊपर वेग नहीं पकड पाता था, वह आज…